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अमेरिका, रूस, ब्रिटेन समेत दुनिया के 100 देशों पर अबतक का सबसे बड़ा साइबर अटैक हुआ है. हैकर्स ने रेनसमवेयर वायर के जरिए लाखों कम्प्यूटर्स और मोबाइल को निशाना बनाया है. हमले की वजह से ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस बुरी तरह प्रभावित हुई है.
आपको बताते हैं कि क्या है रेनसमवेयर वायरस और कैसे हुआ ये अटैक
रैनसमवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिससे एक कम्प्यूटर में वायरस घुस जाता है और यूजर तब तक इसमें मौजूद डेटा तक नहीं पहुंच पाता जब तक कि वह इसे ‘अनलॉक' करने के लिए रैनसम यानी फिरौती नहीं देता.
रैनसमवेयर यूजर को उनकी फाइल तक पहुंच मुहैया कराने के लिए बिटकॉइन के जरिए 300 डॉलर की फिरौती मांगता है. ये चेतावनी देता है कि एक तय समय के बाद फिरौती की रकम बढ़ा दी जाएगी. ये मालवेयर ईमेल के जरिए फैलता है.
दुनिया का सबसे बड़ा साइबर हमला, भारत सहित 100 देश बने निशाना
विशेषज्ञों ने दावा किया है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) से चोरी किए गए ‘साइबर हथियारों' की मदद से इस अटैक को अंजाम दिया गया है. अमेरिकी मीडिया के मुताबिक सबसे पहले स्वीडन, ब्रिटेन और फ्रांस से साइबर अटैक की खबर मिली.
सुरक्षा सॉफ्टवेयर कंपनी ‘अवैस्ट' ने बताया कि मालवेयर की गतिविधि बढ़ने की बात कल पता चली. कंपनी ने कहा कि यह ‘‘जल्द ही तेजी से फैल गया और कुछ ही घंटों में विश्वभर में 75000 से अधिक हमलों का पता चला. इस बीच ‘मालवेयरटेक' ट्रैकर ने पिछले 24 घंटों में 1,00,000 सिस्टमों का पता लगाया जो इस हमले का शिकार हुए हैं.
अमेरिका के सेंट्रल इंटीलेजेंस एजेंसी में काम कर चुके और व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडन ने ग्लोबल साइबर अटैक के लिए एनएसए को जिम्मेदार ठहराया है. स्नोडेन ने कहा-
उन्होंने कहा, ‘‘अगर एनएसए ने अस्पतालों में हमले के लिए इस्तेमाल हुए इस टूल के बारे में बता दिया होता तो शायद ऐसा नहीं होता.''
कुछ साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा है कि इस हमले ने बताया है कि अमेरिका साइबर रिसोर्सेज का इस्तेमाल बचाव के बजाए हमले के लिए ज्यादा करता है.
बता दें कि ‘शैडो ब्रोक्रर्स' नाम के एक ग्रुप ने 14 अप्रैल को इस मालवेयर को ऑनलाइन उपलब्ध कराया था. इस समूह ने पिछले साल एनएसए से ‘‘साइबर हथियार'' चुराने का दावा भी किया था. इस बात को लेकर संदेह जताया जा रहा था कि कहीं यह समूह हैक किए गए ‘‘साइबर हथियारों'' के बारे में बढ़ा चढ़ा कर तो नहीं बता रहा.
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