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आयरलैंड में गर्भपात कराने को लेकर महिलाओं को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है. 35 साल पहले आयरलैंड में अबॉर्शन यानी गर्भपात पर रोक लगाते हुए उसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था. लेकिन अब देश के 66.40 फीसदी मतलब 30 लाख लोगों ने जनमत संग्रह में वोट करके इस कानून को बदलने की राय जाहिर कर दी है.
मतलब गर्भपात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की इच्छा जाहिर कर दी है. इस जीत की खास बात ये है कि इस पूरी मुहिम के पीछे एक भारतीय महिला की कहानी है.
दरअसल आयरलैंड यूरोप के सबसे धार्मिक देशों में से एक है. जहां कैथोलिक मान्यताओं की वजह से गर्भपात को सही नहीं माना जाता है.
डॉक्टरों ने यह मांग खारिज कर दी क्योंकि भ्रूण में अभी भी दिल की धड़कन मौजूद थी और यह कहा कि ‘यह एक कैथोलिक देश है.’ लेकिन बाद में डॉक्टर ने मृत भ्रूण को हटा दिया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आयरलैंड के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल गालवे में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत सेप्टिक मिसकैरेज (गर्भावस्था के दौरान संक्रमण) की वजह से हुई. उनकी मौत ने देश में गर्भपात पर चर्चा छेड़ दी.
आयरलैंड में 1983 में एक जनमत संग्रह के बाद संविधान में संशोधन किया गया था. इस संशोधन के तहत महिला और उसके गर्भ में बच्चे को भी जीवन के समान अधिकार दिए गए थे, यानी गर्भपात को पूरी तरह गैरकानूनी बना दिया गया था. ऐसा करने वाले के लिए 14 साल सजा का प्रावधान था.
हालांकि 1992 के बाद से गर्भपात को लेकर जो कानून है उसके मुताबिक महिला की जान को खतरा होने की स्थिति में ही गर्भपात की इजाजत है और बलात्कार के मामलों में यह नहीं है.
इस कानून में बदलाव के लिए सरकार को जनमत संग्रह का रास्ता अपनाना पड़ा. कराए गए जनमत संग्रह को कराने में आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वाराडकर ने अहम भूमिका निभाई. बता दें कि लियो वाराडकर भारतीय मूल के हैं.
इस संबंध में आई पहली आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक गर्भापत के खिलाफ किए गए संशोधन को निरस्त करने की मांग को 66 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हुआ है.
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