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COP26 ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में शामिल हो रहे देशों ने अपने समझौते का ड्राफ्ट (first draft) पब्लिश कर दिया है, जिसमें 2022 के अंत तक देशों से अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को मजबूत करने की अपील की गई है.
UK के प्रेसीडेंसी में पब्लिश किये गए ड्राफ्ट समझौते पर COP26 में शामिल हो रहे देश आपस में बातचीत करेंगे और एक सहमति पर पहुंचने की कोशिश करेंगे.
COP26 जलवायु सम्मेलन में लिए जाने वाले निर्णय भी पेरिस समझौते की तरह कानूनी रूप से बाध्यकारी है. इसलिए यह ड्राफ्ट समझौता अपने आप में महत्वपूर्ण है. यह एक ऐसा डॉक्यूमेंट भी है जिसे केवल सभी देशों की सहमति से ही स्वीकार किया जा सकता है, इसलिए इसके भाषा का अधिकांश भाग सतर्क है और कुछ हिस्सा अस्पष्ट है.
“COP cover decision” का पहला मसौदा देशों को "2030 के अंत तक पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्य के अनुरूप करने के लिए आवश्यक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान में 2030 लक्ष्यों को फिर से देखने और मजबूत करने के लिए कहता है."
पहली बार यह ड्राफ्ट समझौता देशों को कोयला और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने का आह्वान करता है.
यह "नेट जीरो उत्सर्जन के लिए न्यायसंगत संक्रमण" का भी आह्वान करता है और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील विकासशील देशों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, और अधिक वित्तीय संसाधनों के महत्व पर जोर देता है.
COP26 जलवायु सम्मेलन के परिणाम को पूरी दुनिया बारीकी से देख रही है कि तमाम देश अपने वर्तमान जलवायु लक्ष्यों के बीच की खाई को पाटने के लिए क्या करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं और अधिक महत्वाकांक्षी कार्रवाई की चाहत लिए वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी स्तरों को रोकने के लिए यह आवश्यक है.
क्लाइमेट एक्सपर्ट्स ने कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने की प्रतिबद्धता का स्वागत किया है, लेकिन सवाल किया है कि क्या ड्राफ्ट में किये वादे अपर्याप्त हैं?
ऑक्सफैम के COP26 प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख ट्रेसी कार्टी ने कहा कि ड्राफ्ट "बहुत कमजोर" है.
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के जलवायु वार्ता निदेशक यामाइड डैगनेट ने इस ड्राफ्ट में विकासशील देशों को आवंटित वित्तीय सहायता पर चिंता जताई है. उन्होंने न्यूज एजेंसी अल-जजीरा से कहा कि
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क कनाडा के एडी पेरेज ने भी कहा कि ड्राफ्ट का टेक्स्ट "बेहद समस्याग्रस्त" है क्योंकि "यह अनुकूलन के लिए (विकासशील देशों को) वित्तीय सहायता को बढ़ाने की आवश्यकता को संबोधित नहीं करता है ".
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