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भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद निशिकांत दुबे ने 1 अगस्त 2022 को लोकसभा में कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलांयस (NDA) के सत्ता में आने के बाद से पिछले 8 सालों में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की.
उन्होंने सरकार को क्रेडिट देते हुए और किसानों के प्रोटेस्ट का जिक्र करते हुए कहा कि, ''BJP ने किसानों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने की ताकत दी. जबकि इसके उलट कांग्रेस ने उन्हें कमजोर बना दिया था.'' उन्होंने संसद में महंगाई के दौरान ये बयान दिया था. (वीडियो आर्काइव यहां देखें)
हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) का किसानों की आत्महत्या से जुड़ा डेटा निशिकांत दुबे के बयान को बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं करता. हमने 2014 (जब पीएम मोदी सत्ता में आए) से लेकर 2020 (आखिरी उपलब्ध रिपोर्ट) तक का डेटा देखा. हमने पाया कि इस दौरान 43,181 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है.
गृह मंत्रालय के तहत आने वाले NCRB की ओर से पब्लिश ''एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया (ADSI)' रिपोर्ट में आत्महत्या से जुड़े आंकड़ों को इकट्ठा किया जाता है.
बयान में दुबे ने कहा कि पिछले 8 सालों में किसानों की आत्महत्या पर कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि कोई आत्महत्या नहीं हुई. इसलिए, हमने 2014 से लेकर 2020 तक के आंकड़ों पर नजर डाली.
ADSI रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 और 2015 के बीच किसानों की आत्महत्या की कई वजहों में से बड़ी वजहें रहीं दिवालियापन या कर्ज और खेती से जुड़े मुद्दे.
यही आंकड़े सरकार ने कई बार संसद में पेश किए हैं.
गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने किसानों की आत्महत्या की संख्या से जुड़े एक सवाल के जवाब में लोकसभा में यही आंकड़े पेश किए थे. उन्होंने 2018-2020 के आंकड़े पेश किए थे.
कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 30 नवंबर 2021 को संसद में, 2018 से लेकर 2020 तक का एक विस्तृत राज्यवार आकंड़ा दिया था.
हमें लोकसभा की वेबसाइट पर कई और जवाब मिले जिनमें किसानों की आत्महत्या से जुड़े मुद्दे पर चर्चा की गई थी. जो कि निशिकांत दुबे के इस दावे के उलट है जिसमें उन्होंने कहा है कि कोई चर्चा नहीं हुई.
अगर आप किसानों से जुड़ा डेटा नहीं देखते हैं, तो भी इस मुद्दे पर एक साधारण से गूगल सर्च करने पर आपको कई न्यूज रिपोर्ट्स मिल जाएंगी. जिनमें भारत में किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर चर्चा की गई है.
प्रोटेस्ट के दौरान भी कई किसानों की आत्महत्या से जुड़ी खबरें आईं थीं. कई किसानों ने प्रोटेस्ट की जगह पर और कई ने अपने गांव लौटने के बाद, आत्महत्या की थी. ये प्रोटेस्ट कृषि कानूनों के खिलाफ था, जिसे सरकार ने प्रोटेस्ट के एक साल बाद वापस ले लिया था.
इसलिए ये दावा बिल्कुल गलत है कि पिछले 8 सालों में किसी भी किसान की मौत आत्महत्या से नहीं हुई.
हमने निशिकांत दुबे से भी उनके इस बयान पर प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया है. जवाब आते ही स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
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