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नवरात्रि के बीच, राइट विंग चैनल सुदर्शन न्यूज के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने एक नए विवाद को जन्म देते हुए हल्दीराम के एक फलाहारी प्रोडक्ट को लेकर कुछ गंभीर आरोप लगाए. सुदर्शन चैनल की एक रिपोर्टर दिल्ली स्थित हल्दीराम के आउटलेट में गईं और कर्मचारियों से बात करते हुए आरोप लगाया कि कंपनी उर्दू में टेक्स्ट लिखकर कुछ छुपा रही है.
हल्दीराम के इस फलाहारी प्रोडक्ट पर सिर्फ अरबी नहीं, इंग्लिश भाषा में भी लिखा है, जो कि आमतौर पर एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है.
हालिया विवाद हल्दीराम के 'फलाहारी मिक्चर' को लेकर है. गूगल सर्च करने पर हमें अमेजन के पेज पर प्रोडक्ट के आगे और पीछे की पैकेजिंग दिखी. प्रोडक्ट में इस्तेमाल होने वाली सामग्री के बारे में यहां अंग्रेजी और अरबी दोनों ही भाषाओं में लिखा है. ये भी लिखा है कि ये प्रोडक्ट दुबई भेजा जाएगा.
यही जानकारी हमें हल्दीराम की वेबसाइट पर भी मिली. हमने ये भी चेक किया कि कोई प्रोडक्ट दुबई भेजने के लिए क्या-क्या नियम होते हैं, हमें प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) पर एक एडवाइजरी मिली.
APEDA भारत सरकार का एक विभाग है, जो खाद्य सामग्री या फिर कृषि सामग्री से जुड़े प्रोडक्ट्स को लेकर नियम बनाती है. एडवाइजरी के मुताबिक, भारत यूके के यूएई प्रोडक्ट भेजने वाला सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है. भारत के बाद यूके, नीदरलैंड, ओमान और यूएसए का नंबर आता है.
एडवाइजरी में लिखा है कि प्रोडक्ट की पैकेजिंग पर प्रोडक्ट का नाम, डलने वाली सामग्री, चेतावनियां, न्यूट्रिशन फैक्ट ये सभी जानकारी अरबी भाषा में लिखी होनी जरूरी हैं.
दुबई में बिकने वाले अन्य भारतीय प्रोडक्ट्स पर भी अरबी भाषा में ये जानकारी लिखी होती है. दुबई के सुपर मार्केट Noon पर ऐसे कई प्रोडक्ट देखे जा सकते हैं.
यूएई सरकार और प्रशासनिक विभागों ने सभी देशों से आने वाले प्रोडक्ट्स को लेकर ये नियम बनाए हैं. अमेरिकी प्रोडक्ट्स को लेकर भी यही नियम हैं.
हल्दीराम से पहले कई कंपनियां सोशल मीडिया के इन फेक नैरेटिव के निशाने पर रही हैं. हाल में हिमालया वैलनेट कंपनी की हलाल पॉलिसी का एक स्क्रीनशॉट वायरल होने पर भी विवाद बढ़ गया था.
वही लोग जो कर्नाटक में हलाल उत्पादों की बिक्री पर रोक की मांग कर रहे थे, वो हिमालय के खिलाफ भी कैंपेन चलाने लगे और सोशल मीडिया पर अपील करने लगे कि इस कंपनी के प्रोडक्ट न खरीदे जाएं.
गौर करने वाली बात ये है कि कई नामी गिरामी खाद्य प्रोडक्ट से जुड़ी कंपनियां मिडिल ईस्ट में अपना सामान पहुंचाने वाली सभी प्रोडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफिकेशन लेती हैं. लेकिन, सोशल मीडिया पर लोगों को कहां फुर्सत होती है ठहरकर इतना सोचने की.
हिमालय कंपनी ने एक स्पष्टीकरण जारी कर हलाल पॉलिसी की वजह बताई. साथ ही उन भ्रामक दावों का भी जवाब दिया, जिनमें कहा जा रहा था कि हिमालय कंपनी के प्रोडक्ट्स में मांस होता है. ऐसा ही एक कैंपेन बेंगलुरु के एक फूड स्टार्टअप iD Fresh Foods के खिलाफ भी चला था.
ये पहला मौका नहीं है जब सुदर्शन न्यूज के एडिटर सुरेश चव्हाणके ने किसी मामले को सांप्रदायिक रंग देने के लिए झूठा दावा किया है. इससे पहले चव्हाणके यूपीएससी को लेकर ये झूठा दावा कर चुके हैं कि IAS परीक्षा में मुस्लिम उम्मीदवारों को हिंदू उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा अटेम्प्ट मिलते हैं और आयु सीमा में भी छूट मिलती है.
क्विंट की वेबकूफ टीम ने इस दावे की पड़ताल की थी. और पड़ताल में दावा फेक साबित हुआ था. ये पड़ताल पढ़ने के लिंए नीचे दिए गए लिक पर क्लिक करें. सुप्रीम कोर्ट तक ने अपने आदेश में सुरेश चव्हाणके के इस शो को भ्रामक और भड़काऊ बताया था.
इसके अलावा चव्हाणके मुस्लिम बच्चों के जन्म पंजीकरण को लेकर भी भ्रामक दावा कर चुके हैं.
ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं जब सुदर्शन न्यूज ने सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए कई ऐसे दावे किए जो सच नहीं थे. गायिका लता मंगेशकर के निधन के बाद उनकी शोक सभा में पहुंचे शाहरुख खान को लेकर भी ऐसा ही दावा किया गया. दावा था कि शाहरुख लता मंगेशकर जी के शव पर थूक रहे थे, ये सच नहीं था.
न्यूजलॉन्ड्री की अक्टूबर 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, सुदर्शन न्यूज को 2011 से 2014 के बीच भी केंद्र सरकार से फंड मिला, लेकिन 2014 से 2018 के बीच सरकार से चैनल को मिलने वाले फंड में काफी बढ़ोतरी हुई.
न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, चव्हाणके को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में 2017 में यूपी में गिरफ्तार भी किया गया था. लेकिन, इसके बाद भी वे अपने चैनल के माध्यम से लगातार झूठ पर आधारित नफरती कंटेंट प्रसारित करते रहते हैं.
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