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चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच 25 जुलाई को अमेरिका के फेडरल और लॉ एनफोर्समेंट एजेंट्स ह्यूस्टन स्थित चीन की कॉन्सुलेट में दाखिल हुए. चीन ने कॉन्सुलेट में 'जबरन घुसने' का आरोप लगाते हुए इसका विरोध किया है. अमेरिका ने इस कॉन्सुलेट को बंद करने के लिए 24 जुलाई की शाम तक का समय दिया था. डेडलाइन खत्म होने के बाद फेडरल एजेंट्स कॉन्सुलेट में चले गए.
24 जुलाई को ह्यूस्टन स्थित कॉन्सुलेट से चीन का झंडा और सील हटा लिए गए. इससे पहले सुबह के समय कॉन्सुलेट का स्टाफ अपना सामान हटाते हुए देखा गया था.
चीन ने अमेरिका के इस कदम का कड़ा विरोध किया है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेंबिन ने कहा कि अमेरिका को कंपाउंड में घुसने का कोई अधिकार नहीं था और बीजिंग 'जरूरी जवाब' देगा.
वांग वेंबिन ने कहा, "ह्यूस्टन स्थित चीन का कॉन्सुलेट जनरल एक राजनयिक और कॉन्सुलर परिसर है और चीन की राष्ट्रीय संपत्ति है. कॉन्सुलर रिश्तों पर विएना कन्वेंशन और चीन-अमेरिका कॉन्सुलर संधि के मुताबिक, अमेरिका को परिसर का उल्लंघन नहीं करना चाहिए था."
वांग ने कहा कि अमेरिका के इस कदम से चीन 'गंभीर रूप से असंतुष्ट' है और इसका 'कड़ा विरोध' करता है.
न्यूयॉर्क पोस्ट के मुताबिक, ह्यूस्टन पुलिस को सूचना मिली थी कि चीनी अधिकारी 21 जुलाई की शाम कॉन्सुलेट में दस्तावेज जला रहे थे. एक न्यूज रिपोर्टर के वीडियो में कॉन्सुलेट के परिसर में कई लोग और आग लगे दस्तावेज और कई ट्रैश कैन नजर आए. न्यूयॉर्क पोस्ट ने कहा कि ह्यूस्टन के अग्निशमनकर्मी और पुलिस जब कॉन्सुलेट पहुंचे तो उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया.
इसके बाद अमेरिका ने चीन से ह्यूस्टन स्थित अपने कॉन्सुलेट को 72 घंटे के भीतर बंद करने के लिए कहा गया था.
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