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इजरायल और हमास के बीच सीजफायर हो गया है. गाजा में लड़ाई रुक चुकी है. हालांकि, हिंसा थमने से पहले 220 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी थी. इस जंग का अंजाम पहले से ही अनुमानित था, लेकिन फिर भी इसे बढ़ावा दिया गया. इसकी वजह क्या राजनीति थी?
वहीं, गाजा में हमास की सियासी स्थिति इस लड़ाई के बाद मजबूत होती दिखती है. इजरायल से सीधी टक्कर लेने के बाद सिर्फ गाजा नहीं बल्कि वेस्ट बैंक में भी हमास की पोजीशन बेहतर हुई है.
बेंजामिन नेतन्याहू संसदीय चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद सरकार बनाने में नाकाम रहे हैं. अब विपक्षी पार्टियों के पास 2 जून तक का समय है. हालांकि, जंग के बाद बने माहौल में नेतन्याहू को हटाना आसान नहीं होगा.
इजरायल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट थिंक टैंक की तरफ से अप्रैल में जारी किए गए एक सर्वे के मुताबिक, तब 70 फीसदी लोग मानते थे कि देश पांचवे चुनाव की ओर बढ़ रहा है.
नेतन्याहू भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हैं, लेकिन वो इसे 'तख्तापलट' की कोशिश बताते हैं. वो 12 साल से प्रधानमंत्री हैं. चार चुनाव हो चुके हैं पर वो कुर्सी पर कायम है. अगर पांचवा चुनाव भी होता है तब भी युद्ध के बाद की स्थिति नेतन्याहू के लिए माकूल है. उन्हें हमेशा से ऐसी परिस्थिति का फायदा मिलता रहा है.
हालिया युद्ध ने हमास के लिए फतह पार्टी के नेतृत्व वाली फिलिस्तीनी अथॉरिटी को किनारे करना और आसान कर दिया है. साल 2006 में फिलिस्तीनी चुनावों में हमास की जीत के बाद से फतह के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं.
पूर्वी जेरुसलम में अल-अक्सा मस्जिद में इजरायली कार्रवाई और शेख जर्राह इलाके से फिलिस्तीनी परिवारों को निकालने पर फिलिस्तीनी अथॉरिटी कुछ ज्यादा कर नहीं पाई थी. वहीं, दूसरी तरफ हमास ने इसे लेकर सीधे इजरायल पर रॉकेट हमला किया, जिससे फिलिस्तीनियों के बीच उसकी स्थिति बेहतर होने की संभावना बढ़ गई हैं.
हमास अगर युद्ध नहीं भी जीतता है तो भी सिर्फ इजरायल के खिलाफ खड़ा होने से ही उसकी लोकप्रियता में कई गुना इजाफा संभव है.
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