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रोजगार,अपराध और पलायन: पिछले 5 सालों में उत्तराखंड में कैसा रहा BJP का प्रदर्शन?

उत्तराखंड में पलायन बढ़ा है, जिसकी वजह है राज्य में रोजगार की कमी

अभिलाष मलिक
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>उत्तराखंड में पलायन बढ़ा है, जिसकी वजह है राज्य में रोजगार की कमी</p></div>
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उत्तराखंड में पलायन बढ़ा है, जिसकी वजह है राज्य में रोजगार की कमी

(फोटो: Altered by The Quint)

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उत्तराखंड में 14 फरवरी 2022 को विधानसभा चुनाव होंगे. उत्तराखंड में पिछले पांच सालों में बीजेपी (BJP) सरकार के तीन मुख्यमंत्री रहे हैं.

उत्तरखंड को नवंबर 2000 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से अलग कर बनाया गया था. राज्य की अपनी समस्याएं हैं जैसे कि रोजगार, पलायन और प्राकृतिक आपदाएं.

बेतहाशा बढ़ी महंगाई और कोविड-19 की तीसरी लहर के बीच, 14 फरवरी को राज्य में मतदान शुरू हो रहे हैं.

हमने सरकारी रिपोर्टों और आंकड़ों को देखा, ताकि ये पता लगा सकें कि पिछले पांच सालों में वर्तमान सरकार ने अपराध, रोजगार और स्वास्थ्य जैसे मानदंडों में कैसा प्रदर्शन किया है.

BJP के शासनकाल में राज्य की अर्थव्यवस्था

BJP सरकार में पिछले पांच सालों में, राज्य की अर्थव्यवस्था पिछली सरकार की तुलना में धीमी गति से बढ़ी है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जहां 2012 और 2017 (FY13-FY17) के बीच स्थिर मूल्य पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में 7.79 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ोतरी हुई, वहीं ये 2017 और 2020 (FY18-FY20) के बीच 6.01 प्रतिशत की दर से बढ़ी.

ये ध्यान देना जरूरी है कि GSDP या प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो राज्य का 2020-2021 का डेटा उपलब्ध नहीं है. ये वही समय है जब देश ने कोरोना लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी थी.

2017 और 2020 (FY18-FY20) के बीच प्रति व्यक्ति आय 4.63 प्रतिशत बढ़ी, जबकि वित्त वर्ष 2013 और वित्त वर्ष 17 के बीच विकास दर 6.71 प्रतिशत थी.

विकास इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय औसत के बराबर था.

हालांकि, ये ध्यान देना जरूरी है कि राज्य में प्रति व्यक्ति आय, राष्टीय प्रत व्यक्ति आय से काफी ज्यादा है.

जहां वित्त वर्ष 2015 में एक औसत भारतीय की प्रति व्यक्ति आय 94566 रुपये थी, वहीं उत्तराखंड में ये 1,58,919 थी. पिछली सरकारों के दौरान भी यही पैटर्न देखा गया था.

रोजगार के मामले में कहा खड़ा है उत्तराखंड?

भारत में बेरोजगारी का दस्तावेजीकरण करने वाले एक इंडिपेंडेंट थिंक टैक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मासिक डेटा से पता चलता है कि राज्य में बेरोजगारी पिछले 5 सालों में बढ़ी है, जो मार्च 2020 और सितंबर 2020 में चरम पर थी. ऐसा हो सकता है कि इस स्थिति के जिम्मेदार लॉकडाउन और दूसरे प्रतिबंध हों.

कुल मिलाकर, जनवरी और अप्रैल 2017 के बीच राज्य में 49,000 बेरोजगार लोग थे, जिनमें से अधिकांश (30,000) ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे.

सितंबर और दिसंबर 2021 के बीच बेरोजगारों की संख्या में दोगुने से ज्यादा वृद्धि हुई और ये संख्या 1,18,000 हो गई.

बेरोजगार युवाओं की बढ़ती संख्या के लिए सिर्फ COVID-19 लॉकडाउन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि 2019 की अंतिम तिमाही में ये संख्या 1,54,000 से भी ज्यादा थी.

