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भारतीय मीडिया और नागरिकों पर भड़का चीन: जानिए बौखलाहट की वजह क्या?

चीन सरकार के डेली अखबार ने अपने संपादकीय में भारत को अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक ‘आत्मसंतुष्ट’ राष्ट्र कहा

द क्विंट
दुनिया
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(फोटो: ट्विटर)
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चीन सरकार द्वारा चलाए जाने वाले अंग्रेजी भाषा के राष्ट्रीय दैनिक अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने मंगलवार को कड़े शब्दों में भारतीय राष्ट्रवादियों और इंडियन मीडिया की आलोचना की है.

अखबार ने अपने संपादकीय में भारत को घमंडी बताया. साथ ही परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) के देशों में भारत को नहीं शामिल होने देने के चीन के फैसले की सराहना की.

संपादकीय में लिखा गया है कि खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय मामलों में डील करते वक्त भारत का रवैया बेहद ‘खराब’ होता है. भारत कई मौकों पर दंभी व्यवहार भी करता है. मानों वह सभी मामलों में ‘आत्मसंतुष्ट’ हो.

ग्लोबल टाइम्स अखबार, अंग्रेजी और चीनी, दोनों भाषाओं में प्रकाशित होता है. लेफ्ट की विचारधारा की ओर अखबार का झुकाव बताया जाता है और माना जाता है कि अपने विचारों में यह राष्ट्रवादियों के लिए पूर्वाग्रह रखता है. यह भी अक्सर देखा गया है कि अखबार के संपादकीय लेखों में चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की राय का प्रभुत्व दिखता है.

इस अखबार ने अपने संपादकीय में कई अन्य बातें भी लिखी हैं. उन्हें नीचे पढ़ें:

  • अमेरिका पूरी दुनिया के बराबर नहीं है, जो उसे खास ट्रीटमेंट दिया जाए.
  • लेख में भारत पर चीन की मुखालफत करने के लिए अमेरिका से हाथ मिलाने का आरोप भी लगाया गया है.
  • इसमें लिखा गया, ‘अमेरिकी समर्थन भारत की महत्वाकांक्षाओं के लिए सबसे बड़ा प्रोत्साहन है. लेकिन अमेरिका पूरी दुनिया के बराबर नहीं है. इसका मतलब यह भी है कि भारत के लिए सिर्फ अमेरिका का समर्थन जीतना, दुनिया जीतने के बराबर कभी नहीं होगा. इस बुनियादी तथ्य को हालांकि भारत हमेशा नजरअंदाज करता आया है.’
  • अंत में लेखक ने भारत के कथित राष्ट्रवादियों को आड़े हाथों लिया और लिखा, ‘एनएसजी को लेकर उतावली भारतीय जनता को चीन को कोसने से पहले यह सीखने की जरूरत है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों को लेकर ‘व्यवहार’ कैसे किया जाता है. कुछ भारतीय बेहद आत्म केन्द्रित और आत्मतुष्ट हैं. जबकि इसके विपरीत, भारत सरकार हमेशा शालीन व्यवहार करती रही है और बातचीत को तैयार दिखती है. वो शायद यह समझती है कि आवेश में गुस्सा दिखाना कभी भी दिल्ली के लिए बेहतर विकल्प नहीं होगा.’

संपादकीय में यह दावा भी किया गया है कि एनएसजी में भारत की सदस्यता को चीन ने जितना रोका, उससे कहीं ज्यादा एनएसजी के नियमों ने भारत के प्रवेश को ब्लॉक किया.

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