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कैप्टन के करीबी सूत्रों के मुताबिक, ये रोड़मैप तैयार किया गया है कि अखिल भारतीय जाट महासभा को एक बार फिर से जीवित किया जाएगा। जोकि जाटों का एक बड़ा संगठन माना जाता है साल 2013 से लेकर अबतक कैप्टन इसके अध्यक्ष हैं ऐसे में, संगठन को एक बार फिर खड़ा करने के बाद पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में इस जाट महासभा के जरिए वे किसानों तक सीधा संपर्क साधेंगे। जिसका सीधा फायदा अगर पंजाब में न भी मिला, तो हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जरूर मिलेगा।
दरअसल पंजाब का किसान कैप्टन से भी नाराज है और पंजाब में कैप्टन को आगे कर के बीजेपी भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। फिलहाल भारतीय जाट महासभा को फिर से ऐक्शन में लाने के बाद, कैप्टन किसानों की एक समिति बनाएंगे। जोकि अन्य किसान संगठनों से सीधी बातचीत करेंगी और जिसको ये अधिकार होगा कि अन्य किसान संगठनों की ओर से अपनी सिफारिश सीधे सरकार को भेजे।
गौरतलब है कि कैप्टन ने गृहमंत्री से मुलाकात के बाद कहा था कि उन्होंने कृषि कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देकर, किसान आंदोलन को जल्दी खत्म करने का अनुरोध किया है। ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से भी स्पष्ट कर दिया गया था कि तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया जाएगा। जबकि कैप्टन ने सरकार को किसान आंदोलन को खत्म करने में बीजेपी की मदद करने का आश्वासन दिया है। जिसका सीधा फायदा कैप्टन को भविष्य की राजनीति में मिलेगा।
गौरतलब है कि ये पहली बार नहीं जब कैप्टन ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का ऐलान किया है। कैप्टन साल 1980 में लोकसभा का चुनाव तो कांग्रेस के सिंबल से जीते थे लेकिन साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी और अकाली दल में चले गए थे। जिसके बाद वे 1998 में फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए थे लेकिन उन दिनों भी कैप्टन ने अपना राजनीतिक दल शिरोमणि अकाली दल पैथिक बनाया था। कैप्टन एक बार फिर उसी राह पर आकर खड़े हो गए हैं।
--आईएएनएस
पीटीके/एएनएम
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