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सुरेश चव्हाणके ने सुदर्शन न्यूज पर ‘UPSC जिहाद’ शो में बताए कई झूठ

सुरेश चव्हाणके के एक घंटे के शो में किए गए दावों की पड़ताल.

दिव्या चंद्रा
वेबकूफ
Published:
सुदर्शन न्यूज के एडिटर-इन-चीफ सुरेश चव्हाणके
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सुदर्शन न्यूज के एडिटर-इन-चीफ सुरेश चव्हाणके
(फोटो: Altered by The Quint)

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सुदर्शन न्यूज (Sudarshan News) के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके (Suresh Chavhanke) ने शुक्रवार 11 सितंबर को 'यूपीएससी जिहाद पर अब तक का सब बड़ा खुलासा' नाम से एक शो किया. शो में इस बात पर चर्चा की गई कि सिविल सर्विसेज के एग्जाम का स्वरूप और काम करने तरीका ऐसा बनाया गया, जिससे जो मुस्लिम समुदाय को फायदा पहुंचे.

सुदर्शन न्यूज को एक नोटिस जारी कर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने शो के प्रसारण की अनुमति ये कहते हुए दी थी कि सुदर्शन न्यूज ने यह आश्वासन दिया है कि जो नियम सभी चैनलों के लिए है उसका उल्लंघन अपने शो में नहीं करेंगे. मंत्रालय ने यह भी कहा था कि अगर शो में कोई भी कंटेंट कानून का उल्लंघन करती है, तो चैनल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

तो सवाल है कि क्या सुदर्शन ने नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया? आइए आपको सुरेश चव्हाणके के एक घंटे के शो में किए गए दावों की जांच करते हैं.

लेकिन, सबसे पहले यह समझते हैं कि सिविल सर्विसेज में कैंडिडेट को धर्म के आधार पर नहीं बांटा जाता है, क्योंकि यूपीएससी अपने रिजल्ट या कोई नोटिफीकेशन धर्म के आधार पर जारी नहीं करता है.

बल्कि, उम्मीदवारों को अलग-अलग आरक्षित समुदायों जैसे सामान्य श्रेणी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) की कैटेगरी में रखा जाता है.

पहला दावा: मुसलमानों को एज लीमिट में फायदा

चव्हाणके ने दावा किया कि यूपीएससी एग्जाम में मुस्लिम ओबीसी कैंडिडेट को गैर मुस्लिम कैंडिडेट या जनरल कैटेगरी के कैंडिडेट के मुकाबले अपर एज लीमिट में 3 साल की छूट दी जाती है.

सुदर्शन न्यूज के शो का स्क्रीन ग्रैब

सच क्या है?

अब, आइए देखें कि असल में एज लीमिट से जुड़े गाइडलाइन क्या कहते हैं. फरवरी में जारी यूपीएससी के 2020 की अधिसूचना में उल्लेख किया गया है कि जनरल कैटेगरी में एक उम्मीदवार 1 अगस्त 2020 तक 32 साल से कम का होना चाहिए.

यह आगे अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए अपर एज लीमिट में छूट देता है. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए, पांच साल तक की छूट है, जिसका मतलब है 37 साल की उम्र तक.

ओबीसी उम्मीदवारों के लिए, ये छूट तीन साल तक है, जिसका मतलब हुआ कि 35 वर्ष की आयु तक. ये नियम सिर्फ मुसलमानों पर ही नहीं बल्कि पिछड़े वर्ग से जुड़े सभी उम्मीदवारों पर लागू होते हैं. इस पूरे नोटिफिकेशन में किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं है.
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दूसरा दावा: कई प्रयास में एग्जाम देने का फायदा

अपने शो के 42वें मिनट पर चव्हाणके ने कहा, "जब मेरे ओबीसी भाई के कैटेगरी में घुसकर कोई परीक्षा देता है, तो उसका कितना असर होता है. जब हमारा जनरल कैटेगरी में परीक्षा देने वाला व्यक्ति है उसको 6 अटेम्पट करने को मिलता है, और जो मुस्लिम, उस बेनिफिट के कारण, 9 अटेम्पट देने का उसको फायदा मिलता है."

सच्चाई क्या है?

फरवरी 2020 की नोटिफिकेशन में उल्लेख किया गया है कि हर जनरल कैटगरी के उम्मीदवार को परीक्षा में असल में छह प्रयासों की अनुमति है.

इसमें आगे लिखा है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को नौ प्रयासों के रूप में अनुमति दी जाती है.

इस तरह कुछ व्यक्तियों की कुछ कैटेगरी हैं, जिन्हें छह के बजाय नौ अटेम्पट मिल सकते हैं, लेकिन शो में अटेम्पट नंबर को धार्मिक पहचान के साथ गलत तरीके से जोड़ा गया है.

