advertisement
संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों में कई हृदय विदारक दृश्य देखने को मिल रहे हैं, जहां कोरोना वायरस से मरने वाले प्रवासी मजदूरों को अंतिम विदाई देनेवाला कोई सगा-संबंधी या कोई मित्र भी नहीं है. ऐसा ही एक दृश्य तब देखने को जब अपने घर और वतन से दूर एक प्रवासी भारतीय मजदूर की यहां कोविड-19 महामारी से मौत हो गई. उसका शव अंत्येष्टि स्थल के बाहर एक एंबुलेंस में इस इंतजार में रखा था कि कहीं कोई उसका मित्र आ जाए और उसे अंतिम विदाई दे सके.
लगभग एक घंटे तक इंतजार करने के बावजूद कोई नहीं पहुंचा और फिर रक्षात्मक सूट पहने कर्मचारियों को अंतिम संस्कार करना पड़ा. चार कर्मचारियों ने सफेद प्लास्टिक के बैग में लिपटे शव को चुपचाप एंबुलेंस से उतारा और फिर से उसे ताबूत में रखकर अंत्येष्टि कर दी.
अनेक लोग अपने परिवारों को आर्थिक मदद उपलब्ध कराने के लिए दशकों से इस उम्मीद के साथ इन देशों में काम कर रहे हैं कि एक दिन वे अपने वतन लौटकर कोई कारोबार शुरू करेंगे या मकान बनाएंगे.
लेकिन कोरोना वायरस रूपी अभूतपूर्व महामारी दुनियाभर में ऐसे सपनों को पूरा होने से पहले ही चकनाचूर कर रही है. इस महामारी से मौत का मतलब है कि शव घर नहीं ले जाया जा सकता, उसका दाह संस्कार या उसे दफनाने की अंतिम क्रिया उसी देश में करनी पड़ रही है जहां संबंधित व्यक्ति की मौत हो रही है.
दक्षिणी दुबई स्थित हिन्दू शवदाह गृह के प्रबंधक ईश्वर कुमार ने कहा, ‘‘पूरा विश्व बदल रहा है. शव के साथ अब कोई नहीं आता, कोई उसे छूता तक नहीं है, कोई उसे अंतिम विदाई तक देने के लिए नहीं आता.’’ उन्होंने कहा,
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार खाड़ी देशों में कोरोना वायरस से अब तक हुईं 166 मौतों और संक्रमण के 26,600 दर्ज मामलों में से अधिकतर भारतीय, पाकिस्तानी, नेपाली, बांग्लादेशी और फिलीपीनी जैसे विदेशी लोगों से जुड़े मामले हैं.
अंत्येष्टि स्थल पर दुबई में एक टूरिस्ट कंपनी में साझेदार रहे 50 वर्षीय एक भारतीय नागरिक और फिलीपीन के 40 वर्षीय सौंदर्य विशेषज्ञ का भी अंतिम संस्कार हुआ. दोनों में एक चीज समान थी कि उनके मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण ‘कोविड निमोनिया’ लिखा था.
शवदाह गृह के एक और प्रबंधक सुरेश गालानी ने कहा कि ज्यादातर प्रवासी मजदूरों के परिवार यहां नहीं रहते हैं. कई बार उनके सहकर्मी आते हैं. महामारी के चलते वाणिज्य उड़ानों के निलंबित होने के बावजूद क्षेत्र की सरकारें यहां अर्थव्यवस्था चरमरा जाने से बेरोजगार हुए विदेशी कर्मचारियों को उनके देश वापस भेजने के लिए उड़ानों की व्यवस्था करने पर काम कर रही हैं.
शवों का अंतिम संस्कार एक बड़ी चुनौती है क्योंकि महामारी से मरनेवाले व्यक्ति का तुरंत दाह संस्कार या उसे सुपुर्द ए खाक करने की तत्काल आवश्यकता होती है.
शवों का अंतिम संस्कार एक बड़ी चुनौती है क्योंकि महामारी से मरनेवाले व्यक्ति का तुरंत दाह संस्कार या उसे सुपुर्द ए खाक करने की तत्काल आवश्यकता होती है.
ऐसे ही लोगों में 57 वर्षीय अफगान वजीर मोहम्मद सालेह भी शामिल है जो 1980 के दशक में सोवियत संघ और अफगानिस्तान युद्ध के चलते अपने देश से भागकर आ गया था और पवित्र शहर मदीना में रह रहा था.
कॉपी-किताब की दुकान करनेवाले इस व्यक्ति की पिछले सप्ताह कोरोना वायरस से मौत हो गई. उसका परिवार मदीना में ही रहता है जहां पैगंबर का ‘रौजा ए मुबारक’ (मजार) है. इस व्यक्ति के अंतिम संस्कार में केवल चार लोग (उसके बेटे) ही शामिल हुए. सल्तनत में जन्मे उसके भतीजे आमिद खान को स्मार्ट फोन पर अपने चाचा के अंतिम संस्कार की तस्वीरें और वीडियो देखकर ही अंतिम विदाई देनी पड़ी. खान ने कहा, ‘‘उनका (चाचा) सपना था कि उन्हें मदीना में दफनाया जाए.’’
इनपुट भाषा से
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)