Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Webqoof Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कांवड़ यात्रा : दुकानों पर नाम लिखने का कानून UPA सरकार में बना था?

कांवड़ यात्रा : दुकानों पर नाम लिखने का कानून UPA सरकार में बना था?

खाद्य सुरक्षा विभाग से मिले लाइसेंस में प्रोप्राइटर या मालिक का नाम लिखा ही होना चाहिए ऐसी कोई अनिवार्यत्ता नहीं होती है.

FAIZAN AHMAD
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले ढाबों पर दुकानदारों का नाम लिखे जाने के आदेश पर विवाद</p></div>
i

कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले ढाबों पर दुकानदारों का नाम लिखे जाने के आदेश पर विवाद

फोटो : Altered by Quint Hindi

advertisement

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले ढाबे, रेस्टोरेंट या अन्य दुकानों के मालिक का नाम लिखवाने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. एक तरफ UP के प्रशासनिक अधिकारियों का जोर है कि दुकान मालिकों को बाहर लगे बोर्ड पर अपना नाम लिखना होगा, खासकर तब जब दुकान मालिक मुसलमान हों.

कई रिपोर्ट्स में दुकानदारों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन ने हिंदू दुकानों से मुस्लिम कर्मचारियों को निकालने को भी कहा है. हालांकि, प्रशासन के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को अंतरिम रोक लगा दी है.

एक तरफ प्रशासन की इस कार्रवाई का विरोध हो रहा है. तो दूसरी तरफ कुछ लोगों का दावा है कि ये कोई नई कार्रवाई नहीं है. बल्कि 2011 के बने कानून का पालन है, जो UPA सरकार में बनाया गया था. आइए, सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं कि इसमें कितनी सच्चाई है.

एंकर रुबिका लियाकत समेत कई सोशल मीडिया यूजर्स ने ये दावा किया. 2011 के कानून के स्क्रीनशॉट भी शेयर किए जा रहे हैं.

(रुबिका लियाकत की इस पोस्ट का अर्काइव यहां देखें)

(सोर्स - X/स्क्रीनशॉट) 

(ऐसे ही दावे करने वाले अन्य पोस्ट के अर्काइव आप यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.)

क्या ये सच है ? ये जानने के लिए हमने 2011 में बने खाद्य सुरक्षा कानून को पढ़ा और वर्तमान में प्रशासन की तरफ से जारी किए जा रहे आदेशों पर नजर डाली.

2011 में बना कानून क्या कहता है ?: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) रजिस्ट्रेशन, जिसे खाद्य लाइसेंस (food license) के रूप में भी जाना जाता है, यह खाद्य व्यवसाय में शामिल सभी संस्थाओं के लिए आवश्यक लाइसेंस है. FSSAI एक स्वतंत्र संगठन है जिसकी स्थापना खाद्य सुरक्षा एवं मानक (FSS) अधिनियम, 2006 के तहत भारत में खाद्य उत्पादों के लिए मानकों को विनियमित करने और स्थापित करने के लिए की गई है.

खाद्य सुरक्षा विभाग (Department of Food Safety), FSA अधिनियम और नियमों के प्रावधानों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है. यह विभाग घटिया, असुरक्षित या गलत ब्रांड वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री, निर्माण, वितरण और भंडारण को कंट्रोल करता है और उनपर प्रतिबंध लगाने का काम भी इसी का होता है.

क्या इस कानून में लिखा है कि दुकानदार का नाम ग्राहकों को बताया जाए? इस कानून के मुताबिक दुकानदार को जो लाइसेंस प्राप्त करना होता है उसमें उसे आवेदक का नाम या उसकी कंपनी का नाम लिखना होना है. बाद में यही जानकारी को लाइसेंस प्लेट पर दिखाना जरुरी होता है.

नियमों में लिखा है कि ये लाइसेंस दुकानकार के लिए दुकान के बाहर चस्पा करना अनिवार्य होता है. लाइसेंस से जुड़े सारे नियमों को यहां पढ़ा जा सकता है. इनमें कहीं नहीं लिखा है कि ग्राहकों के सामने दुकानदार का नाम या धर्म सार्वजनिक किया जाना जरूरी है.

(लाइसेंस के लिए नियम)

(सोर्स - स्क्रीनशॉट)

  • लाइसेंस में प्रोप्राइटर या मालिक का नाम लिखा ही होना चाहिए ऐसी कोई अनिवार्यत्ता यहां नहीं लिखी है. यानी ये दावा स्पष्ट रूप से भ्रामक है कि ऐसा पहले से होता आया है.

(लाइसेंस के लिए एप्लीकेशन का फॉर्मेट)

(सोर्स - स्क्रीनशॉट)

2011 के कानून में धार्मिक पहचान को लेकर कोई नियम ? : खाद्य सुरक्षा विभाग के 2011 के कानून में धार्मिक आधार पर कोई नियम नहीं बनाया है, सिर्फ मीट की दुकानों को धार्मिक स्थल से 100 मीटर दूर बनाने का नियम है. और बाकी नियम भी इन मीट की दुकानों के लिए हैं.