तीसरा दाबा: इंटरव्यू लेने वाले कहते हैं कि मुसलमानों से 'अलग व्यवहार' किया जाता है

शो में 20:35 मिनट पर, चव्हाणके एक "मॉक इंटरव्यू" दिखाते हैं, जिसमें एक इन्टरव्यू लेने वाले को यह कहते हुए सुना जा सकता है, "आपका इन्टरव्यू एक साधारण इन्टरव्यू नहीं होगा... इसके कई कारण हैं. एक कारण आपकी उम्र है और दूसरा आपका समुदाय."

इसके बाद चव्हाणके ने सवाल किया कि ऐसा क्यों कहा जाता है कि "आपका" इन्टरव्यू "विशेष" होगा. “क्या इस इन्टरव्यू में ज्यादा नंबर हासिल करने वाले समुदाय से संबंधित है? अगर नहीं, तो जवाब दें."

सच्चाई क्या है?

दरअसल, असल इंटरव्यू के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए मॉक इंटरव्यू किए जाते हैं. जिसके बारे में चव्हाणके ने भी अपने शो में कहा है. वह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि यह "एक नकली इंटरव्यू है और असली इंटरव्यू नहीं है", लेकिन फिर भी वो इस मॉक इंटरव्यू के आधार पर अपनी धारणाएं बनाते हैं.

चलिए इस विशेष रूप से इस मॉक इंटरव्यू के बारे में बात करते हैं. हमने एक प्राइवेट एजेंसी द्रष्टि आईएएस एकैडमी द्वारा 22 अगस्त को अपलोड किए गए पूरे मॉक इंटरव्यू को सुना.

इंटरव्यू लेने वाले 30:54 मिनट पर कहते हैं, “आपका इंटरव्यू एक साधारण इंटरव्यू की तरह नहीं होगा. इसके लिए कई कारण हैं. एक कारण आपकी उम्र और दूसरा आपका समुदाय है. बहुत कम मुस्लिम उम्मीदवारों का इंटरव्यू होता है और हम लगभग सभी को इसके लिए तैयार रहने के लिए कहते हैं. इसके फायदे और नुकसान हैं.”

वह कुछ चुनौतियों का जिक्र करते हैं जो उम्मीदवार को असल इंटरव्यू में सामना करना पड़ सकता है. “आपको बोर्ड के सदस्यों के दिमाग में पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ेगा. ये पूर्वाग्रह आपकी उम्र के बारे में और कभी-कभी आपके समुदाय के बारे में हो सकते हैं.

वह स्पष्ट करते हैं कि ये समुदाय पूर्वाग्रह हमेशा नकारात्मक नहीं हो सकते, वे सकारात्मक भी हो सकते हैं, लेकिन "वे कभी-कभी अलग तरह से देखते हैं."

चौथा दावा: मुस्लिम यूनिवर्सिटीज में कोचिंग सेंटर मुस्लिमों को फेवर करते हैं

अपने शो के 47:38 मिनट पर, चव्हाणके मुस्लिम उम्मीदवारों को फेवर की जाने की लिस्ट के एक हिस्से को बताते हुए कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यूपीएससी के लिए पांच कोचिंग सेंटर स्थापित किए. उन्होंने कहा, इनमें से चार को मुस्लिम विश्वविद्यालयों में स्थापित किया गया था. चव्हाणके पूछते हैं कि कोचिंग सेंटर मुंबई विश्वविद्यालय या चेन्नई विश्वविद्यालय में क्यों नहीं स्थापित किया जाए.

सच्चाई क्या है?

चव्हाणके पांच विश्वविद्यालयों की बात कर रहे हैं: जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI), जामिया हमदर्द, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू यूनिवर्सिटी और भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी.

असल में कोचिंग सेंटर इन यूनिवर्सिटी में स्थापित किए गए थे, लेकिन, वे अकेले मुसलमानों को फायदा पहुंचाने के लिए स्थापित नहीं किए गए.

द प्रिंट पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष वेद प्रकाश, जिनके अंडर पांच कोचिंग सेंटर स्थापित किए गए थे, ने कहा कि इसका उद्देश्य सिविल सेवाओं में पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना था.

उन्होंने कहा,

“यह महसूस किया गया कि अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, जनजाति समुदायों के लोगों को सिविल सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व नहीं है, इसलिए पांच विश्वविद्यालयों में कोचिंग सेंटर शुरू किए गए.”

यहां तक कि जामिया की वेबसाइट पर प्रकाशित मई 2019 की एक नोटिफिकेशन में जिक्र किया गया है कि यूनिवर्सिटी की रेसिडेंशियल कोचिंग एकैडमी (आरसीए) सिविल सेवा के लिए "अल्पसंख्यकों, एससी, एसटी और महिलाओं (सभी समुदायों के) से संबंधित उम्मीदवारों को मुफ्त कोचिंग प्रदान करती है."

जाहिर है, सुरेश चव्हाणके द्वारा अपने शो में किए जा रहे कुछ दावे या तो झूठे हैं या फिर सही संदर्भ में नहीं हैं.

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