Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Webqoof Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019पुरुषों से ज्यादा महिलाएं क्यों होती हैं Fake News की शिकार?

पुरुषों से ज्यादा महिलाएं क्यों होती हैं Fake News की शिकार?

सोशल मीडिया पर महिलाओं को लेकर फैले उन पूर्वाग्रहों का असर देखा जा सकता है, जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है

सोनल गुप्ता
वेबकूफ
Published:
i
null
null

advertisement

महिलाओं को लेकर फैलाई गई भ्रामक सूचनाओं में ज्यादातर मामलों में उनके जेंडर को निशाना बनाया जाता है. मैंने ये अपने और कई महिला एक्टिविस्ट्स के साथ देखा है. ‘गुरमेहर कौर को देखो, वह कार में शऱाब पी रही है और डांस कर रही है’, तो फिर वह सही कैसे हो सकती है. इस तरह की बातों का इस्तेमाल मुझे बदनाम करने के लिए हुआ है.

24 साल की गुरमेहर कौर को तब से ही फेक न्यूज का निशाना बनाया जा रहा है, जब 2017 में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में हुई हिंसा का विरोध करना शुरू किया. कार में डांस करती एक लड़की का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर उसे गुरमेहर कौर का बताकर उनके चरित्र को खराब बताने के मकसद से शेयर किया गया.

<b>ऐसा आप कभी भी पुरुष राजनेताओं या एक्टिविस्ट के साथ होता नहीं देखेंगे. अगर वे कार में शराब पीकर नाच भी रहे हैं तो लोगों को फर्क नहीं पड़ता. </b>
गुरमेहर कौर

कौर उन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने खुद को झूठी खबरों का शिकार होता पाया. समाज का हिस्सा होने की वजह से सोशल मीडिया पर भी महिलाओं को लेकर फैले उन पूर्वाग्रहों का असर देखा जा सकता है, जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन, सवाल ये है कि आखिर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म खासकर उन महिलाओं के लिए लगातार टॉक्सिक क्यों होते जा रहे हैं जिन्होंने अपनी आवाज उठाई, अपना ओपिनियन रखा?

क्या महिलाएं फेक न्यूज के निशाने पर पुरुषों से ज्यादा हैं?

रिसर्च कहती है कि सार्वजनिक तौर पर महिलाओं पर अपने पुरुष प्रतिद्वंदी से ज्यादा निशाना साधा जाता है.  यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं उन सोशल मीडिया अकाउंट्स के ज्यादा निशाने पर रहती हैं, जो बड़े पैमाने पर फेक न्यूज फैलाते हैं.

रिसर्च में आए नतीेजे अमेरिका पर आधारित हैं. यहां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल अमेरिकी चुनाव के दौरान ट्विटर पर हुई टिप्पणियों को ट्रैक करने के लिए किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में भी भारत और यूक्रेन की ही तरह महिलाओं से जुड़ी कई झूठी सूचनाएं फैलाई गईं.

सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी की सीनियर रिसर्चर अंबिका टंडन कहती हैं, संख्या के तौर पर ये कह पाना आसान नहीं है कि महिलाएं, पुरुषों से ज्यादा निशाने पर रहती हैं. लेकिन, कई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि फेक न्यूज फैलाने वालों के लिए जेंडर एक निशाना होता है.

दुनिया के 51 देशों की महिलाओं पर किए गए सर्वे के आधार पर द इकोनॉमिस्ट की इंटेलीजेंस यूनिट ने पाया कि महिलाओं को ऑनलाइन परेशान किए जाने के हथकंडों में फेक न्यूज और मानहानी सबसे प्रमुख हैं.

सर्वे में शामिल हुई 67% महिलाओं ने उन अफवाहों का सामना किया जो महिलाओं के चरित्र को बदनाम करने के लिए फैलाई जाती हैं. 

महिलाएं क्यों हैं फेक न्यूज का निशाना ?


अंबिका टंडन कहती हैं, महिलाओं को लेकर सोशल मीडिया पर उपजा दुर्व्यव्हार सोशल मीडिया पर महिलाओं की कम सहभागिता का ही नतीजा है. यानी पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास सोशल मीडिया का एक्सेस कम है.  जीएसएम एसोसिएशन की मोबाइल जेंडर गैब 2020 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 50 प्रतिशत कम इंटरनेट का उपयोग करती हैं.

