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भारत और मालदीव के रिश्ते कुछ बुरे दौर में चल रहे हैं. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, चीन की सहायता से बनाए गए शिनमाले ब्रिज के उद्घाटन में भारत के प्रतिनिधि ने हिस्सा नहीं लिया. इतना ही नहीं, श्रीलंका और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों भी प्रोग्राम के बाहर से ही लौट आए.
बता दें शिनमाले ब्रिज के लिए चीन ने मालदीव को 72 मिलियन यूएस डॉलर की भारी सहायता दी थी. भारतीय एंबेसडर अखिलेश मिश्रा को मालदीव सरकार ने इवेंट के लिए न्यौता भेजा था. लेकिन मिश्रा इवेंट में नहीं गए.
विपक्षी पार्टी के प्रवक्ता अहमद महलूफ ने बताया कि राष्ट्रपति अब्दुल यामीन सिक्योरिटी से नाराज होकर श्रीलंका और बांग्लादेश के राजदूत भी वापस लौट गए. महलूफ के मुताबिक,
माले और हुलहुले आइलैंड को कनेक्ट करने वाले दो किलोमीटर लंबे ब्रिज को चाइनीज-मालदीव फ्रेंडशिप ब्रिज भी कहा जा रहा है.
विपक्ष ने ब्रिज को कर्ज का जाल बताया है. वहीं प्रेसिडेंट यामीन पर पूरे प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए हैं. ब्रिज को 33 महीने में चीन की cccc सेकंड हार्बर इंजीनियरिंग लिमिटेड ने बनाया है.
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मालदीव चुनावों को लेकर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर आने वाले मालदीव चुनावों में गड़बड़ी होती है, तो भारत को मालदीव पर हमला कर देना चाहिए.
भारत सरकार ने खुद को सुब्रमण्यम स्वामी के बयान से अलग कर लिया था. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार का कहना है कि ‘ये स्वामी के निजी विचार हैं. भारत सरकार के नहीं.’
बता दें मालदीव में इस समय राजनीतिक हालात बेहद खराब बने हुए हैं. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने चुनावों में गड़बड़ी की आशंका जताई है. स्वामी के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने कहा था कि देश के वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन चुनावों में धांधली कर सकते हैं. नशीद को भारत समर्थक माना जाता है.
मालदीव में इस साल फरवरी से आपातकाल लगा हुआ है. यामीन ने कोर्ट के उस फैसले के बाद आपातकाल लगाया था जिसमें नसीद सहित अन्य कैदियों की रिहाई का आदेश दिया गया था. साथ ही दोबारा मुकदमा चलाने को भी कहा गया था.
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