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असम: नदी के टापुओं पर बसे ग्रामीणों तक 'बोट क्लीनिक' पहुंचा रहीं कोरोना वैक्सीन

ब्रह्मपुत्र नदी के टापुओं पर बसे ग्रामीणों के पास स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं. दवा हो या वैक्सीन, बोट क्लीनिक ही सहारा

स्निग्धा नलिनी
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>असम में नदी के टापुओं पर रह रहे लोगों के पास बोट क्लीनिक ही वैक्सीनेशन का विकल्प है</p></div>
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असम में नदी के टापुओं पर रह रहे लोगों के पास बोट क्लीनिक ही वैक्सीनेशन का विकल्प है

फोटो : कामरान अख्तर/ द क्विंट

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(स्टोरी पढ़ने से पहले आपसे एक अपील है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और असम में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए हम एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल होता है. हम ये काम जारी रख सकें इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें. आपके सपोर्ट से ही हम वो जानकारी आप तक पहुंचा पाएंगे जो बेहद जरूरी हैं.

धन्यवाद - टीम वेबकूफ)

'बोट क्लीनिक' में बैठकर डॉक्टरों और नर्सों की टीम आ रही है. यही वो पल है जिसका इंतजार असम के बरपेटा स्थित कचुमरा गांव के लोगों को रहता है. कचुमरा गांव ब्रह्मपुत्र नदी के बीच बसा एक टापू है, जहां पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक कचुमरा गांव में 6865 की आबादी है. ये गांव मुख्यधारा से बिल्कुल कटा हुआ है. यहां स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सिर्फ बोट क्लब ही एक विकल्प है. अब कोरोना के इलाज और वैक्सीनेशन के लिए भी बोट क्लब ही है.

इस नाव में ही डॉक्टरों की टीम आती है 

(फोटो : अंजना दत्ता)


बोट क्लीनिक की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं मिलना आसान हो गया है. क्योंकि इन नावों में कोविड वैक्सीन भी होती हैं. वर्ना हमें 10-15 किलोमीटर दूर जाना होता.
नूर जमाल, ग्रामीण

नूर जमाल होक बताते हैं कि कैसे बोट क्लीनिक से पहले चिकित्सा सहायता मिलना एक कठिन काम था

फोटो : अंजना दत्ता

कचुमरा गांव के रहने वाले नूर जमाल ने क्विंट को बताया कि भेलेंग नदी की तरफ रहने वाले लोग भी बरपेटा कैंप से वैक्सीन लगवाने उनके गांव तक आए.


और ये सिर्फ दो गांवों की नहीं, पूरे राज्य में नदी के टापू पर बसे सभी गांवों की कहानी है.

हमारे पास सब-सेंटर्स नहीं हैं. हमें वैक्सीन के लिए नदी पार करके जाना होता, लेकिन अब गर्भवती महिलाओं को बोट क्लिनिक प्रोग्राम के तहत फ्री चेकअप मिलता है.

ग्रामीणों की जिंदगी को बेहतर बना रहे बोट क्लीनिक 

एक अन्य ग्रामीण रियाजउद्दीन मुंशी ने बताया कि लगभग 300-400 ग्रामीणों को बोट क्लीनिक की वजह से ही कोरोना वैक्सीन लग सकी है. रियाजउद्दीन आगे कहते हैं ''बोट क्लीनिक हर महीने आती है और वैक्सीन के अलावा अन्य दूसरे इलाज भी इससे कराए जा सकते हैं. हमारे पास गांव में और कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है.''

बोट क्लीनिक में ही डॉक्टरों और नर्सों की टीम होती है 

फोटो : अंजना दत्त

आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं जैसे लोकल हेल्थ वर्कर ग्रामीणों को जागरुक कर बोट क्लब तक लाते हैं, जिससे वे वैक्सीन लगवा सकें. और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का भी इलाज करा सकें.

सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज (CNES) ने 2008 में असम के डिबरूगढ़ जिले में पहली बोट क्लीनिक लॉन्च की थी. इसके लिए फंड नेशनल रूरल हेल्थ मिशन, असम के तहत दिया गया था.

