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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) 5 अक्टूबर को नागपुर आरएसएस मुख्यालय में विजयदशमी के मौके पर बोल रहे थे. इस दौरान उन्होंने ऐसी ''व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति'' पर बात की जो सभी पर ''समान रूप से'' लागू हो.
उन्होंने "धर्म-आधारित जनसंख्या असंतुलन" से सावधान रहने के लिए भी कहा और दावा किया कि इसी वजह से पूर्वी तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो जैसे नए देश बन गए हैं.
(मोहन भागवत का ये बयान वीडियो के 2 घंटे 17वें मिनट से देखा जा सकता है.)
उन्होंने आगे दावा किया कि जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है. उन्होंने कहा कि जन्म दर (प्रजनन दर), बल द्वारा धर्मांतरण, लालच या घुसपैठ की वजह से भी ऐसा होता है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) डेटा के मुताबिक, भारत में कुल प्रजनन दर (TFR) घट रही है. ये 1992-93 में 3.4 (NFHS-1) थी जो 2019-21 में घटकर 1.6 (NFHS-5) रह गई.
कोई महिला जब तक मां बन सकती है, उस समय तक किसी महिला के बच्चों की औसत संख्या क्या है, TFR कहलाता है.
मुस्लिम आबादी के साथ-साथ देश के हर धार्मिक समूह में TFR में गिरावट देखी गई है. हालांकि, मुसलमानों में प्रजनन दर सबसे ज्यादा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें लगातार गिरावट हुई है.
NFHS-5 के मुताबिक, ईसाई कम्युनिटी की प्रजनन दर 1.88 और सिख कम्युनिटी की 1.6 है, जो NFHS-1 के मुताबिक 2.87 और 2.43 थी.
हैंडबुक ऑन सोशल वेलफेयर स्टैटिस्टिक्स 2018 में पब्लिश जनगणना से जुड़े डेटा के मुताबिक, 2011 की जनगणना में भारत की कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत हिस्सा हिंदू आबादी का है. जो कि 1951 की जनगणना के मुताबिक 84.1 प्रतिशत थी. यानी इसमें 4.3 प्रतिशत की गिरावट आई है.
मुस्लिम आबादी की बात करें तो ये 1951 में 9.4 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई है. बाकी के धर्मों जैसे ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन की जनसंख्या 1951 से लेकर 2011 तक अपेक्षाकृत स्थिर है.
अगर हम हिंदू जनसंख्या की एक दशक में होने वाली वृद्धि देखें तो ये 1991 से 2001 के बीच 19.92 प्रतिशत थी. जो 2001 और 2011 के बीच में धीमी होकर 16.76 प्रतिशत हो गई.
इसी अवधि के दौरान, मुस्लिम आबादी की एक दशक में वृद्धि दर भी 29.52 प्रतिशत से गिरकर 24.6 प्रतिशत हो गई है.
NFHS-1 सर्वे में पाया गया कि मुस्लिम महिलाओं ने हिंदू महिलाओं की तुलना में 1.1 ज्यादा बच्चे पैदा किए. वहीं, लेटेस्ट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ये घटकर 0.42 प्रति महिला हो गया है.
जून 2021 में रिलीज Pew की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की धार्मिक संरचना पर प्रवास और धर्मांतरण का अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में रहने वाले 99 प्रतिशत लोग भारत में ही पैदा हुए हैं. इसमें ये भी कहा गया है कि धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों के देश छोड़ने की संभावना हिंदुओं से ज्यादा है.
इसमें ये भी कहा गया है कि 98 प्रतिशत भारतीय वयस्कों ने खुद की पहचान उसी धर्म में की, जिसमें कि उनका पालन-पोषण हुआ है.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सिर्फ धर्म ही नहीं, बल्कि शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक कंडीशन और महिलाएं कहां रहती हैं, जैसे फैक्टर्स प्रजनन दर को प्रभावित करते हैं.
इसी तरह, आर्थिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ भौगोलिक स्थिति ने भी महिलाओं के बच्चों की संख्या को प्रभावित किया. गरीब परिवार से आने वाले भारतीय मुस्लिमों के ज्यादा बच्चे थे, लेकिन शहरी क्षेत्रों में और बेहतर आय वालों में जन्म दर कम थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, लिंग देखकर गर्भपात कराने की घटनाएं भारतीय मुस्लिम और ईसाईयों की तुलना में हिंदुओं में ज्यादा होती हैं.
हालांकि, मोहन भागवत ने कथित जनसंख्या असंतुलन के लिए लिए किसी एक धर्म को जिम्मेदार नहीं ठहराया, लेकिन उन्होंने और अन्य दूसरे दक्षिमपंथी विचारधारा वाले नेताओं ने इसके पहले भी ये दावा किया है कि भारत में मुस्लिम आबादी बढ़कर हिंदू आबादी से ज्यादा हो सकती है.
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कई मंत्रियों जैसे गिरिराज सिंह, किरेन रिजिजू और शिवसेना के कई सदस्यों ने इसी तरह के कई दावे किए हैं.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से 2006 में पब्लिश सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी ये बताया गया है कि मुस्लिमों का अनुपात रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी पर पहुंच जाएगा और 2100 तक भारत की आबादी के 20 प्रतिशत से कम पर जाकर स्थिर हो जाएगा.
साफ है कि डेटा से पता चलता है कि किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी हिंदुओं की आबादी से ज्यादा नहीं हो रही. इसके अलावा, ये दावा कि धर्मांतरण करने और प्रवास की वजह से ''जनसंख्या असंतुलन'' हो रहा है, इसका भी कोई प्रमाण नहीं है.
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