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कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित रेस्टोरेंट के अपने मालिकों और वहां काम करने वालों के नाम जाहिर करने वाले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के निर्देशों के लागू होने पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद, जस्टिस एसवी भट्टी द्वारा की गई मौखिक टिप्पणी के बारे में भ्रामक दावे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किए जा रहे हैं.
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवी भट्टी की बेंच ने कहा कि रेस्टोरेंट को केवल ये बताना होगा कि वो किस प्रकार का भोजन परोसते हैं.
जस्टिस भट्टी ने क्या कहा?: लीगल न्यूज वेबसाइट, लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस भट्टी ने कहा, "केरल में एक हिंदू द्वारा चलाया जा रहा शाकाहारी होटल है, और एक मुस्लिम द्वारा चलाया जा रहा... उस राज्य के जज के रूप में, मैं मुस्लिम के स्वामित्व वाले होटल में जाता था. वो अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन कर रहा था."
क्या है दावा?: Live Law के स्क्रीनशॉट को शेयर कर रहे लोगों ने दावा किया कि जस्टिस भट्टी ने कहा है कि, "केवल मुस्लिमों द्वारा चलाये जा रहे रेस्टोरेंट में अच्छी सफाई का ध्यान रखा जा रहा है, और हिंदुओं वालों में नहीं."
किसने किया शेयर?: X (पहले ट्विटर) यूजर @MrSinha_ और पत्रकार अजीत भारती ने अपने प्रोफाइल पर इस दावे को शेयर किया.
क्या ये सच है?: नहीं, ये दावे भ्रामक हैं.
जस्टिस भट्टी ने बस अपने एक अनुभव को शेयर किया था, कि वो केरल में एक मुस्लिम स्वामित्व वाले होटल में जाते थे, क्योंकि मालिक दुबई से लौटा था और इसलिए वो सफाई में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करता था.
न तो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने सभी हिंदू स्वामित्व वाले रेस्टोरेंट को अस्वच्छ बताने की कोशिश की और न ही उन्होंने उनका बहिष्कार करने के लिए कहा.
कोर्ट की कार्यवाही: पहले हमने एक्स (पहले ट्विटर) पर लाइव लॉ और बार एंड बेंच की कोर्ट की लाइव कार्यवाही देखी.
लाइव लॉ: वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि अगर किसी ने रेस्टोरेंट को शाकाहारी बताते हुए वहां मांसाहारी भोजन परोसा है, तो वो शख्स जेल जा सकता है.
इसपर, नॉन-प्रॉफिट संगठन एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सीयू सिंह ने कहा कि "कुछ लोग लहसुन आदि का सेवन नहीं करते हैं."
इसपर, सिंघवी ने जवाब दिया, "इस बारे में दुकानों को स्पष्ट करना चाहिए."
इस बातचीत पर, भट्टी ने कहा, "केरल में एक हिंदू द्वारा चलाया जा रहा शाकाहारी होटल है, और एक मुस्लिम द्वारा चलाया जा रहा... उस राज्य के जज के रूप में, मैं मुस्लिम द्वारा चलाये जा रहे होटल में जाता था. वो अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन कर रहा था."
इसी तरह, बार एंड बेंच ने भी 22 जुलाई को एक्स पर अपने पेज पर कोर्ट की कार्यवाही दिखायी थी.
उनके मुताबिक भी, दोनों वकीलों की बातचीत के बाद भट्टी ने कहा, "इसपर मैं आपके साथ हूं. शहर का नाम बताए बिना मैं आपके साथ शेयर करता हूं. दो शाकाहारी होटल हैं, एक हिंदू के स्वामित्व वाला और एक मुस्लिम के. मैं मुस्लिम के स्वामित्व वाले होटल में गया, क्योंकि मैं वहां के सफाई मानकों को पसंद करता हूं. वो दुबई से लौटा है. लेकिन वो सबकुछ बोर्ड पर स्पष्ट करते हैं."
The Times of India ने भी इस मामले पर रिपोर्ट की. उन्होंने जस्टिस भट्टी के उस अनुभव को रिपोर्ट किया जिसमें उन्होंने एक मुस्लिम शख्स के शाकाहारी रेस्टोरेंट का दौरा किया था. और वहां सब कुछ 'बोर्ड' पर स्पष्ट लिखा था और स्वच्छता मानकों के मुताबिक था.
दावे में भ्रामक क्या है?: दावा करने वालों ने इस ओर इशारा किया कि भट्टी का मतलब था कि हिंदू रेस्टोरेंट वाले सभी रेस्टोरेंट साफ-सफाई नहीं रखते इसलिए उनका बहिष्कार किया जाना चाहिए, और केवल मुस्लिम स्वामित्व वाले रेस्टोरेंट ही सफाई के अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करते हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी और उत्तराखंड सरकार के विवादास्पद आदेश पर रोक लगाने के बाद सोशल मीडिया यूजर्स के इस तरह के दावे ने जस्टिस भट्टी की टिप्पणी को सांप्रदायिक रंग दे दिया.
हालांकि, पूरी कार्यवाही के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के जज ने कभी भी अस्वच्छता के लिए हिंदू स्वामित्व वाले रेस्टोरेंट की आलोचना नहीं की.
जस्टिस भट्टी ने केवल अपना अनुभव शेयर किया. उन्होंने हिंदुओं के स्वामित्व वाले सभी रेस्टोरेंट्स को एक कटघरे में नहीं खड़ा किया. उन्होंने कोर्ट को शहर के दो रेस्टोरेंट में से केवल अपनी पसंद के बारे में बताया. उन्होंने भोजन और सफाई के मानकों के कारण मुस्लिम स्वामित्व वाले रेस्टोरेंट को 'चुना.'
इसके अलावा, भट्टी की ये टिप्पणी वो बात नहीं दर्शाती जो सुप्रीम कोर्ट कहना चाहता था. उस समय कोर्ट में चर्चा पसंद के मामले पर हो रही थी, और उन्होंने बस एक किस्सा सुनाया.
भट्टी की टिप्पणी का गलत मतलब निकाला गया और कोर्ट की कार्यवाही के दौरान उन्होंने जो कहा, उसे गलत तरीके से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.
निष्कर्ष: कांवड़ यात्रा को लेकर यूपी और उत्तराखंड सरकार के आदेश पर चल रही कोर्ट की कार्यवाही के दौरान जस्टिस भट्टी की टिप्पणी को भ्रामक दावे से शेयर किया गया और उसे सांप्रदायिक रंग दिया गया.
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