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ईरान (Iran) की संसद ने एक ऐसा विवादास्पद बिल पास किया है जिसके बाद ईरान के सख्त ड्रेस कोड को तोड़ने वाली महिलाओं और लड़कियों के लिए जेल की सजा और जुर्माने को बढ़ा दिया जाएगा.
इस बिल के तहत "अनुचित" कपड़े पहनने वाली महिलाओं-लड़कियों को 10 साल तक की जेल का सामना करना पड़ेगा, जिसके लिए तीन साल तक ट्रायल चलाने पर सहमति हुई है.
यह कदम ईरान में महसा अमिनी की हिरासत में मौत पर भड़के विरोध प्रदर्शन के एक साल बाद आया है. महसा अमिनी को भी कथित तौर पर सही तरह से हिजाब न पहनने के लिए ईरान की 'मोरल पुलिस' ने पकड़ लिया था.
इसके बाद ईरानी सरकार के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शनों में महिलाओं ने अपने हिजाब जलाए थे या उन्हें हवा में लहराया था. इस दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में कथित तौर पर सैकड़ों लोग मारे गए थे.
सड़कों पर मोरल पुलिस की वापसी और कैमरों के बावजूद, बड़ी संख्या में महिलाओं और लड़कियों ने सार्वजनिक रूप से अपने बालों को ढंकना बंद कर दिया है.
ईरानी कानून देश की शरिया की व्याख्या पर आधारित है. इसके अनुसार युवावस्था से ऊपर की महिलाओं और लड़कियों को अपने बालों को हिजाब से ढंकना चाहिए और अपने शरीर को छिपाने के लिए लंबे, ढीले-ढाले कपड़े पहनने चाहिए.
वर्तमान में ऐसा नहीं करने वालों को 10 दिन से लेकर दो महीने तक की जेल हो सकती है या फिर उनके ऊपर 5,000 से 500,000 रियाल के बीच जुर्माना लगाया जा सकता है.
20 सितंबर को, संसद के सदस्यों ने "हिजाब और शुद्धता बिल" को पास किया. इसके पक्ष में 152 वोट पड़े जबकि इसके विरोध में 34 वोट पड़े. बिल के अनुसार, जो लोग सार्वजनिक स्थानों पर "अनुचित" कपड़े पहने हुए पकड़े जाएंगे, उन्हें "फोर्थ डिग्री" की सजा दी जाएगी.
दंड संहिता के मुताबिक, इसका मतलब है पांच से 10 साल के बीच की जेल की सजा और 180 मिलियन से 360 मिलियन रियाल के बीच जुर्माना.
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक इस विधेयक में मीडिया और सोशल नेटवर्क पर "नग्नता को बढ़ावा देने" या "हिजाब का मजाक उड़ाने" वालों, और उन वाहनों के मालिकों के लिए भी जुर्माने का प्रस्ताव है जिनमें महिला ड्राइवर या यात्री ने हिजाब या उचित कपड़े नहीं पहने हैं.
इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो "संगठित तरीके से" या "विदेशी या शत्रु सरकारों, मीडिया, समूहों या संगठनों के सहयोग से" ड्रेस कोड का उल्लंघन करने को बढ़ावा देता है, उसे पांच से 10 साल तक की कैद हो सकती है.
इस बिल को अब मौलवियों और न्यायविदों की एक रूढ़िवादी संस्था, गार्जियन काउंसिल के पास भेजा जाएगा.अगर वे बिल को संविधान और शरिया के मुताबिक सही नहीं मानते हैं तो उनके पास वीटो करने की शक्ति है- यानी कानून नहीं बनेगा.
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