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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका पर आरोप लगाया कि वो 20 साल की लड़ाई के बाद अफगानिस्तान में अपने पीछे छोड़े जा रहे 'गड़बड़ी' को पाकिस्तान पर थोपना की कोशिश कर रहा है.
वाशिंगटन पाकिस्तान को तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए एक शांति समझौता करने को लेकर दबाव डाल रहा है क्योंकि विद्रोहियों और अफगान सरकार के बीच बातचीत रुक गई है, और अफगानिस्तान में हिंसा तेजी से बढ़ी है.
इमरान खान ने इस्लामाबाद में अपने घर पर विदेशी पत्रकारों से कहा,
2001 में तालिबान सरकार को गिराने के 20 साल बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका 31 अगस्त 2021 तक अपनी सेना को हटा देगा. लेकिन, जैसे ही संयुक्त राज्य अमेरिका जाता है, तालिबान आज किसी भी समय की तुलना में अधिक क्षेत्र को नियंत्रित कर रहा है. काबुल और कई पश्चिमी सरकारों का कहना है कि विद्रोही समूह के लिए पाकिस्तान के समर्थन ने उसे युद्ध का सामना करने की अनुमति दी है.
अमेरिका का सहयोगी होने के बावजूद तालिबान को समर्थन देने का आरोप लंबे समय से वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच एक गंभीर मुद्दा रहा है. हालांकि पाकिस्तान तालिबान का समर्थन करने से इनकार करता है.
खान ने कहा कि इस्लामाबाद अफगानिस्तान का पक्ष नहीं ले रहा है. उन्होंने कहा,
पाकिस्तान और भारत शुरू से एक दूसरे के विरोधी रहे हैं और तीन युद्ध लड़ चुके हैं. दोनों के संबंध ठीक नहीं हैं और वर्तमान में उनके बीच न्यूनतम राजनयिक संबंध हैं.
इमरान खान ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में अफगानिस्तान में राजनीतिक समझौता मुश्किल दिख रहा है.
तालिबान की प्रगति के खिलाफ अफगान बलों का समर्थन करने के लिए अमेरिकी सेना ने हवाई हमलों का उपयोग करना जारी रखा है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि 31 अगस्त के बाद भी ऐसा समर्थन जारी रहेगा.
खान ने कहा कि पाकिस्तान ने "यह बहुत स्पष्ट कर दिया है" कि वह कोई अमेरिकी सैन्य ठिकाना नहीं चाहता है, अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से बाहर निकल जाए.
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