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अमर्त्य सेन के निधन की अफवाह को क्यों सच मान बैठे मीडिया संस्थान? वजहों को समझिए

''न्यूज ब्रेक करने" की होड़ में पत्रकार फैक्ट चेक की बजाय इस बात को तरजीह देते हैं कि उनकी खबर सबसे पहले लोगों तक पहुंच जाए.

अभिलाष मलिक
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>आखिर क्यों फंस जाते हैं मीडिया हाउस फेक न्यूज के झांसे में</p></div>
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आखिर क्यों फंस जाते हैं मीडिया हाउस फेक न्यूज के झांसे में

(फोटो: Altered by The Quint)

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नोबेल पुरस्कार विजेता और भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन (Amartya Sen) के निधन की अफवाह फैली. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि अफवाह कैसे फैली और क्यों फैली?

  • नोबेल पुरस्कार विजेता क्लाउडिया गोल्डिन के नाम पर बने एक X अकाउंट से एक पोस्ट शेयर किया गया जिसमें बताया गया था कि क्लाउडिया ने पुरस्कार जीत लिया है.

  • ये पोस्ट 10 लाख से भी ज्यादा लोगों ने देखा और कई लोग इस पोस्ट से जुड़ गए.

  • उसके कुछ घंटों बाद ही, इसी अकाउंट से ये पोस्ट किया गया कि उनके ''बहुत खास दोस्त'' अमर्त्य सेन का निधन हो गया है.

  • इस अफवाह को फैलाने वाले शख्स का नाम टोमासो डेबेनेडेटी (Tommaso Debenedetti) है.

कौन है टोमासो डेबेनेडेटी?

1969 में जन्मे, डेबेनेडेटी ने 2000 के दशक की शुरुआत में प्रैंकिंग में अपने करियर की शुरुआत की. इसके लिए, उन्होंने इटली के स्थानीय पब्लिकेशनों में जॉन ग्रिशम और फिलिप रोथ जैसे अमेरिकी लेखकों के नकली और मनगढ़ंत इंटरव्यू पब्लिश करवाए.

साल 2010 में New Yorker और स्पैनिश पब्लिकेशन El Pais को दिए एक इंटरव्यू में, डेबेनेडेटी ने दावा किया कि वो लेखकों और पत्रकारों के परिवार से हैं. हालांकि, डेबेनेटेडी "Italy's champion of the lie" (इटली के झूठ के चैंपियन) बनना चाहते थे.

इस बात का खुलासा होने के बाद कि डेबेनेडेटी ने फर्जी इंटरव्यू प्रकाशित किए हैं, उन्होंने इंटरनेट की ओर अपना रुख किया और दुनिया भर के नेताओं की फर्जी X (तब ट्विटर) प्रोफाइल बनाना शुरू किया. इन नेताओं में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिक करजई, सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद, रूस के रक्षामंत्री सर्गेई शोइगु और रूसी आंतरिक मंत्री व्लादिमीर कोलोकोल्त्सेव जैसे नाम शामिल हैं.

उन्होंने ये स्वीकारा भी कि उनका काम ऐसे नेताओं को ढूंढकर उनकी फर्जी प्रोफाइल बनाना था, जिनका X अकाउंट नहीं था.

डेबेनेडेटी के सबसे बड़े प्रैंक में से अगस्त 2012 में आया था. तब उन्होंने बशर अल-असद के निधन की अफवाह फैला दी. इससे कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं.

इसके बाद, उनकी इन अफवाहों के झांसे में Times, The Guardian और USA Today जैसे मीडिया संस्थान भी आ गए, जब उन्होंने कई जानी-मानी हस्तियों की मौत से जुड़ी अफवाहों को सच मान लिया. उन्होंने जिन हस्तियों की मौत की अफवाह फैलाई उनमें पोप, फिदेल कास्त्रो, काज़ुओ इशिगुरो और अब अमर्त्य सेन जैसे लोग शामिल हैं. उन्होंने The Ringer को फोन कॉल पर बताया कि वो ''ये उजागर करने निकले हैं कि आखिर मीडिया कितना विश्वसनीय है''.

