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नुकीले तार,इंटरनेट बैन,विदेशी मीडिया में किसान आंदोलन पर चर्चा

अलजजीरा ने लिखा है कि किसान प्रदर्शन में लगे बैरिकेड्स की तुलना कई लोग बॉर्डर पर सेना की बैरिकेडिंग से कर रहे है.

क्विंट हिंदी
दुनिया
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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भारत में चल रहे किसान आंदोलन की चर्चा अब विदेशों में भी जोर पकड़ रही है. जैसी ही पॉपस्टार रिहाना (Rihanna) ने ट्विटर पर लिखा कि 'हम भारत में किसानों के प्रदर्शन पर बात क्यों नहीं कर रहे हैं?' इसके बाद फिर क्या था इंटरनेशनल सेलेब्रिटीज से लेकर विदेशी मीडिया सब का फोकस किसान आंदोलन की तरफ है.

क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग से लेकर अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने किसानों के समर्थन में ट्वीट किया. अब जब दुनिया की नजर भारत की तरफ है तो विदेशी मीडिया किसान आंदोलन के अलग-अलग पहलुओं पर बात कर रही है. इंटरनेट बैन से लेकर दिल्ली की सरहदों पर लगाई गई. बैरिकेडिंग और नुकले तारों पर चर्चा हो रही है. आईए जानते हैं ग्लोबल मीडिया क्या लिख रहा है

CNN- इंटरनेट बैन

किसानों के पुलिस के साथ टकराव के बाद दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ इलाकों में इंटरनेट बंद हैं, इसे देखते हुए CNN ने लिखा है,

‘भारत यूं तो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन इंटरनेट पर बैन लगाने के मामले में भी भारत साल 2019 में नंबर एक पर रहा है. 2019 में, भारत ने कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के लिए एक महीने का इंटरनेट ब्लैकआउट लागू किया था. उसी साल, सीएए प्रोटेस्ट के दौरान अधिकारियों ने नई दिल्ली के कुछ हिस्सों में इंटरनेट बंद कर दिया. भारत में, इन बंद को अदालतों में चुनौती दी गई है. साथ ही ये शटडाउन भारत में प्रेस स्वतंत्रता से भी जोड़ा मुद्दा है.

पत्रकार और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ FIR

द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है किसानों के आंदोलन पर सबसे पहले विदेशी घुसपैठ का आरोप लगा. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की, प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों की गिरफ्तारी की. सरकार ने जहां प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए हैं वहां इंटरनेट भी बंद कर दिया.

द न्यू यॉर्क टाइम्स में आगे लिखा है,

“पीएम मोदी की सरकार ने गिरफ्तारी, असहमतिपूर्ण आवाजों को रोकने और इंटरनेट को बंद करने का सहारा लिया है. इंटरनेट स्वतंत्रता पर नजर रखने वाले समूह कहते हैं कि भारत में चीजें हाथ से निकल रही हैं.”

अमेरिका के किसान आंदोलन से जुड़ाव

द इंडिपेंडेट ने लिखा है कि भारत में चल रहे किसान आंदोलन की गूंज अमेरिका में सुनाई दे रही है और अमेरिकी किसान इससे जुड़ाव महसूस कर रहे हैं. अमेरिका में 70 और 80 के दशक में हजारों किसान ट्रैक्टर लेकर राजधानी वॉशिंगटन पहुंच गए थे. 1970-80 के दशक में अमेरिका में सरकार की नीतियों के कारण हजारों किसानों को अपनी जमीन खोनी पड़ी, जिससे उनके उत्पादों की मांग के सामने ब्याज दरें बढ़ गईं, जिससे जमीन की कीमत में गिरावट आई."

अखबार लिखता है कि ये विवाद न केवल कृषि के बारे में बल्कि ग्रामीण भारत की आबादी के बारे में सवाल उठाता है जहां छोटे समुदाय पहले से ही जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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किसानों को रोकने के लिए 'किलाबंदी'

बता दें कि 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड हिंसक हो गई थी और प्रदर्शनकारी लाल किला पहुंच गए थे, जहां उन्होंने निशान साहिब झंडा फहरा दिया था. इसी पर वॉशिंगटन पोस्ट ने एक और लेख में दिल्ली की सीमाओं पर सख्त सुरक्षा इंतजामों का जिक्र करते हुए लिखा है कि बैरिकेडिंग की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब शेयर की गईं हैं.

द न्यू यॉर्क टाइम्स ने लिखा है,

गणतंत्र दिवस की घटने बाद से, पुलिस ने बैरिकेड्स और कंटीले तार लगाए हैं और यहां तक कि नई दिल्ली की ओर जाने वाले आंदोलनों को रोकने के लिए कंक्रीट में कील लगाए हैं. सरकार ने धरना स्थल के इलाकों में बिजली और पानी की कटौती की है, साथ ही इंटरनेट काट दिया गए, और पत्रकारों की पहुंच सीमित कर दी है.

अलजजीरा ने भी भारत के किसान आंदोलन के दौरान लोहे की कीलें, कंक्रीट की दीवारों की तस्वीरें दिखाई हैं. अलजजीरा ने लिखा है कि बैरिकेड्स की तस्वीरें सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा की जा रही हैं, कई लोगों ने इनकी तुलना बॉर्डर पर सेना की बैरिकेडिंग से की है. महीनों से चल रहे विरोध प्रदर्शनों ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को परेशान कर दिया है, जो कहते हैं कि नए कानूनों से किसानों को लाभ होगा और निजी निवेश के माध्यम से उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा.

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