बोट क्लीनिक के पीछे लक्ष्य था ब्रह्मपुत्र नदी के टापू पर बसे 2000 गांवों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना. अब यही बोट क्लीनिक कोरोना के खिलाफ जंग को मजबूत कर रही हैं, इनके जरिए सुदूर गांवों में रह रहे लोगों तक वैक्सीन और स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं.

2,000 गांवों तक है बोट क्लीनिक की पहुंच

फोटो : अंजना दत्ता

कोरोना और वैक्सीन से जुड़ी भ्रामक सूचनाएं अब भी चुनौती

हालांकि, कोरोना वायरस और वैक्सीन को लेकर फैल रही भ्रामक सूचनाएं अब भी हेल्थ वर्कर्स के लिए बड़ी चुनौती हैं. क्विंट से बातचीत में आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे अफवाहें वैक्सीनेशन से लोगों को डरा रही है और वैक्सीनेशन की मुहिम को प्रभावित कर रही हैं.

लोगों के डर को दूर करने के लिए बोट क्लीनिक्स के डॉक्टर नुक्कड़ नाटक करते हैं, पम्पलेट बांटते हैं, घर - घर जाकर कोरोना वायरस को लेकर लोगों को जागरुक करते हैं. साथ ही लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ धोने और मास्क पहनने का महत्व समझाते हैं.

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लोगों ने ये अफवाह सुन रखी है कि वैक्सीन लेने से उनकी मौत हो जाएगी. या फिर वैक्सीन लेने के सिर्फ 3 महीने बाद तक ही वो जीवित रहेंगे. इस तरह की अफवाहों के चलते अब भी कई लोग वैक्सीन नहीं लगवा रहे.
अना खातून, ग्रामीण, कचुमरा गांव

बोट क्लीनिक पर अब मैटरनल केयर भी दी जा रही है 

फोटो : अंजना दत्ता


बरपेटा बोट क्लीनिक की यूनिट 1 के जिला योजना अधिकारी सैकत शुक्ला कहते हैं-

''2020 में जब भारत में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले थे, तब हमने लोगों को जागरुक करने में काफी कठिनाइयों का सामना किया. लेकिन इस अगस्त में जब हमने यहां वैक्सीनेशन की शुरुआत की तबसे 2000 लोगों को टापू पर वैक्सीन लगाई जा चुकी है.

वैक्सीन का पहला डोज लेने वाली अंजुमा कहती ने हमें बताया कि अब उन्हें वैक्सीन से कोई डर नहीं लगता.

कई जागरुकता कार्यक्रमों का नतीजा है कि अब अंजुमा जैसे ग्रामीणों को डर नहीं लगता

फोटो : अंजना दत्ता


कोविड के बाद खुली स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल 

कोरोना वायरस के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं और टापुओं पर रह रहे हाशिए पर माने जाने वाले इस गरीब तबके के लोगों के बीच की दूरी साफ नजर आने लगी है. इन लोगों के पास मूलभूत सुविधाएं ही नहीं हैं. स्वास्थ्य जिनमें से एक है.

फोटो : अंजना दत्ता

पहले वैक्सीन के लिए ग्रामीणों को बहुत दूर जाना पड़ता था. वो हमें दिन रात फोन करते थे, ये पूछने के लिए कि अगला वैक्सीन कैंप कब होगा. अब वो ये जानकर काफी खुश हैं कि कैंप उनके घर के नजदीक ही है.
असमा बेगम, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता

बोट क्लीनिक से ग्रामीणों को मिल रहीं प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं

फोटो : अंजना दत्ता

कोविड 19 के अलावा इन क्लीनिकों ने ग्रामीण महिलाओं के लिए मातृ देखभाल (Maternity Care) को भी आसान बना दिया है.

कचुमरा गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एयारोन नेसा बताते हैं -

''चूंंकि बोट क्लीनिक की पहुंच अब चार (नदी के टापू) तक भी है. इसलिए हम गर्भवती महिलाओं, शिशुओं और बच्चों को भी नियमित लगने वाले इंजेक्शन लगा सकते हैं. ये हमारे लिए काफी मददगार है. बच्चों का विकास भी अच्छा हो रहा है. ''

भारत ने कोरोना वैक्सीन के 100 करोड़ डोज पूरे कर लिए हैं. इस सफलता के पीछे असली नायक यही हैं.

(रिपोर्टिंग : अंजना दत्ता)

(ये स्टोरी क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है.)

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