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(वीडियो देखने से पहले आपसे एक अपील है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और असम में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के बीच कोरोना वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए हम एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल होता है. हम ये काम जारी रख सकें इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें. आपके सपोर्ट से ही हम वो जानकारी आप तक पहुंचा पाएंगे जो बेहद जरूरी हैं.
धन्यवाद - टीम वेबकूफ)
सोशल मीडिया पर एक लंबा टेक्स्ट मैसेज वायरल हो रहा है. जिसमें ये दावा किया गया है कि जर्मन वैज्ञानिकों ने पाया कि दिन में कई बार ''नमक और पानी के गुनगुने घोल से गरारे करने'' से नोवल कोरोनावायरस को फेफड़ों तक पहुंचने से रोका जा सकता है.
दावे में ये भी कहा गया है कि नमक पानी के घोल से गरारा करने पर मुंह में एक क्षारीय वातावरण बन जाता है जिससे कोविड-19 (Covid-19) वायरस के कई गुना बढ़ने में रोक लगेगी.
हालांकि, वायरल पोस्ट मे किए गए दावे झूठे थे. हमें जर्मन वैज्ञानिकों की ओर से किया गया ऐसा कोई रिकमंडेशन नहीं मिला. इसके अलावा, गर्म पानी से गरारे करने से कोविड-19 खत्म हो जाएगा और वायरस बदलते pH के प्रति संवेदनशील होते हैं, इस तरह के दावे महामारी की शुरुआत में ही वायरल हुए थे. जो ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच फिर से शेयर किए जा रहे हैं.
वायरल दावे में लिखा है, ''जर्मन वैज्ञानिकों ने कई अध्ययनों के बाद घोषणा की कि कोरोनावायरस, 2002 में SARS वायरस की तरह न सिर्फ फेफड़ों में रिप्रोड्यूस होता है, बल्कि संक्रमण के पहले सप्ताह के दौरान गले में भी व्यापक तौर पर फैलता है.''
मैसेज में लिखा है कि ''जर्मन वैज्ञानिक जर्मन स्वास्थ्य मंत्रालय को भरोसा दिलाते हैं: अगर सभी लोग दिन में कई बार खारे पानी के घोल से गरारे करते हैं, तो एक हफ्ते के भीतर पूरे जर्मनी में वायरस पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.''
इस दावे को कई यूजर्स ने फेसबुक पर शेयर किया है, जिनके आर्काइव आप यहां और यहां देख सकते हैं.
हमारी WhatsApp Tipline पर भी दावे से जुड़ी क्वेरी आई है.
हमने इसका पता लगाने के लिए कीवर्ड सर्च किया कि क्या सच में जर्मन वैज्ञानिकों ने अपनी किसी स्टडी में ऐसा पाया है? लेकन, हमें न तो कोई न्यूज रिपोर्ट मिली और न ही कोई स्टडी. वायरल दावे में किसी वैज्ञानकि या स्टडी का नाम भी नहीं दिया गया है, जिन्होंने इस तरह के किसी ''इलाज" का सुझाव दिया हो.
इसके बाद, हमने वायरल पोस्ट में बताए गए ''इलाज" की सत्यता के बारे में पता लगाने की कोशिश की. हमें दुनियाभर के फैक्ट चेकर्स के कई फैक्ट चेक मिले. क्विंट की वेबकूफ टीम ने भी इसी तरह के एक दावे की पड़ताल की थी, जिसे मार्च 2020 में महामारी की शुरुआत में शेयर किया जा रहा था.
पहले दावे के मुताबिक, गर्म पानी में नमक/सिरका डालकर डालकर गरारे करने से कोरोनावायरस का इलाज किया जा सकता है. हमने इंद्रप्रस्थ अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसंल्टेंट डॉ. सुरनजीत चैटर्जी से बात की. डॉ. चैटर्जी ने इस दावे को 2020 में ही खारिज कर दिया था.
डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने बार-बार कहा है कि ऐसे घरेलू उपचार सुरक्षा की झूठी भावना प्रदान करते हैं.
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, WHO, यूके नेशनल हेल्थ सर्विसेज और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी जैसी दुनिया भर की कई हेल्थ एथॉरिटीज ने भी बार-बार यही बात दोहराई है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा संचालित पत्रकारों के लिए COVID-19 रिसोर्स, Health Desk ने भी कहा कि गर्म पानी से गरारे करना COVID-19 के लक्षणों और गंभीरता को कम करने में प्रभावी हो सकता है, लेकिन इस बात के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि गर्म पानी से गरारे करने से COVID-19 संक्रमण को रुकेगा.
पोस्ट में दावा किया गया कि नमक और गर्म पानी से गरारा करने से "मुंह का pH, क्षारीय pH में बदल जाता है" और इससे वायरस के विकास में प्रतिकूल असर पड़ता है.
ऐसा ही एक दावा 2020 में वायरल हुआ था, जिसमे कहा गया था कि क्षारीय भोजन से कोविड-19 होने से रोका जा सकता है. हमने तब इस दावे का सच जानने के लिए, प्रमुख वायरोलॉजिस्ट डॉ शहीद जमील से संपर्क किया था, जिन्होंने बताया था कि वायरस का कोई pH मान नहीं होता.
Health Desk के मुताबिक, ये दावा 1991 के एक रिसर्च पेपर से शुरु हुआ. इस रिसर्च पेपर का टाइटल था, "Alteration of the pH Dependence of Coronavirus-Induced Cell Fusion: Effect of Mutations in the Spike Glycoprotein." हालांकि, पेपर में कोरोनावायरस माउस हेपेटाइटिस टाइप 4 (MHV4) के बारे में बात की गई थी, न कि नोवल कोरोनावायरस की जिससे कोविड-19 होता है.
Health Desk के मुताबिक, ''वायरस पानी आधारित नहीं होते हैं, इसलिए pH स्केल उस नोवल कोरोनावायरस SARS-CoV-2 पर लागू नहीं होता जो कोविड 19 का कारण बनता है.''
मतलब साफ है, कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के बढ़ते मामलों के बीच फिर से वही सब पुराने और निराधार दावे शेयर किए जा रहे हैं जिनमें कोविड 19 के प्रसार को रोकने के गलत तरीकों के बारे मे जानकारी दी गई है.
(ये स्टोरी द क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधारित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है.)
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