पत्रकार क्यों आ जाते हैं इन झांसों में?

The Guardian को दिए 2012 के एक इंटरव्यू में डेबेनेडेटी ने कहा, "सोशल मीडिया दुनिया का सबसे असत्यापित सूचना को स्रोत है, लेकिन न्यूज मीडिया खबरों को जल्दी पेश करने के चक्कर में इस पर भरोसा करता है.''

डेबेनेडेटी ने 2012 में Guardian से बात करते हुए बताया कि उन्होंने X पर अफवाहें क्यों फैलाईं

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/The Guardian)

और उनकी बात इस बार भी सच साबित हुई जब अमर्त्य सेन की नकली ''मौत'' को लेकर रिपोर्टिंग की गई. डेबेनेडेटी के फर्जी ट्वीट पोस्ट होने के कुछ मिनट बाद ही पत्रकारों ने इसे शेयर करना शुरू कर दिया और न्यूज एजेंसियों में इसे रिपोर्ट करने के लिए होड़ मच गई.

''न्यूज ब्रेक करने" की होड़ की वजह से पत्रकार फैक्ट चेक की बजाय इस बात को तरजीह देते हैं कि उनकी खबर सबसे पहले लोगों तक पहुंच जाए. फैक्ट चेकर्स के मुताबिक, जब प्राकृतिक आपदा, आतंकवादी हमले सहित कई दूसरी घटनाओं को लेकर ब्रेकिंग न्यूज की स्थिति बनती है, तो गलत सूचना में बढ़ोतरी हो जाती है.

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोग न्यूज वेबसाइटों पर उपलब्ध जानकारी के अलावा और भी जानकारी पाना चाहते हैं, इससे एक तरह का सूचना में खालीपन सा पैदा हो जाता है. जिससे उस खालीपन की जगह अफवाहें, गलत जानकारी और गॉसिप ले लेती हैं. ऐसी स्थिति में पत्रकारों को ब्रेकिंग न्यूज जैसी स्थिति के दौरान ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए.

डेबेनेडेटी जैसे लोग सबसे पहले रिपोर्ट करने की इस हड़बड़ी का फायदा उठाते हैं.

असल में, ऑनलाइन धोखाधड़ी इतनी आम हो गई है कि BuzzFeed और फैक्ट चेकिंग ऑर्गनाइजेशन Snopes ने ऐसे आर्टिकल और स्टोरी के लिए खास सेक्शन भी बना दिए हैं. भारतीय फैक्ट चेकर्स ने ऐसी अफवाहों का सच बार-बार बताया है. फिर भी, भारत और विदेशों के कई बड़े और प्रमुख मीडिया हाउस बिना फैक्ट चेकिंग के ही स्टोरी पब्लिश कर देते हैं.

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X ब्लू सब्सक्रिप्शन भी है गड़बड़ी की वजह

हालांकि, प्रभावशाली लोगों के X के वेरिफाइड अकाउंट का इस्तेमाल करने से भी पहले डेबेनेडेटी के ''प्रैंक'' शुरू हो गए थे. माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट की नई X/ट्विटर ब्लू पॉलिसी से स्थिति और भी खराब होती जा रही है.

जब से इस प्लेटफॉर्म पर नई वेरिफिकेशन पॉलिसी लागू हुई है, जिसमें यूजर्स को वेरिफाइड होने के लिए भुगतान करना पड़ता है. तब से कई लोगों ने वेरिफाइड प्रोफाइल रखने का विकल्प चुन लिया है. इससे यूजर्स और पत्रकारों के लिए स्थिति और खराब हो गई है, क्योंकि वो इस नई पॉलिसी की वजह से वेरिफाइड और सही जानकारी में कठिनाई महसूस करने लगे हैं. अमर्त्य सेन के मामले में गोल्डिन का ओरिजनल अकाउंट भी अनवेरिफाइड था. इससे उस नाम के दूसरे अकाउंट से लोगों को भ्रमित करना आसान था.

