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गोलवलकर की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' को लेकर यह वायरल दावे गलत हैं

इस किताब में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि ओबीसी, एसटी या एससी महिलाओं को 'वेश्यावृत्ति में धकेला' जाना चाहिए.

ऋजुता थेटे
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>गोलवलकर की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' को लेकर यह वायरल दावे गलत है</p></div>
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गोलवलकर की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' को लेकर यह वायरल दावे गलत है

(Altered by Quint Hindi)

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एक किताब का पन्ना इस दावे से ऑनलाइन वायरल हो रहा है कि ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंघचालक की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' का पन्ना है.

फोटो में एक प्वाइंट को हाईलाइट किया गया है, जिसे लेकर दावा भी किया जा रहा है. इसमें लिखा है, "ओबीसी, एसटी और एससी लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाकर वेश्या बना दिया जाए."

इस पोस्ट का अर्काइव यहां देखें

(सोर्स - फेसबुक/स्क्रीनशॉट)

(इसी तरह के दूसरे दावों के आर्काइव्स को यहां और यहां देखा जा सकता है.)

क्या है सच्चाई?: गोलवलकर की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' में ऐसा कुछ नहीं लिखा है.

  • हमें इस किताब के हिंदी वर्जन में ऐसे किसी पन्ने या प्वाइंट का जिक्र नहीं मिला.

हमें कैसे पता चली सच्चाई?: हमें गोलवलकर की किताब का ऑनलाइन PDF मिली, जिसमें ऐसा कुछ नहीं लिखा था कि ओबीसी, एसटी और एससी समुदाय की लड़कियों को जबरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाए. हमने गोलवलकर की किताब को चेक किया, इसमें हमें न उस बात का जिक्र मिला, और न ही वायरल हो रहा पन्ना दिखा.

गोलवलकर की पुस्तक, बंच ऑफ थॉट्स

(सोर्स: पीडीएफ/स्क्रीनशॉट)

किस बारे में है ये किताब?: ये किताब राष्ट्रवाद, हिंदू समाज और सामाजिक संरचनाओं पर है.

  • ये स्वतंत्रता से पहले और बाद में भारत के घरेलू राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा करती है, और साथ ही धर्म, जाति और आदिवासी कल्याण जैसे सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती है.

  • इस किताब में, गोलवलकर, अल्पसंख्यकों, खासकर से मुसलमानों की वफादारी को लेकर अपने विवादित विचार रखते हैं, और उन्हें 'राष्ट्रीय सुरक्षा में संभावित खतरे' के तौर पर देखते हैं.

  • वो जाति-विहीन समाज की भी वकालत करते हैं, लेकिन वर्ण व्यवस्था के ढांचे के अंदर ही. प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था थी, जो समाज को चार वर्णों या जातियों में बांटती थी.

  • गोलवलकर के विचार और उनकी किताबों को अक्सर विवादस्पद माना गया है, खासकर हिंदू धर्म और भारत में अल्पसंख्यकों की भूमिका पर उनके विचारों को.

  • हालांकि, साल 2018 में, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने गोलवलकर की किताब के कुछ हिस्सों को खारिज करते हुए सामाजिक उत्पीड़न को स्वीकार किया था.

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निष्कर्ष: गोलवलक की किताब के कवर पेज के साथ एक पन्ने की तस्वीर इस गलत दावे के साथ वायरल हो रही है कि उन्होंने अपनी किताब में ओबीसी, एसटी और एससी महिलाओं को "प्यार के झांसे में फंसाकर वेश्यावृत्ति में धकेलने" की बात कही है.

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