अंबिका कहती हैं - ‘’इसलिए यदि आप सोशल मीडिया को एक सार्वजनिक स्थान के रूप में चिह्नित करते हैं, तो इस सार्वजनिक स्थान पर मुख्य रूप से पुरुषों का वर्चस्व है. चूंकि हम एक पितसत्तात्मक व्यवस्था में रहते हैं, ऐसे में जेंडर एक अहम पहलू बन जाता है, जिसके आधार पर फेक न्यूज फैलाई जाती है.‘’

<b>जब उन्हें लगता है कि महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर विनम्र होकर पेश आने जैसे नियमों का पालन नहीं कर रही हैं. तो इसकी प्रतिक्रिया हमें हिंसा के रूप में देखने को मिलती है. </b>
अंबिका टंडन

थिंक-टैंक, कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के एक आर्टिकल के मुताबिक, खासकर राजनीति में आने वाली महिलाएं महात्वाकांक्षी और मुखर होती हैं. जबकि पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि महात्वाकांक्षी और मुखर तो सिर्फ पुरुष ही हो सकते हैं. यह माना जाने लगा कि महिलाएं सामाजिक नियमों को तोड़ रही हैं. महिलाओं को टारगेट किए जाने की ये एक बड़ी वजह है.

लिंग पर आधारित फेक न्यूज ( Gendered Disinformation) क्या है ?

EU Disinfo Labs ने हाल में 'स्त्रियों से द्वेश और गलत जानकारी' के विषय पर एक विश्लेषण किया.  इसके मुताबिक महिलाओं पर निशाना साधने के लिए गलत और भ्रामक सूचनाओं का इस्तेमाल करना, महिला के रूप में उनकी आइडेंटिटी ( पहचान) पर हमला है.

कोविड-19 महामारी के दौरान फैली गलत सूचनाओं का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि दो तरह से महिलाओं पर आधारित फेक न्यूज फैलाई जाती है

  • महिलाओं को एक दुश्मन के रूप में पेश करना
  • किसी विशेष एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए महिलाओं को 'पीड़ित' ' के रूप में दिखाना

भारत में हमने इन दोनों के ही कई उदाहरण देखे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

21 वर्षीय क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी के साथ ही सोशल मीडिया पर उनका चरित्रहनन करने के लिए भ्रामक सूचनाओं का एक पूरा कैंपेन चलाया गया.

यहां तक की दिशा के धर्म को लेकर भी झूठे दावे किए गए, उन्हें ईसाई बताया गया. टाइम्स नाऊ के आर्टिकल में झूठा दावा किया गया कि वे सिंगल मदर हैं.

इसी तरह सोशल मीडिया ट्रोल्स ने जामिया की एमफिल स्टूडेंट सफूरा जरगर को लेकर भी झूठी सूचनाएं फैलाई थीं. सफूरा को सीएए विरोधी प्रदर्शनों को लेकर गिरफ्तार किया गया था.

कई लोगों ने ये झूठा दावा किया कि सफूरा जरगर अविवाहित हैं और तिहाड़ जेल में अचानक उनकी प्रेग्नेंसी के बारे में पता चला. सफूरा जरगर की बहन ने बाद में सामने आकर ये साफ किया कि वे शादीशुदा हैं.

पत्रकार राणा अय्यूब से जुड़ी गलत सूचनाएं फैलाकर अक्सर उन्हें निशाना बनाया जाता रहा है. इस सिलसिले में ही उनके नाम पर वायरल किए गए उस फेक ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी शामिल है, जिसमें अफजल गुरु को शहीद बताया गया था.

द क्विंट को दिए इंटरव्यू में राणा अय्यूब ने कहा-

सबसे निचले स्तर पर गिरकर ट्रोल्स जो कर सकते थे किया. मेरे चेहरे को एडिटिंग के जरिए पॉर्नोग्राफिक वीडियो में जोड़कर मेरे सभी रिश्तेदारों, पैरेंट्स और पड़ोसियों को भेज दिया. ये विश्वास करने लायक नहीं था.

देश में महिला राजनेताओं को लेकर किए गए झूठे दावों का भीअंबार है. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की एक एडिटेड फोटो, जिसमें वे मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति की गोद में बैठी दिख रही हैं.

असली फोटो और वायरल की गई एडिटेड फोटो 

विरोधी विचारधाराएं और राजनीतिक पार्टियां सिर्फ सार्वजनिक तौर पर महिलाओं को टारगेट नहीं करते. बल्कि मैन्युप्लेट किए गए कंटेंट और वीडियो के जरिए इन महिलाओं को लेकर लगातार गलत नैरेटिव सेट करने की कोशिश में रहती हैं.