इसके अलावा, सितंबर-दिसंबर 2021 के लिए श्रम बल भागीदारी दर (LPR) 31.73 प्रतिशत थी, जबकि रोजगार दर 30.43 प्रतिशत थी.

राज्य में पलायन (माइग्रेशन) एक और मुद्दा है. उत्तराखंड सरकार के ग्राम्य विकास और पलायन आयोग की ओर से सितंबर 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछली जनगणना (2011) से निर्जन गांवों की संख्या बढ़ी है.

सबसे ज्यादा निर्जन गांव अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिले में पाए गए.

रिपोर्ट के मुताबिक, 3,946 ग्राम पंचायतों के 1.18 लाख लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं, जबकि 6,338 ग्राम पंचायतों के 3.83 लाख लोग अर्ध-स्थायी आधार (वे समय-समय पर घर जाते हैं) पर पलायन कर चुके हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य के 16,793 गांवों में से 1,048 निर्जन थे और पौड़ी गढ़वाल जिले के 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने कहा कि पलायन का मुख्य कारण रोजगार था.

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उत्तराखंड में हुई अपराध में वृद्धि

नेशनल क्राइम ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, उत्तराखंड में बीजेपी सरकार के दौरान अलग-अलग धाराओं में दर्ज होने वाले आपराधिक मामलों की संख्या में पिछली सरकार की तुलना में वृद्धि हुई है.

2017 में रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या 12,889 थी, जो 2020 में बढ़कर 13,812 हो गई. उत्तराखंड उन कुछ राज्यों में से एक था, जहां 2020 में रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई, क्योंकि अधिकांश अन्य राज्यों में COVID-19 लॉकडाउन के कारण कम मामले दर्ज हुए.

2017 से 2020 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध भी 79.2 प्रतिशत बढ़े.

राज्य में दंगों के मामले भी 2016 से 40.5 प्रतिशत बढ़कर 481 से 676 हो गए हैं.

शिशु मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) की स्थिति

शिशु मृत्यु दर (IMR) और जीवन प्रत्याशा दर (LER) को ट्रैक करके राज्य के स्वास्थ्य ढांचे का आकलन किया जा सकता है.

IMR क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों की स्थिति को दर्शाता है. ये प्रति हजार पैदा हुए जीवित बच्चों पर होने वाली एक साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या होती है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (NFHS) के मुताबिक, उत्तराखंड के लिए IMR प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 39.1 मृत्यु थी.

IMR 2015-2016 में किए गए पिछले NFHS-4 सर्वे से थोड़ा बेहतर हुआ है- लेकिन 1,000 जीवित जन्मों पर 39.7 मृत्यु - ये राष्ट्रीय औसत को पार कर गया है. NFHS-4 सर्वे के अनुसार राष्ट्रीय औसत IMR 40.7 था, जो NFHS-5 सर्वे में घटकर 35.2 रह गया है.

किसी शख्स के कितने सालों तक जीने की संभावना होती है, उसे LER कहते हैं. ये राज्य में 71.5 साल (2012-16) से घटकर 71 साल (2013-17) और 2014 और 18 के बीच 70.9 साल हो गया है.

हालांकि, LER राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रहा है, जो 68.7 (2012-16) से बढ़कर 69 वर्ष (2013-17) और 69.4 वर्ष (2014-18) हो गया है.

उत्तराखंड में बिजनेस कितना आसान है?

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, निवेश के अनुकूल कारोबारी माहौल का एक संकेतक होता है. पिछली सरकार में इसमें काफी सुधार देखा गया, जो 2015 में 23 से 2016 में 9 पहुंच गया.

हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा प्रकाशित ईज ऑफ डूइंग (EoDB) बिजनेस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की EoDB रैंकिंग 2017 के बाद से दो रैंक गिरकर 11 हो गई है और बीजेपी सरकार में 2019 में इसी स्तर पर बनी हुई है.

विश्व बैंक की ओर से 2021 में अपनी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट बंद करने से पहले, 2018 के बाद से 14 स्थानों में सुधार के बाद 2019 में 190 देशों में भारत की रैंक 63 थी.

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