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‘कभी-कभी आधी रात को, मैं अपनी अंतरात्मा को परखता हूं. जिंदा है या नहीं, क्योंकि हर रोज अंतरात्मा धीर-धीरे मर रही है.’
अगर आप क्लेम करते हैं कि ये पोयम राम जेठमलानी ने लिखा था, जैसा सोशल मीडिया पर हजारों लोग क्लेम करते हैं, तो ये गलत है.
न्यू फेक न्यूज वायरस में न्यूज नया है, सिर्फ वीडियो और इमेज पुराने हैं. "Indian Army’s brutality against the Muslims”, ये है एक फेक न्यूज वायरस का टाइटल.
इस वीडियो में यूनिफॉर्म में एक सोल्जर एक सिविलियन को पीट रहा है. ये वीडियो वायरल है. जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने के बाद कई पोस्ट वायरल हुए. लेकिन सच ये है कि ये वीडियो 2009 का है. दूसरी बात कि ये वीडियो इंडिया का नहीं, पाकिस्तान का है. पाकिस्तान के स्वात वैली का है.
जो आर्मी पर्सनल पीट रहा है, वो पाकिस्तानी सेना का सोल्जर है. और जिसकी पिटाई हो रही है, उस पर एक्सट्रीमिस्ट होने का शक है. 2009 के बाद ये वीडियो 2011 में सामने आया, फिर 2017 में और अब इस साल फिर वायरल हो गया है.
अब दूसरे फेक न्यूज वायरस की बात करते हैं. सोशल मीडिया पर एक इमेज वायरल है. इस इमेज में पार्क के भीतर कचरा दिख रहा है. पोस्ट में बोला गया कि शनिवार, यानी 21 सितंबर को, शिकागो के हाइड पार्क में क्लाइमेट चेंज डेमोंस्ट्रेशन के बाद ये कचरा जमा हुआ.
आर्मी वाले वीडियो की तरह ये इमेज भी सही नहीं है. ये इमेज है 420 नाम के एक अनऑफिशियल मेरुआना बेज्ड फेस्टिवल का है, जो अप्रैल में लंदन में हुआ था.
Zee न्यूज, DNA, India.com और कई मीडिया आउटलेट ने पब्लिश किया कि कैसे एक ‘वैदिक मैथ’ एक्सपर्ट ने चन्द्रयान 2 मिशन में इसरो को हेल्प किया.
वेबकूफ टीम ने वही किया, जो सारे मिडिया आउटलेट को करना चाहिए था. इसरो को कॉन्टैक्ट करना था और मैथ्स एक्सपर्ट्स को भी. दोनों ने इस न्यूज को नकारा. न्यूज रिपोर्ट में बोला गया था कि चन्द्रयान-2 मिशन में पूरी के शंकराचार्य ने वैदिक मैथ्स से मदद की. वो भी गलत था.
चन्द्रयान अपने ऑर्बिट में स्थिर हो सकता है. लेकिन इस बीच जवाहरलाल नेहरू को लेकर एक फेक न्यूज वायरल हो गया. इस महीने फेक न्यूज के कोटा में 1962 का एक इमेज दिखाया गया. इमेज में नेहरू भीड़ से घिरे हैं. और एक आदमी उन्हें रोक रहा है. क्लेम किया गया कि भीड़ में एक आदमी ने उन्हें थप्पड़ मारा था. नेहरू जवाब में उसे थप्पड़ मारना चाहते थे. लेकिन उनको रोक दिया गया.
टीम वेबकूफ ने इस इमेज की भी जांच की. रेफरेंस सोर्स से पता चला कि फोटो सचमुच 1962 का है. ओरिजिनली ये फोटो एसोसिएटेड प्रेस का है. उस वक्त जो न्यूज रिपोर्ट आई थी, उसके मुताबिक नेहरू को भीड़ के पास जाने से रोका जा रहा था. क्योंकि भीड़ अपने पीएम से मिलने को बेताब थी. इस फोटो का 'सीनो-इंडियन वॉर' या 'आर्यन भारत में रिफ्यूजी थे' जैसे कमेंट से कोई लेना-देना नहीं है.
तो ये थे कुछ फॉल्स नरेटिव, फेक फोटो गलत तरीके से बताए गए कोट और कविता, जो वायरल हैं, लेकिन सच नहीं हैं. आपको इन पर भरोसा नहीं करना है. अगर आप फेक न्यूज से सुरक्षित रहना चाहते हैं और दूसरे फेक न्यूज के बारे में जानना चाहते हैं, तो thequint.com और QuintHindi.com पर हमारा वेबकूफ सेक्शन देखिए.
तब तक एक काम कीजिए. फेक न्यूज को फॉरवर्ड करना बंद कर दीजिए.
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