द क्विंट की वेबकूफ टीम की पड़ताल में ऐसे कई दावे झूठे साबित हुए, जो दक्षिणपंथ के 'लव जिहाद' नाम के नैरेटिव को सेट करने के लिए किए गए थे. अलग-अलग धर्म के लोगों की शादी को कभी ये कहकर दुष्प्रचारित किया जाता है कि हिंदू लड़की जाल में फस गई. तो कभी एक ही धर्म मानने वाले पति पत्नि को लेकर ही झूठा दावा कर दिया जाता है.

महिलाओं को ऑनलाइन निशाना बनाए जाने का क्या असर होता है

अंबिका टंडन के मुताबिक, महिलाओं पर होने वाले ऑनलाइन या ऑफलाइन अत्याचार में कई समानताएं हैं. जिस वजह से इनसे होने वाला असर भी कई मामलों में एक जैसा ही होता है.

फेक न्यूज और झूठे दावों का शिकार होने पर किसी को मेंटल ट्रामा से गुजरना पड़ सकता है. इससे एक अघोषित सेंसरशिप भी पैदा होती है, जिसके बाद महिलाएं या तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म छोड़ दें या फिर अपने विचार रखने से पहले काफी सोचें.

गुरमेहर कौर भी इसी तरह की घटनाओं का जिक्र करती हैं. वे बताती हैं कि उनके कई दोस्त , सार्वजनिक मंच पर अपनी राय साझा करने को सही नहीं मानते. क्योंकि वे इसके बाद सामने आने वाले नतीजों से नहीं निपट सकते.

यहां तक कि गुरमेहर कौर ने भी रामजस कॉलेज में साल 2017 में हुई हिंसा के खिलाफ छेड़े अपने ही अभियान से एक कदम पीछे हटने का फैसला ले लिया था. ये महसूस करते हुए कि उनके अपने जीवन, बचपन और माता-पिता के बारे में लगातार फैल रही गलत जानकारी आंदोलन को सुर्खियों से दूर कर रही है.

जब बहुत सारी गलत सूचनाएं फैल जाती हैं और यही झूठ टीवी पर भी बोला जाने लगता है या इसपर बहस होने लगती है, तो जाहिर है झूठ को बढ़ावा मिलता है. उस बात को लेकर डिबेट करने का कोई कारण ही नहीं हो सकता, जो सच नहीं है. आज एक झूठ है, कल कोई दूसरा आ जाएगा.
गुरमेहर कौर

अंबिका टंडन कहती हैं - फेक न्यूज का विपरीत असर तब ज्यादा होता है जब महिला के पास सपोर्ट कम होता है. उदाहरण के तौर पर परिवार ऑनलाइन हिंसा के बाद महिलाओं को सोशल मीडिया उपयोग करने की अनुमति नहीं देता, हो सकता है उनका मोबाइल ही जब्त कर लिया जाए.

क्या करना चाहिए ?

थिंक-टैंक, कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के आर्टिकल में ये सुझाव दिया गया है कि फेसबुक और ट्विटर जैसे टेक दिग्गजों को कंटेंट मॉडरेशन के माध्यम से जेंडर आधारित गलत सूचनाओं से निपटने के लिए बड़े कदम उठाने की जरूरत है.

अंबिका टंडन का सुझाव है कि भारत जैसे देशों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. खासकर भाषा में अपनी विशिष्टता को बढ़ाकर फेक न्यूज को पहचानने की दिशा में ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है. क्योंकि भारत में गलत सूचना उस संदर्भ और भाषा पर निर्भर करती है, जिसमें उसे फैलाया जा रहा है.

वह ये भी कहती है कि सबसे पहले और सबसे ज्यादा जरूरी है हमारे व्यवहार में बदलाव.  इन सब की जड़ पितृसत्ता है, उसे खत्म करना होगा. एक मीडिया लिटरेसी प्रोग्राम कराया जाए जिसमें छात्रों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करते समय संवेदनशील होना सिखाया जाए.

‘’कोविड-19 महामारी के दौरान कई लड़कियों को इंटरनेट का एक्सेस मिला है. उन्हें सोशल मीडिया का उपयोग करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. स्कूल एजुकेशन में संवेदनशीलता को भी शामिल किया जाए.’’

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT