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ओसामा बिन लादेन के राइट हैंड और 2001 में हुए 9/11 आतंकी हमले के मास्टरमाइंड अयमान अल-जवाहिरी (Ayman al-Zawahri Killed) को अमेरिका ने अफगानिस्तान में मार गिराया है. लादेन की मौत के बाद से अल-कायदा के सरगना, जवाहरी को आखिरकार 21 साल के बाद एयरस्ट्राइक में मारकर अमेरिका ने अपने इतिहास के सबसे बड़े आतंकी हमले में मारे गए हजारों लोगों की मौत का बदला ले लिया है.
अल-जवाहिरी 2011 में ओसामा बिन लादेन की अमेरिका के हाथों मौत के बाद अलकायदा का चीफ बन गया था. अमेरिका ने उसके सर पर 25 मिलियन डॉलर का इनाम भी रखा था.
अलकायदा के अंदर अल-जवाहिरी की स्थिति और पकड़ जो 10 साल पहले थी, वैसी अब नहीं रह गयी थी. भले ही अमेरिका अल-जवाहिरी को मारकर एक बार फिर से यह साबित कर गया कि वो अपने दुश्मनों को उसके गढ़ में घुसे बिना, एयर स्ट्राइक में मार सकता है - अलकायदा के लिए जमीन पर इससे शायद भी व्यापक रूप से कुछ बदले.
इस्लामी चरमपंथ पर लगातार लिखने वाले और अफगानिस्तान में 2001 और इराक में 2003 के युद्धों को कवर करने वाले जेसन बर्क ने द गार्डियन में लिखा है कि आज की स्थिति में अल-जवाहिरी अल-कायदा का एक कम महत्वपूर्ण लेकिन प्रभावी नेता रह गया था और उसकी मौत भले ही अलकायदा को अल्पकालिक उथल-पुथल में झोक दे, लेकिन इसके किसी भी बड़ी और लंबी समस्या का कारण बनने की संभावना नहीं है.
हालांकि यह बात भी याद रखनी चाहिए कि अल-जवाहिरी ने लादेन की मौत के बाद अल-कायदा में उपजे खालीपन को भरा था और इस आतंकी संगठन को एकजुट रखा. न्यूयॉर्क में स्थित सिक्योरिटी कंसल्टेंसी फर्म- सौफान ग्रुप में एंटी-टेररिज्म एनालिस्ट कॉलिन पी. क्लार्क का कहना है कि
जेसन बर्क के अनुसार अल-जवाहिरी की मौत के बाद अल-कायदा सरगना बनने की रेस में सबसे आगे मोहम्मद सलाह अल-दीन जैदान है. इसे सैफ अल अदेल के नाम से भी जाना जाता है और मिस्र में जन्मे 60 साल के इस इस्लामिक चरमपंथी को लंबे समय से पश्चिम की खुफिया एजेंसियां एक सक्षम लीडर मानती हैं. इस समय में वह ईरान में है और उसके मूवमेंट पर अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों की कड़ी नजर है.
अफगानिस्तान में अयमान अल-जवाहिरी का सफाया इस बात के बारे में बताता है कि अमेरिका पिछले 20 साल में वहां किस तरह विफल हुआ. अमेरिका तालिबान की वापसी के साथ जब वहां से निकला तबतक उसने इस 20 साल के युद्ध में 2,448 सैनिक और 3,846 कांट्रेक्टर खो दिए थे. बावजूद इसके वह यहां कुछ खास बदल नहीं पाया.
तालिबान का एक बार फिर अफगानिस्तान पर कब्जा है. अफगानिस्तान अब भी आतंकियों का लॉन्चपैड बना हुआ है और तालिबान अब भी अल कायदा के सरगना को वैसे ही शरण दे रहा था जैसे 21 साल पहले देता था.
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