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राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को विधायिका और इससे जुड़ी संस्थाओं की सार्थकता पर उठ रहे सवालों के प्रति उच्च सदन के सदस्यों को आगाह करते हुये सालों से लंबित विधेयकों को समाप्त करने के उपाय के बारे में सदस्यों से सुझाव मांगे हैं।
नायडू ने सदन की बैठक शुरू होने पर सदस्यों से कहा कि सदन की कार्यवाही बाधित होने के कारण व्यापक मात्रा में विधायी कार्य लंबित है। इससे विधायिका और इससे जुड़ी संस्थाओं की सार्थकता पर सवाल उठने लगे हैं।
नायडू ने सदस्यों को जनमानस में तेजी से फैलती इस धारणा के प्रति आगाह किया कि ‘‘निरर्थक विधाई निकायों के कारण लोकतंत्र ही खतरे में है।’’ उन्होंने सांसदों को सलाह दी कि वे अपनी सोच और कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करें। उन्होंने सभी सदस्यों से एक नयी शुरुआत करने का आग्रह किया।सभापति ने कहा, ‘‘मैंने पहले भी अनेक अवसरों पर सदन में व्यवधान पैदा करने के कारण जनता में विधायी निकायों के लिए व्याप्त नकारात्मक सोच पर चिंता व्यक्त की है।’’ उन्होंने कहा कि व्यर्थ में समय नष्ट होने के कारण सदन की उत्पादकता कम हुई है। जरूरी विधेयक लंबित रह जाते हैं तथा कुछ विधेयक लोकसभा के भंग होने के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
नायडू ने कहा कि प्रश्न काल में काम नहीं होने का अर्थ है कि 40 सदस्य सरकार से आठ विषयों पर नीति, उसके कार्यान्वयन तथा प्रशासनिक मुद्दों पर जवाब लेने से वंचित रह जाते हैं।पिछले सत्र के दौरान सदन में उपजे व्यवधान पर निराशा व्यक्त करते हुए सभापति ने कहा कि सदन की कार्य प्रणाली से जनता भी उतनी ही क्षुब्ध और निराश है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी संस्थाओं पर से जनता का विश्वास और भरोसा कम हो रहा है। विश्वास में यह क्षरण रुकना चाहिए।’’
सभी सांसदों से इस सत्र से नयी अनुकरणीय शुरुआत करने की अपील करते हुए, उन्होंने कहा, ‘‘हमारी संसद को 2022 तक एक ऐसे नये भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है जिस पर हम सभी गर्व कर सकें।’’नायडू ने लंबित विधेयकों को स्वत: समाप्त करने तथा निर्णय प्रक्रिया में संसद की अभीष्ट भूमिका जैसे विषयों पर सदस्यों से सुझाव मांगे।
वरिष्ठों के सदन को अनुकरणीय उदाहरण स्थापित करने होंगे। उन्होंने सुझाव दिया कि उच्च सदन में पांच साल से अधिक समय से लंबित किसी भी विधेयक को निष्प्रभावी मान लिया जाए।
उन्होंने उस नियम पर भी विचार किए जाने का सुझाव दिया जिसके तहत लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में विधेयक लंबित होने के दौरान लोकसभा के भंग होने पर वह विधेयक स्वत: निष्प्रभावी मान लिया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के प्रारंभ में सभापति ने कहा कि पिछले माह 16वीं लोकसभा के भंग होने के बाद राज्यसभा में लंबित 22 विधेयक निष्प्रभावी हो गये। इसके अलावा 33 विधेयक ऐसे हैं जो पिछले कई वर्षों से उच्च सदन में लंबित हैं। इसमें से तीन विधेयक 20 साल से अधिक समय से लंबित हैं।
उन्होंने कहा कि संविधान के प्रावधानों के तहत लोकसभा में उसके पांच साल के कार्यकाल के दौरान पारित किए गये विधेयक यदि राज्यसभा में लंबित रह जाते हैं तो वह संबंधित लोकसभा के कार्यकाल समाप्त होने पर निष्प्रभावी हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि कोई विधेयक राज्यसभा में पेश हो जाए तो वह सदन की संपत्ति रहता है, भले ही लोकसभा भंग हो जाए।
नायडू ने कहा, ‘‘प्रभावी तौर पर लोकसभा को इन 22 विधेयकों पर विचार कर उन्हें पारित करना होगा। मुझे लगता है कि इसमें कम से कम दो सत्र लग जाएंगे। इसका यह अर्थ हुआ कि इन 22 विधेयकों को पारित करने में लोकसभा के प्रयास व्यर्थ गए।’’ उन्होंने कहा कि जो विधेयक निष्प्रभावी हो गये उनमें भूमि अधिग्रहण विधेयक, तीन तलाक संबंधी विधेयक, आधार संशोधन विधेयक और मोटर यान विधेयक शामिल है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसके देखते हुए संसद के उच्च सदन में विधेयकों के निष्प्रभावी होने संबंधी प्रावधान पर विचार किया जाए...मेरा सुझाव है कि राज्यसभा में स्वत: निष्प्रभावी होने के मुद्दे पर व्यापक चर्चा की जाए।’’सभापति ने कहा कि पिछले कई सालों से लंबित विधेयकों में सबसे अधिक लंबे समय से विचाराधीन विधेयक भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक 1987 है। यह विधेयक 32 सालों से विचाराधीन है।
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