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दामथांग, डोकलाम से केवल 15 किमी दूर है. आसपास हाते और इंगो नाम के गांव हैं. पास में एक छोटा टॉउन भी है जिसका नाम 'हा' है. भूटानी लोगों को चीन के साथ टकराव बहुत असहज कर देता है. चीन दुनिया की सबसे बड़ी सेना है, वहीं छोटे से भूटान के पास दस हजार से भी कम सैनिक हैं.
ज्यादातर भूटानी भारत को सपोर्ट करते हैं फिर भी वे चीन को नाराज करना नहीं चाहते. सोमवार को डोकलाम पर गतिरोध खत्म होने से इनमें से बहुतों के चेहरों पर खुशी आ गई और इनका डर कम हुआ है.
वेस्टर्न मीडिया समय-समय पर भूटान में एंटी-इंडिया सेंटीमेंट को दिखाता रहता है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. यहां के लोग भारतीय सेना की तैनाती का बुरा नहीं मानते हैं.
‘हा’ के लोगों से हमें पता चला कि इंडियन आर्मी की तैनाती से उन्हें लाभ हुआ है. आर्मी यहां का एकमात्र हॉस्पिटल चलाती है. कई लोग आर्मी कैंप के अंदर ग्रोसरी स्टोर से खरीददारी भी करते हैं.
डोकलाम पर गतिरोध के खत्म होने की खबर पर एक स्कलू टीचर निदुप बताते हैं,
निदुप लोकल बॉस्केटबाल कोच भी हैं.
चीन 1960 के दशक से ही भूटान के खिलाफ आक्रामक नीति अपना रहा है. उस वक्त चीन ने 'हा' घाटी के यॉक चराने वालों को डोकलाम, सिंचुलंपा, चारीथांग और ड्रमाना से निकालना शुरू कर दिया था. 1980 में दोनों देशों के बीच विवाद पर बातचीत के दौर शुरू हुए.
चीन ने क्षेत्रों के एक्सचेंज की बात की. चीन भूटान को डोकलाम और आसपास के क्षेत्रों के बदले में वेस्टर्न सेक्टर की जमीन देना चाहता था. भूटान ने इससे इंकार कर दिया और बातचीत बेनतीजा साबित हुई.
2009 में भी चीन ने पिछले एग्रीमेंट्स को नकराते हुए जूरी नाम की विवादित जगह से रोड बनाना शुरू कर दिया.इसके बाद 2013 में भी पीएलए के सैनिकों ने विवादित एरिया में टैंट भी लगाए थे. भूटानी लोग इन हरकतों से खुश नहीं हैं.
कॉरपेंटर जॉन जो अमेरिका के मोंटाना से राजा के लिए एक पैलेस बनाने आए हैं, उनका कहना है 'इस टॉउन में कोई टेंशन नहीं होनी चाहिए.'
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