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ईरान: आज से चालू होगा ‘चाबहार’, भारत से जुड़ेगा अफगानिस्तान

पहले फेज का मेंटनेंस भारत को सौंप सकता है ईरान

द क्विंट
दुनिया
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यह चित्र केवल प्रतीकात्मक तौर पर उपयोग किया गया है. यह चाबहार पोर्ट का चित्र नहीं है.
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यह चित्र केवल प्रतीकात्मक तौर पर उपयोग किया गया है. यह चाबहार पोर्ट का चित्र नहीं है.
(फाइल फोटो: Reuters)

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ईरान के लिए स्ट्रेटजिक प्वाइंट से बेहद अहम चाबहार पोर्ट का रविवार को उद्धाटन होने वाला है. यह चाबहार पोर्ट का फर्स्ट फेज है. इसका नाम शाहिद बेहस्ती पोर्ट है.

इस पोर्ट के जरिए अब अफगानिस्तान से ईरान होते हुए सीधा भारत पहुंचा जा सकेगा. मतलब अब बीच में पाकिस्तान क्रॉस नहीं करना पड़ेगा.

यह पोर्ट ईरान के दक्षिण में सीस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में है. उद्धाटन, ईरान के प्रेसिडेंट हसन रूहानी की मौजूदगी में होगा. इस मौके पर भारत, अफगानिस्तान और क्षेत्र के दूसरे देशों के प्रतिनिधि भी मौजूद होंगे.

इससे पहले शनिवार को ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ से तेहरान में मुलाकात की थी. दोनों में चाबहार प्रोजेक्ट को लेकर भी चर्चा हुई थी.

भारत की इस प्रोजेक्ट में विशेष दिलचस्पी है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में ईरान यात्रा के दौरान इस पोर्ट के विकास के लिए कई एमओयू पर साइन किए थे. भारत इस प्रोजेक्ट में करीब 500 मिलियन डॉलर इंवेस्टमेंट कर रहा है. इसके अलावा ईरान और अफगानिस्तान के साथ भारत ने ट्रांजिट कॉरिडोर एग्रीमेंट भी किया है.

क्षेत्र में रेल लाइन बिछाने के लिए भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की रेल कंपनी इरकॉन ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान तक 500 किलोमीटर लंबी रेल लाइन भी बिछाएगी. भारत पहले ही अफगानिस्तान में ईरान सीमा तक रोड निर्माण कर चुका है.

क्यों भारत की दिलचस्पी है

भारत और चीन की क्षेत्रीय वर्चस्व की बाच किसी से छुपी नहीं है. चीन 'मोतियों की माला' रणनीति के तहत भारत के चारों ओर पोर्ट बनाकर स्ट्रेटजिक बढ़त लेने की कोशिश कर रहा है.

इस क्रम में उसने श्रीलंका के हम्बनटोटा, म्यांमार के सितवे, बांग्लादेश के चटगांव और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चुना है. इन जगहों पर चीन ने पोर्ट विकसित किए हैं, जिसके एवज में उसने कुछ विशेषाधिकार भी हासिल किए हैं.

ग्वादर पोर्ट की ओर से भारत को सबसे बड़ी चुनौती है. इसी को काउंटर करने के लिए भारत ने चाबहार पोर्ट के जरिए क्षेत्र में दखल बढ़ाने की कोशिश की है. मतलब न केवल ट्रेड बल्कि यह मुद्दा भारत की सुरक्षा से भी संबंधित है.

क्या फायदा होगा?

रिपोर्टों के मुताबिक, ईरान पोर्ट के पहले फेज का मेंटनेंस भारत को सौंपेगा. दूसरी ओर पोर्ट बनने से भारत का ईरान के साथ ट्रेड और मजबूत होगा. खासकर तेल के व्यापार में अब ओमान की खाड़ी में भारत को सहूलियत होगी. यह दोनों पक्षों के संबंधों को और मजबूत करेगा.

लेकिन सबसे ज्यादा फायदा भारत को अफगानिस्तान के साथ एक नए ट्रेड रूट के खुलने की वजह से हो रहा है. अब अफगानिस्तान माल पहुंचाने के लिए पाकिस्तान को बायपास किया जा सकेगा.

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