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अफगान विदेश मंत्री से मिले जयशंकर, शांति प्रक्रिया पर चर्चा

मोहम्मद हनीफ अतमार तीन-दिवसीय भारत दौरे पर 22 मार्च को दिल्ली पहुंचे

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मोहम्मद हनीफ अतमार तीन-दिवसीय भारत दौरे पर 22 मार्च को दिल्ली पहुंचे
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मोहम्मद हनीफ अतमार तीन-दिवसीय भारत दौरे पर 22 मार्च को दिल्ली पहुंचे
(फोटो: @DrSJaishankar/Twitter)

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अफगानिस्तान में शांति के लिए अशरफ गनी सरकार और तालिबान के बीच चल रही बातचीत के बीच विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमार भारत दौरे पर आए हैं. अतमार तीन-दिवसीय भारत दौरे पर 22 मार्च को दिल्ली पहुंचे. उन्होंने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से मुलाकात की. बैठक के बाद जयशंकर ने ट्विटर पर लिखा कि 'शांति प्रक्रिया और द्विपक्षीय सहयोग' पर विस्तार से चर्चा हुई.

भारतीय विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, "अफगानिस्तान के विदेश मंत्री हनीफ अतमार का स्वागत किया. शांति प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की. द्विपक्षीय सहयोग और विकास साझेदारी पर भी बातचीत हुई."

विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

(फोटो: @DrSJaishankar/Twitter)

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया कि भारत-अफगानिस्तान की 'रणनीतिक साझेदारी' को आगे बढ़ाते हुए जयशंकर और हनीफ अतमार ने कई मुद्दों पर बातचीत की.

बागची ने ट्विटर पर लिखा, "विकास सहयोग, व्यापार और निवेश, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, सुरक्षा सहयोग और शांति प्रक्रिया समेत द्विपक्षीय और क्षेत्रीय हितों के मुद्दों पर चर्चा हुई."

“विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर अफगानिस्तान को एक संयुक्त, शांतिपूर्ण और समृद्ध संविधानिक लोकतंत्र बनाने की तरफ भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया.” 
अरिंदम बागची, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
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क्यों महत्वपूर्ण है अतमार का दौरा?

भारत अब तक अफगानिस्तान में 3 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश कर चुका है. ये निवेश ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट्स में हैं. मतलब साफ है कि भारत अफगान शांति प्रक्रिया में एक बड़ा स्टेकहोल्डर है. लेकिन भारत की भूमिका इस प्रक्रिया में ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रही है.

हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी को एक खत भेजा था. इसमें यूएन के बैनर तले अमेरिका, रूस, पाकिस्तान, ईरान, चीन, भारत और अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया पर एक कॉन्फ्रेंस का प्रस्ताव था. मीडिया रिपोर्ट्स थीं कि भारत का नाम अमेरिका के कहने पर इसमें शामिल किया गया था.  

भारत कभी भी तालिबान से बातचीत का हिस्सा नहीं रहा है. बाकी देशों ने तालिबान के साथ एक टेबल पर बैठकर शांति प्रक्रिया पर चर्चा की है. लेकिन भारत ने कभी भी सक्रिय भूमिका नहीं निभाई है.

अफगान सरकार के पाकिस्तान के साथ रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं. इसकी एक वजह पाकिस्तानी इंटेलिजेंस ISI का तालिबान को लगातार समर्थन है. ऐसे में अफगानिस्तान चाहता है कि एशिया के इस क्षेत्र में भारत उसका करीबी बनकर रहे. इसी सिलसिले में पिछले साल अक्टूबर में हाई काउंसिल फॉर नेशनल रिकंसीलिएशन के चेयरमैन अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह भी भारत दौरे पर आए थे.

अब्दुल्लाह से पहले अफगानिस्तान में अमेरिका के खास दूत जालमय खलीलजाद भी एक दिन के भारत दौरे पर आए थे. खलीलजाद ने जयशंकर और NSA अजित डोभाल से मुलाकात की थी.  

अमेरिका और अफगानिस्तान दोनों चाहते हैं कि भारत अफगान शांति प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाए. पाकिस्तान, रूस, चीन और ईरान में से कोई भी ऐसा देश नहीं है जो अमेरिका की सोच और रणनीतिक हितों के पक्ष में हो. अफगान सरकार भी तालिबान की मदद करने वाले पाकिस्तान की बजाय उनके देश में करोड़ों रुपये का निवेश कर चुके भारत का साथ चाहती है.

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