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अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) का कब्जा होने के बाद से ही कई देश अपने नागरिकों और अफगान लोगों को काबुल से निकालने की कोशिशें कर रहे हैं. भारत भी उनमें से एक है. विदेश मंत्रालय अपने नागरिकों और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों को वापस लाने के लिए फ्लाइट्स कोऑर्डिनेट कर रहा है. स्थिति खराब है लेकिन ऐसे में भी अफगान सिख और हिंदू जल्दी निकलने की बजाय भविष्य सुरक्षित करने पर फोकस कर रहे हैं. नतीजा ये हो रहा है कि वो भारत की फ्लाइट न लेकर अमेरिका या कनाडा जाने के इंतजार में हैं.
इंडियन वर्ल्ड फोरम के अध्यक्ष पुनीत सिंह चंढोक ने 24 अगस्त को बताया कि एक गुरूद्वारे में मौजूद करीब 70-80 अफगान सिख और हिंदू भारत नहीं बल्कि कनाडा या अमेरिका जाना चाहते हैं. चंढोक ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, "ये अफगान नागरिक न सिर्फ निकासी प्रक्रिया में रुकावट डाल रहे बल्कि दूसरे लोगों की निकासी में भी देरी कर रहे हैं."
चंढोक का कहना है कि अफगान सिखों और हिंदुओं के लिए सबसे उच्च-स्तर से सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन फिर भी इन लोगों ने अमेरिका या कनाडा जाने के लिए भारत की फ्लाइट नहीं ली हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, गुरूद्वारा करते परवान में अफगान सिख और हिंदुओं के शरण लेने के बाद उनके एक नेता तलविंदर सिंह ने वीडियो जारी कर मांग की थी कि उन्हें 'सिर्फ कनाडा या अमेरिका भेजा जाए.'
कनाडा में किसी युद्धग्रस्त देश से आने वाले शरणार्थियों के लिए उदार नीति हैं. कनाडा शरणार्थियों को अच्छी सामाजिक कल्याण सुविधाएं देता है और साथ ही जिंदगी का स्तर भी अच्छा है, जो उसे एक आकर्षक डेस्टिनेशन बनाता है.
अमेरिका भी अपनी उदार और समग्र नीतियों की वजह से शरणार्थियों की पसंदीदा जगहों में से एक है. डेमोक्रेट सरकार होने की वजह से इमिग्रेशन पॉलिसी भी पहले जैसी सख्त नहीं है.
भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के तहत अपने पांच पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को तेजी से नागरिकता देने का प्रावधान किया है. लेकिन उसके बाद भी अफगान सिख और हिंदू भारत की जगह कनाडा या अमेरिका में शरणार्थी स्टेटस पाना चाहते हैं. ऐसा क्यों हो रहा है शायद भारत सरकार को इस पर मंथन करना चाहिए.
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