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'गाजा में नरसंहार रोके इजरायल'-इंटरनेशनल कोर्ट का फैसला, लेकिन अगर आदेश नहीं माना तो..

इजरायल के खिलाफ किस देश ने इंटरनेशनल कोर्ट में केस दायर किया और क्या इजरायल अब इस फैसले को चुनौती दे सकता है?

प्रतीक वाघमारे
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>इजरायल को UN कोर्ट से मिला गाजा में 'नरसंहार' रोकने का आदेश, क्या फैसला मानना बाध्यकारी?</p></div>
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इजरायल को UN कोर्ट से मिला गाजा में 'नरसंहार' रोकने का आदेश, क्या फैसला मानना बाध्यकारी?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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इजरायल और हमास (Israel And Hamas) के बीच युद्ध जारी है. इस बीच साउथ अफ्रीका (South Africa) ने इजरायल पर गाजा (Gaza) में जनसंहार का आरोप लगाते हुए इंटरनेशनल कोर्ट में मामला उठाया था. इस पर कोर्ट का फैसला आ चुका है. यहां आपको बताएंगे कि क्या फैसला आया है? क्या फैसले को चुनौती दी जा सकती है? क्या फैसले को मानना जरूरी है?

इंटरनेशनल कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

  1. इजरायल को ऐसे किसी भी कृत्य को रोकने के लिए सभी उपाय करने चाहिए जिन्हें नरसंहार माना जा सकता है - एक समूह के सदस्यों को मारना, शारीरिक नुकसान पहुंचाना, एक समूह के विनाश के लिए डिजाइन की गई स्थितियां पैदा करना, बच्चे के जन्म को रोकना.

  2. इजरायल को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी सेना कोई नरसंहारक कृत्य न करे.

  3. इजरायल को ऐसी किसी भी सार्वजनिक टिप्पणी को रोकना और दंडित करना चाहिए जिसे गाजा में नरसंहार के लिए उकसाने वाला माना जा सकता है.

  4. इजरायल को मानवीय पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उपाय करना चाहिए.

  5. इजरायल को ऐसे किसी भी सबूत को नष्ट होने से रोकना चाहिए जिसका इस्तेमाल नरसंहार के मामले में किया जा सकता है.

इजरायल ने इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले पर क्या कहा?

एपी की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के पीएम नेतन्याहू ने नरसंहार मामले को 'अपमानजनक' बताया और कहा कि इजरायल अपनी रक्षा के लिए 'जो आवश्यक है' करता रहेगा.

सोशल मीडिया एक्स पर इजरायल के दक्षिणपंथी सुरक्षा मंत्री ने इंटरनेशनल कोर्ट को "यहूदी विरोधी" कहा है, उन्होंने एक बयान में कहा कि निर्णय "वह साबित करता है जो पहले से पता था: यह अदालत न्याय नहीं चाहती, बल्कि यहूदी लोगों का उत्पीड़न चाहती है."

उन्होंने आगे कहा, “इजरायल राज्य के निरंतर अस्तित्व को खतरे में डालने वाले फैसलों को नहीं सुना जाना चाहिए. और हमें पूरी जीत तक दुश्मन को हराना जारी रखना चाहिए.”

हमास ने इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले पर क्या कहा?

हमास ने इंटरनेशनल कोर्ट का स्वागत किया है.

हमास के एक वरिष्ठ अधिकारी सामी अबू जुहरी ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया: "अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला एक महत्वपूर्ण विकास है जो कब्जे (इजरायल) को अलग करने और गाजा में उसके अपराधों को उजागर करने में योगदान देता है."

उन्होंने कहा, "हम अदालत के फैसलों को लागू करने का आह्वान करते हैं."
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इजरायल के खिलाफ किसने इंटरनेशनल कोर्ट में केस किया?

दक्षिण अफ्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट से गाजा में इजरायल के विनाशकारी सैन्य अभियान को आपातकालीन रूप से निलंबित करने का आदेश देने के लिए कहा था.

दक्षिण अफ्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट में मामला दायर किया था, जिसमें इजरायल पर नरसंहार करने का आरोप लगाया गया था. दक्षिण अफ्रीका की राजधानी प्रिटोरिया ने अदालत में केस दायर किया था.

समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका इजरायल को इंटरनेशनल कोर्ट में ले जा सकता है क्योंकि दोनों देशों ने नरसंहार कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं.

क्या है इंटरनेशनल कोर्ट?

इंटरनेशनल कोर्ट (ICJ) - को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) न माने, दोनों चीजें अलग-अलग हैं. इंटरनेशनल कोर्ट युद्ध अपराधों के लिए लोगों पर मुकदमा चलाता है, ये संयुक्त राष्ट्र (UN) की शीर्ष अदालत है. 1945 में इस कोर्ट की स्थापना हुई थी. यह नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित है. इसका काम देशों के बीच चल रहे विवादों पर नियम बनाना और उन्हें सलाह देने का काम है.

इस कोर्ट में कुल 15 जज होते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद इन्हें नौ साल के कार्यकाल के लिए चुनता है.

हालांकि इजरायल मामले की सुनवाई के लिए दोनों पक्ष से एक-एक अतिरिक्त जज भी थे. यानी कुल 17 जजों ने इस मामले की सुनवाई की है.

क्या इंटरनेशनल कोर्ट के फैसलों को चुनौती दी जा सकती है?

इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले को अंतिम फैसला ही माना जाता है. इसके फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती.

क्या इंटरनेशनल कोर्ट के फैसलों को मानना जरूरी होता है?

वैसे इसका जवाब 'हां' में हैं लेकिन कई किंतु-परंतु के साथ.

पहले ये समझ लीजिए इंटरनेशनल कोर्ट को अधिकार क्षेत्र तभी मिलता है जब दोनों पक्ष इसके लिए सहमत हों.

अब मूल जवाब पर आते हैं. इंटरनेशनल कोर्ट का निर्णय अंतिम माना जाता है और तकनीकी रूप से मामले के पक्षकारों पर बाध्यकारी भी होता है. लेकिन इंटरनेशनल कोर्ट के पास अपने आदेशों का अनुपालन को सुनिश्चित करवाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और यह पक्षकार देशों की इच्छा पर निर्भर करता है कि उसे मानना है या नहीं.

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