  • लाइसेंस या नेम प्लेट में नाम के जरिये दुकानदार का धर्म जाहिर हो ऐसा कोई कानून खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से नहीं बनाया गया है.

कांवड़ यात्रा को लेकर UP में प्रशासन के आदेश ? उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया जिसमें लिखा था, "श्रावण कांवड़ यात्रा के दौरान समीपवर्ती राज्यों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश होते हुए भारी संख्या में कांवड़िये हरिद्वार से जल उठाकर मुजफ्फरनगर जनपद से होकर गुजरते हैं. श्रावण के पवित्र माह में कई लोग खासकर कांवड़िये अपने खानपान में कुछ खाद्य सामग्री से परहेज करते हैं. पूर्व मे ऐसे दृष्टान्त प्रकाश मे आये हैं जहां कांवड़ मार्ग पर हर प्रकार की खाद्य सामग्री बेचने वाले कुछ दुकानदारों द्वारा अपनी दुकानों के नाम इस प्रकार से रखे गए जिससे कांवड़ियो मे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होकर कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हुई.''

(मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश)

(सोर्स - मुजफ्फरनगर पुलिस)

आदेश में आगे दुकानदारों से अनुरोध किया गया है कि वे मालिकों का नाम प्रदर्शित करें, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधा हो, आरोप-प्रत्यारोप से बचा जा सके. जैसा कि हमने पहले बताया 2011 के नियमों में ऐसा अनिवार्य नहीं है कि दुकान मालिक का नाम सार्वजनिक किया जाए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हालिया आदेश में विवादित क्या ? : कांवड़ यात्रा के रूट पर पड़ने वाले ढाबा संचालकों ने मीडिया से बात करते हुए प्रशासन की तरफ से दिए गए ऐसे कई मौखिक आदेशों की जानकारी दी है, जो न तो नियम में हैं, न ही UP के प्रशासन अधिकारियों की तरफ से जारी किए गए नोटिस में.

  • ढाबे पर मालिक और काम करने वाले कर्मचारियों की लिस्ट लगाने को कहा गया है.

  • हिंदू ढाबे पर काम कर रहे मुस्लिम कर्मचारियों को छुट्टी पर जाने के लिए कहा गया है.

  • मीट-मछली, मांस, अंडे बिकने वाली दुकानों के नाम के बोर्ड छुपाने के भी आदेश दिए गए हैं.

  • भले ही पुलिस इसे अनुरोध कहे, लेकिन इंटरनेट पर मौजूद कई वीडियो में पुलिस को खुद नाम का स्टीकर लगाते हुए देखा जा सकता है.

  • कई दुकानदारों और ठेले वालों ने मीडिया को बताया कि उन्हें उनकी पहचान जाहिर करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जाहिर है कि ऐसा करने को भी 2011 के नियमों में नहीं लिखा है.

यह कांवड़ यात्रा को ध्यान में रख कर लिया गया प्रशासनिक फैसला है, जबकि FSSAI के नियम किसी भी तरह के धार्मिक कार्य, खास समय के मुताबिक नहीं बदलते हैं.

अहम् बात यह है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा विभाग को जो आदेश देना चाहिए था वह उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी यह टिप्पणी की है.

न्यूज रिपोर्ट्स: पुलिस ने इस फैसले को सिर्फ ढाबा संचालकों के नाम लिखने भर तक का बताया था. लेकिन UP Tak की इस वीडियो रिपोर्ट में देखा जा सकता है कि शिवा पंजाबी टूरिस्ट ढाबे नाम के एक ढाबे से मुस्लिम मैनेजर को छुट्टी पर भेज दिया गया है.

  • स्वतंत्र पत्रकार अजित अंजुम की इस रिपोर्ट में देखा जा सकता है कि ढाबा संचालकों को मालिक समेत सभी कर्मचारियों के नाम लिखने को कहा गया है.

BBC Hindi की इस रिपोर्ट में दुकानदार बता रहे हैं कि किस तरह प्रशासन ने उन्हें उनका नाम लिखा हुआ बोर्ड लगाने को मजबूर किया.

The Quint की इस रिपोर्ट में ठेले पर जूस बेचने वाला बता रहा है कि पुलिसवालों ने उसे ठेली पर उसका नाम लिखने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ? : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के इस फैसले पर अगली सुनवाई तक अंतरिम रोक लगा दी है. सुनवाई के दौरान जस्टिस रॉय ने कहा कि, "प्राधिकरण खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आदेश जारी कर सकता है, लेकिन जब तक कोई आदेश नहीं आता है, पुलिस शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकती है.''

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT