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सोशल मीडिया पर एक पोस्ट और एक वीडियो वायरल है, जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के कार्यकाल में लाए गए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम बिल (Prevention of communal and targeted violence Bill) का जिक्र है.
दावा : पोस्ट और वीडियो में दावा किया गया है कि इस बिल में धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया था. दावे में आगे कहा गया है कि बिल अगर पास हो जाता, तो दंगे में आरोपी भले ही किसी भी समुदाय का हो गिरफ्तारी हिंदू शख्स की ही होती. और भी कई तरह के दावे इसमें किए गए हैं.
क्या ये सच है ? : वायरल वीडियो और पोस्ट में किए गए दावे सरासर गलत हैं. ये सच है कि UPA सरकार अपने कार्यकाल में सांप्रदायिक दंगों में निशाना बनाए जाने वाले लोगों के संरक्षण के लिए ये बिल लेकर आई थी.
हमने ये पूरा बिल पढ़ा. कहीं भी ये उल्लेख नहीं है कि सांप्रदायिक दंगों में आरोपी कोई भी हो, गिरफ्तारी हिंदू समुदाय के शख्स की ही होगी.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजॉय घोष ने भी क्विंट हिंदी से ये पुष्टि की है कि बिल में किसी भी समुदाय से धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया गया था.
हमने ये सच कैसे पता लगाया ? : वायरल वीडियो और पोस्ट में किए गए दावों की पड़ताल करने से पहले सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए लाए UPA सरकार के इस बिल को लेकर कुछ बेसिक बातें जान लेते हैं.
2004 के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा विरोधी क़ानून बनाने का वादा किया था. इसी क्रम में सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली 'नेशनल एडवाइजरी कमेटी' ने ये बिल तैयार किया.
2005 में सरकार बिल लेकर आई, जिसकी काफी आलोचना हुई. 2011 में कुछ संशोधनों के बाद इसे फिर लाया गया.
14 फरवरी 2014 को संसद में बिल पर बहस हुई. भाजपा के विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया था.
अब हमने इस बिल को पढ़ा, ये जानने के लिए की क्या वाकई इस बिल में धर्म के आधार पर वैसे भेदभाव किए गए हैं, जैसा कि दावा किया जा रहा है? एक एक करके जानते हैं.
क्या बिल में कहा गया था कि सांप्रदायिक दंगों में आरोपी कोई भी हो गिरफ्तारी हिंदू शख्स की होगी ?
बिल में बताया गया है कि इसका उद्देश्य है उन लोगों के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकना, जिन्हें किसी एक समूह का होने की वजह से टारगेट किया जा रहा हो. ये कानून तब लागू होगा जब इस हमले से देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचता हो.
सवाल ये उठता है कि यहां किन समूहों की बात हो रही है ? तो इसका जवाब भी बिल में ही मिलता है. आगे कहा गया है कि समूह का मतलब धार्मिक या भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक समूह. या फिर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग. यानी जिस राज्य में जो समूह भाषाई या धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक होगा, उसके खिलाफ हो रहे अपराधों के लिए ये बिल बनाया गया था. यहां कहीं नहीं लिखा है कि बिल किसी एक धर्म के लोगों को संरक्षित करने के लिए बनाया गया है.
बिल के मुताबिक राज्य के धार्मिक या भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक, या फिर अनुसूचित जाति/जनजाति के उस शख्स को पीड़ित माना जाएगा जिसने शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना का सामना किया है. या फिर जिसे आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है.
अन्य धर्म का शख्स हिंदू महिला से दुष्कर्म करता है, तो उसे दोषी नहीं माना जाएगा ?
बिल में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिंदू महिला से दुष्कर्म होता है, तो मुस्लिम को आरोपी नहीं माना जा सकता. बिल में 'यौन उत्पीड़न' का एक अलग सेक्शन है. गौर करने वाली बात ये है कि ये बिल खासतौर पर राज्य के अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति/जनजाति को निशाना बनाने के लिए हो रहे हमलों को लेकर था. तो जाहिर है बहुसंख्यकों के खिलाफ होेने वाले किसी भी अपराध या बहुसंख्यक महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध की स्थिति में सामान्य कानून लागू होगा, वहां ये बिल लागू नहीं होगा.
मुस्लिम शख्स हिंदू शख्स को फंसाने के लिए झूठी गवाही भी देता है तो उसे कोई सजा नहीं मिलेगी ?
बिल में 'गवाहों' को लेकर एक अलग सेक्शन है. लेकिन, ऐसा कुछ नहीं लिखा है कि मुस्लिम शख्स अगर झूठी गवाही भी देता है तो उसे कोई सजा नहीं होगी. बिल में कहीं भी मुस्लिम या हिंदू शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया गया है. क्योंकि ये बिल हर राज्य के धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए है. किसी एक धर्म के लिए नहीं.
मुस्लिम को संपत्ति बेचने से इनकार करने पर होगी हिंदू शख्स को सजा?
PCTV बिल में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि कोई भी हिंदू शख्स मुस्लिम शख्स को संपत्ति बेचने से इनकार करता है तो उसे सजा होगी.
बिल पर सरकार ने क्या कहा था ? : 6 दिसंबर 2013 को सरकारी प्रेस PIB ने तत्कालीन प्रधाननमंत्री मनमोहन सिंह का एक बयान जारी किया था. इस बयान में डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था ''ये वोट जुटाने का कोई हथकंडा नहीं है''. बयान में आगे तत्कालीन पीएम ने कहा था कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अब इस बिल का आना और भी ज्यादा जरूरी हो गया है.
विशेषज्ञ की राय : हमने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजॉय घोष से संपर्क किया. उन्होंने बिल को लेकर सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावों को सिरे से खारिज कर दिया.
निष्कर्ष : UPA सरकार के कार्यकाल में लाए गए बिल को लेकर सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे सरासर भ्रामक हैं. बिल में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि दंगे में हमला कोई भी करे, गिरफ्तारी केवल हिंदू शख्स की होगी.
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