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कनाडा (Canada) ने गुरुवार, 19 अक्टूबर को कहा कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर विवाद के बाद भारत से अपने 41 राजनयिकों को वापस बुला लिया है. विदेश मंत्री मेलानी जोली ने कहा कि भारत ने शुक्रवार, 20 अक्टूबर तक कनाडा के 21 राजनयिकों और उनके परिवारों को छोड़कर सभी के लिए राजनयिक छूट को "अनैतिक रूप से" रद्द करने की योजना बनाई है, जिससे हमें अन्य लोगों को देश से बाहर निकालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक विदेश मंत्री जोली ने कहा कि हमने भारत से उनके सुरक्षित आने की सुविधा प्रदान की है. इसका मतलब है कि हमारे राजनयिक और उनके परिवार अब भारत छोड़ चुके हैं.
पिछले महीने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसी का हाथ बताया था. जिसके बाद से भारत और कनाडा के बीच संबंधों में गिरावट आनी शुरू हो गई. हालांकि, भारत ने कनाडा द्वारा लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया.
बता दें कि हरदीप सिंह निज्जर ने भारत से एक अलग सिख राज्य की वकालत की थी और वो भारतीय अधिकारियों द्वारा कथित आतंकवाद और हत्या की साजिश का आरोपी था.
कनाडा के विदेश मंत्री ने बुधवार को कहा कि 41 राजनयिकों की राजनयिक छूट को रद्द करना न केवल अभूतपूर्व है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ भी है. लेकिन कनाडा ने किसी तरह की जवाबी कार्रवाई करने की योजना नहीं बनाई है, जिससे स्थिति बिगड़ जाए.
कनाडा ने भारत से जांच में सहयोग करने का आह्वान किया है, लेकिन दिल्ली ने आरोपों को खारिज कर दिया है और कनाडाई लोगों के लिए वीजा सेवाएं बंद करने जैसे जवाबी कदम उठाए हैं.
कनाडा ने इस मामले पर एक भारतीय राजनयिक को निकाल भी दिया था.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले महीने न्यूयॉर्क में कहा था कि
भारत सरकार ने निज्जर की हत्या पर कनाडाई आरोपों को "बेतुका" बताया था और अपने नागरिकों को सलाह दी है कि वे "भारत विरोधी गतिविधियों में बढ़ोतरी को देखते हुए" कुछ कनाडाई इलाकों की यात्रा न करें.
हरदीप सिंह निज्जर, 1997 में कनाडा चला गया और 2015 में वहां का नागरिक बन गया. जून 2023 में कनाडा के वैंकूवर के पास एक सिख मंदिर की पार्किंग में दो नकाबपोश हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
भारत के अंदर सिख अलगाववादी आंदोलन काफी हद तक खत्म हो गया है, जो एक अलग राज्य (खालिस्तान) की मांग करता है. साल 1980 के दशक में सुरक्षा बलों ने पंजाब राज्य में विद्रोह को दबाने के लिए घातक बल का इस्तेमाल किया था.
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