The Quint के लिए लिखे अप्रैल के आर्टिकल में इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के नीति निदेशक प्रतीक वाघरे ने बताया कि ट्विटर की ओर से ऐसा नहीं कहा गया था कि किसी वेरिफाइड हैंडल की जानकारी को सच मान लें, लेकिन अकाउंट को ट्विटर नई ट्विटर ब्लू पॉलिसी आने के बाद वेरिफाई करने लगा- लोगों को बिना ये बताए कि उन्हें किस आधार पर वेरिफाई किया जा रहा है. इससे लोगों को ये लगने लगा कि वेरिफाइड अकाउंट किसी प्रभावशाली शख्सियत का है. क्योंकि पहले वेरिफाइड अकाउंट किसी प्रभावशाली शख्सियत का ही होता था, लेकिन नई ट्विटर ब्लू पॉलिसी आने के बाद ये रुपये देने पर किसी को भी मिलने लगा.

X के मालिक एलन मस्क ने X पर कहा था कि ट्विटर उन लोगों के जवाबों को प्राथमिकता देगा, जिन्हें कोई यूजर फॉलो करता है. इसके बाद, वेरिफाइड अकाउंट (ट्विटर ब्लू) और फिर अनवेरिफाइड अकाउंट को प्राथमिकता दी जाएगी.

The Quint की अप्रैल की रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरी ओर किसी के नाम पर बनाए गए नकली अकाउंट भी आम हो गए हैं. गलत जानकारी फैलाने के लिए लोगों के नकली वेरिफाइड हैंडल बनाए जा रहे हैं.

क्या है इसका समाधान?

1. संपादकीय प्रक्रिया में फैक्ट चेकर्स को शामिल करना: न्यूज साइकल में गलत और झूठी जानकारी की मात्रा को देखते हुए, शुरुआत से ही संपादकीय प्रक्रिया में फैक्ट चेकर्स को शामिल करना चाहिए. फैक्ट चेकर्स की ओर से अगर किसी जानकारी पर सवाल उठाए जा रहे हैं या संदेह किया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में किसी भी सामग्री को ''ब्रेकिंग न्यूज'' की तरह पेश करने से पहले पूरी तरह से सत्यापित कर लेना चाहिए.

2. रिपोर्टर्स / पत्रकारों और न्यूज राइटर्स को ट्रेनिंग: छोटी टीम के साथ काम करने वाले न्यूजरूम में नियमित तौर पर वर्कशॉप और ट्रेनिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिनमें आसान फैक्ट चेकिंग टूल, फैक्ट चेकिंग करने का तरीका और सोर्स के बारे में ट्रेनिंग देनी चाहिए.

3. रिसोर्स की उपलब्धता: न्यूज राइटर्स और फैक्ट चेकर्स के पास रिसोर्स का एक डेटाबेस होना चाहिए, जिससे ब्रेकिंग न्यूज स्थिति में वो आसानी से संपर्क कर सकें. इस डेटाबेस में रिपोर्टर, एक्सपर्ट और वरिष्ठ पत्रकारों से जुड़ी जानकारी हो सकती है.

4. पारदर्शिता: न्यूज राइटर अगर कोई आर्टिकल लिख रहा है तो उसे जितना संभव हो सके उतनी पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए. इससे यूजर को ये समझने में आसानी होगी कि जानकारी से जोड़े सोर्स क्या हैं और दावे किस आधार पर किए गए हैं.

5. गलत जानकारी को तुरंत सुधारना: ब्रेकिंग न्यूज की स्थिति में रिपोर्टिंग के दौरान अगर कोई गलती हो जाती है, तो उसे पारदर्शिता दिखाते हुए तुरंत ठीक करना चाहिए. इससे झूठा दावा बड़े स्तर पर नहीं फैलेगा.

6. किसी एक ही सोर्स पर ज्यादा निर्भरता से बचें: न्यूज राइटर और फैक्ट चेकर्स को कम से कम दो सोर्स से किसी जानकारी की पुष्टि करनी चाहिए. अगर अलग-अलग सोर्स एक ही जानकारी को अलग-अलग तरीके से बता रहे हैं, तो समझ लीजिए कि कोई दिक्कत है.

(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर 9643651818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं)

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