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नेतन्याहू की विरासत- फिलिस्तीन से बढ़ा तनाव, अधिक बंटा इजरायल?

Benajmin Netanyahu को Naftali Bennett ने सत्ता से बाहर किया

नमन मिश्रा
दुनिया
Updated:
 Benajmin Netanyahu को Naftali Bennett ने सत्ता से बाहर किया
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Benajmin Netanyahu को Naftali Bennett ने सत्ता से बाहर किया
(फाइल फोटो: PTI)

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इजरायल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे बेंजामिन नेतन्याहू (benjamin netanyahu) सत्ता से बाहर हो चुके हैं. 12 सालों के बाद नफ्ताली बेनेट (naftali bennett) और यैर लपीद ने नेतन्याहू दौर का अंत कर दिया है. अपने समर्थकों के बीच 'किंग बीबी' के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री एक समय राजनीतिक रूप से अजेय माने जाते थे. नेतन्याहू की विरासत विवादित है क्योंकि समर्थकों के लिए वो इजरायल को छोटे से देश से एक क्षेत्रीय सुपरपावर बनाने वाले हैं, तो वहीं आलोचकों के लिए वो लोकतांत्रिक संस्थानों को खत्म करने वाले व्यक्ति.

लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नेतन्याहू इजरायल के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं. वो सत्ता से बाहर हुए हैं लेकिन उनका प्रभाव कम नहीं हुआ है.

नई सरकार में शामिल बेनेट, गिडोन सार, अयेलेट शकेद जैसे लोग एक समय में नेतन्याहू के ही शागिर्द रहे हैं. उनकी पार्टी लिकुड आज भी इजरायल का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है. 

सेना से राजनीति तक का सफर

1949 में तेल अवीव में जन्में बेंजामिन नेतन्याहू का ज्यादातर बचपन अमेरिका में बीता था. वो 18 साल की उम्र में इजरायल लौटे और कुछ सालों तक सेना में सेवाएं दीं. नेतन्याहू इजरायल की एलीट कमांडो फोर्स 'सयारेत मत्कल' के सदस्य थे और उन्होंने 1973 के युद्ध में हिस्सा लिया था.

1976 में नेतन्याहू के भाई जोनाथन की यूगांडा में एक मिशन के दौरान मौत हो गई थी. जोनाथन की मौत का नेतन्याहू परिवार पर गहरा असर हुआ था और परिवार का नाम इजरायल में लेजेंड बन गया था.

सेना में सेवाएं देने के बाद नेतन्याहू को 1982 में डिप्टी चीफ ऑफ मिशन बनाकर अमेरिका भेजा गया था. इस घटना ने नेतन्याहू की जिंदगी बदल दी. अमेरिका में कई साल रहने की वजह से उनकी बोली वहीं की लगती थी. नेतन्याहू अमेरिकी टीवी चैनलों पर जाना-पहचाना नाम बन गए थे, जो इजरायल की जोरदार वकालत करता था. 
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1988 में इजरायल वापस लौटने के बाद नेतन्याहू ने लिकुड से चुनाव लड़ा, जीते और डिप्टी विदेश मंत्री बने. 1996 में नेतन्याहू पहली बार प्रधानमंत्री बने. चुनाव यित्जाक राबिन और ओस्लो समझौतों के बाद हुए थे. नेतन्याहू इजरायल के सबसे यंग और देश की स्थापना के बाद पैदा हुए प्रधानमंत्री बने.

1999 में चुनाव कराने का फैसला नेतन्याहू के लिए गलत साबित हुआ. वो हार गए और कई सालों तक सरकारों में दूसरे मंत्री पद संभालते रहे. 2009 तक लिकुड पार्टी बंट चुकी थी और नेतन्याहू फिर उसके नेता थे. उस साल हुए चुनावों में नेतन्याहू की जीत हुई और उसके बाद 12 साल तक वो प्रधानमंत्री बने रहे.  

नेतन्याहू की विरासत

आलोचक नेतन्याहू पर इजरायली समाज को बांटने का आरोप लगाते हैं. नेतन्याहू के नेतृत्व में लिकुड को कभी भी 30-35% से ज्यादा वोट नहीं मिले हैं. हालांकि, उनकी बायोग्राफी लिखने वाले पत्रकार एंशेल फेफर कहते हैं कि 'बीबी कितने जीनियस है ये उन्हें मिलने वाले वोट नहीं, बल्कि उनके गठबंधनों से पता चलता है.'

गठबंधनों के लिए ही नेतनयाहू अपने आलोचकों के निशाने पर रहे हैं. नेतन्याहू ने सत्ता में रहने के लिए हर तरह की दक्षिणपंथी पार्टियों और समूहों से समर्थन लिया है. इजरायली एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सत्ता की शह मिलने की वजह से कई कट्टरवादी, धार्मिक और रूढ़िवादी पार्टियां मेनस्ट्रीम बन गई थीं.

नेतन्याहू पर अपने राजनीतिक फायदे के लिए अरब और यहूदी समुदाय के बीच खाई बनाने का भी आरोप लगता रहा है. नेतन्याहू 2018 में एक कानून लाए थे, जिसने अरब भाषा का स्तर कम कर दिया था. ये कानून वैसे तो प्रतीकात्मक ही था लेकिन इजरायल में इसे लोकतंत्र के मूल्यों को खत्म करने वाला कहा जाता है.

फिलिस्तीन का मुद्दा और उलझा

बेंजामिन नेतन्याहू ने 2009 में सार्वजानिक तौर पर ऐलान किया था कि वो 'कुछ शर्तों' पर इजरायल के साथ फिलिस्तीन की मौजूदगी स्वीकार करते हैं. पर बाद में नेतन्याहू इससे मुकर गए और एक इंटरव्यू में कहा, "फिलिस्तीन नहीं बनेगा."

नेतन्याहू की वेस्ट बैंक में सेटलमेंट बनाने और जेरुसलम पर यहूदी संप्रभुता की नीति की पश्चिमी देशों और मानवाधिकार संगठनों ने भरसक आलोचना की है.

बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका ने नेतन्याहू पर फिलिस्तीन मुद्दे को लेकर अपनी नीति बदलने के लिए दबाव डाला था. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप के आने पर नेतन्याहू के लिए इन नीतियों पर काम करना और आसान हो गया था. ट्रंप ने जेरुसलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता दी थी, जिसकी वजह से फिलिस्तीन ने व्हाइट हाउस से संबंध खत्म कर दिए थे.  

ट्रंप और उनके दामाद जेरड कुशनर ने मिलकर इजरायल और उसके कई पड़ोसियों के बीच अब्राहम समझौते कराए, जिससे फिलिस्तीनी लोगों के लिए स्थिति और उलझती चली गई.

नेतन्याहू के 12 सालों के कार्यकाल में इजरायल और हमास के बीच गाजा में चार बार हिंसक विवाद हो चुका है. आखिरी बार ये मई 2021 में ही हुआ था. नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं, वो सत्ता से बाहर हो चुके हैं, लिकुड के नेतृत्व को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि नेतन्याहू की राजनीति अभी खत्म नहीं हुई है.

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Published: 14 Jun 2021,12:11 PM IST

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