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जब से कोरोनावायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में हुआ है, तभी से इस महामारी को लेकर तरह-तरह की अफवाहें और फेक न्यूज फैल रहीं है. सोशल मीडिया पर हाल में एक मैसेज खूब वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि कोरोनावायरस हवा में 8 घंटे तक रह सकता है.
इस वायरल मैसेज के साथ एक स्टोरी का लिंक दिया गया है, इस लिंक के साथ लिखा है- “विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले कहा था कि कोरोनावायरस हवा के जरिए फैलने वाली बीमारी है, उसने अब खुद की बात को नकारा है. हर तरह के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यात्रा करने से बचें, खासतौर से छोटे साधनों से जिनमें कम जगह होती है”
ये वायरल मैसेज CNBC की स्टोरी के आधार पर लिखा गया है, जिसका शीर्षक है. ‘WHO considers ‘airborne precautions’ for medical staff after study shows coronavirus can survive in air.’ मतलब एक स्टडी के मुताबिक कोरोनावायरस हवा में रह सकता है विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मेडिकल स्टाफ के लिए हवा से फैलने वाले वायरस जैसी हिदायत बरतने को कहा है.
इस आर्टिकल में कई दावे किए गए हैं हम एक-एक करके उनकी जांच करेंगे.
सबसे पहली बात कि स्टोरी में किसी भी ऐसी स्टडी का लिंक नहीं है जिसमें दावा किया गया हो कि ये वायरस हवा या फिर प्लास्टिक, पेपर या स्टील में सर्वाइव कर सकता है. इसमें सिर्फ इतनी बात लिखी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और कुछ वैज्ञानिक समूहों द्वारा कुछ स्टडी की जा रही हैं, जिससे ये पता लगाया जा सके कि वायरस किस-किस सतह पर कितनी देर तक सर्वाइव करता है.
द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसिन की स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोनावायरस हवा में 3 घंटे तक मौजूद रहता है. तांबे पर ये 4 घंटे तक, कार्डबोर्ड पर ये 24 घंटे तक, प्लास्टिक और स्टील पर ये 2-3 दिन तक मौजूद रहता है, लेकिन इस स्टडी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कोई कमेंट नहीं है.
दूसरा, वायरल मैसेज में जो CNBC के आर्टिकल का लिंक दिया गया है, उसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रेस कॉन्फ्रेंस की भी बात की गई है.
इसमें WHO ने बताया है कि कोरोनावायरस एयरबॉर्न न होकर एयरोसोल बॉर्न बीमारी हो सकती है. मतलब ये ड्रॉपलेट के जरिए फैल सकती है. जब स्वास्थ्य कर्मचारी एयरोसोल गैदरिंग के काम में लगते हैं, तब ये संक्रमित कर सकती है. CNBC के आर्टिकल में इसे एयरबॉर्न कहा गया है और ये आर्टिकल में विशेष संदर्भ में कहा गया है. WHO ने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की उसमें एयरोसोल-बॉर्न-ट्रांसमिशन की बात की गई थी.
WHO की संक्रमण रोगों पर काम करने वाली डॉक्टर मारिया वान ने सफाई दी है कि ये बीमारी किसी व्यक्ति के छीकने या कफ की वजह से जो लिक्विड की छोटी-छोटी महीन बूंदों निकलती हैं उनसे फैलता है.
फैक्ट: CNBC के आर्टिकल के हेडलाइन में जरूर एयरबॉर्न शब्द का इस्तेमाल किया गया है. लेकिन न तो आर्टिकल में और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साफ कहा है कि ये वायरस एयररोसोल बॉर्न हो सकता है. दोनों ने वायरस को एयरबॉर्न नहीं कहा है. मतलब कोरोनावायरस ड्रॉपलेट्स के जरिए फैल सकता है लेकिन ये हवा के जरिए फैलता है ऐसा नहीं कहा है.
हमने अभी आपको बताया कि ये वायरस एयरबॉर्न नहीं है लेकिन कुछ परिस्थिति में ये एयरोबॉर्न हो सकता है.
फैक्ट: द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसिन में छपी स्टडी के मुताबिक वायरस एयरोसोल बनाने की प्रक्रिया तहत कुछ देर तक हवा में ठहर सकता है. विश्व सवास्थ्य संगठन ने इसका संज्ञान लेते हुए स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए गाइडलाइन जारी की है.
वायरल मैसेज के दावे के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो पहले कहा था अब उसे नकार रहा है.
पहली बात तो ये कि विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी बात पर अभी भी कायम है कि कोरोनावायरस लिक्विड ड्रापलेट्स के जरिेए फैलता है. ये लिक्विड की छोटी-छोटी बूंदें जहां जहां गिरती हैं, उस जगह के संपर्क में जो भी आता है उसको ये अपना शिकार बनाता है.
WHO ने ये भी कहा है कि वो हालिया रिसर्च पर काम कर रहा है कि कैसे कोरोनावायरस फैलता है. WHO ने कहा है कि अगर कोई नई जानकारी मिलेगी तो हम शेयर करेंगे.
दूसरी बात ये कि WHO ने हेल्थ वर्कर्स को जारी किए अपने COVID-19 एडवायजरी में अब तक बताया है कि ‘ड्रॉपलेट्स के जरिए या संपर्क में आने से ये वायरस फैलता है इसमें आम तौर पर हवा के जरिेए होने वाला संक्रमण शामिल नहीं है.’
जैसे कि WHO डॉ मारिया वान ने बताया है कि-
फैक्ट: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सलाह दी है कि एयरोसोल जनरेटिंग प्रोसीजर के वक्त एयरबॉर्न सावधानियों का खास ख्याल रखें.
WHO की ही डॉ क्षेत्रपाल ने बताया है कि
डॉक्टर पूनम क्षेत्रपाल बताती हैं कि एयरोसोल ट्रांसमिशन की भी थोड़ी संभावना रहती है. चीनी अधिकारियों ने एयरोसोल ट्रांसमिशन की भी बात कही है. चीनी अधिकारियों ने बताया है कि बंद जगह पर एयरोसोल ट्रांसमिशन की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन अभी इस तरह के संक्रमण को समझने के लिए और डाटा की जरूरत होगी.
तो कुल मिलाकर अभी एयरोसोल ट्रांसमिशन के लिए भी और सबूत और डाटा चाहिए होगा जिससे इसके हवा के जरिेए संक्रमण की पुष्टि हो सके. सही यही होगा कि हम सारे एहतियान कदम उठाएं जैसे सोशल डिस्टेंटिंग का पालन करना. अगर अस्वस्थ महसूस करें तो सेल्फ क्वारंटाइन करें और सुरक्षित रहने के लिए डॉक्टर से सलाह लेते रहें.
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