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इजरायल और हमास (Israel And Hamas) के बीच युद्ध जारी है. इस बीच साउथ अफ्रीका (South Africa) ने इजरायल पर गाजा (Gaza) में जनसंहार का आरोप लगाते हुए इंटरनेशनल कोर्ट में मामला उठाया था. इस पर कोर्ट का फैसला आ चुका है. यहां आपको बताएंगे कि क्या फैसला आया है? क्या फैसले को चुनौती दी जा सकती है? क्या फैसले को मानना जरूरी है?
इजरायल को ऐसे किसी भी कृत्य को रोकने के लिए सभी उपाय करने चाहिए जिन्हें नरसंहार माना जा सकता है - एक समूह के सदस्यों को मारना, शारीरिक नुकसान पहुंचाना, एक समूह के विनाश के लिए डिजाइन की गई स्थितियां पैदा करना, बच्चे के जन्म को रोकना.
इजरायल को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी सेना कोई नरसंहारक कृत्य न करे.
इजरायल को ऐसी किसी भी सार्वजनिक टिप्पणी को रोकना और दंडित करना चाहिए जिसे गाजा में नरसंहार के लिए उकसाने वाला माना जा सकता है.
इजरायल को मानवीय पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उपाय करना चाहिए.
इजरायल को ऐसे किसी भी सबूत को नष्ट होने से रोकना चाहिए जिसका इस्तेमाल नरसंहार के मामले में किया जा सकता है.
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल के पीएम नेतन्याहू ने नरसंहार मामले को 'अपमानजनक' बताया और कहा कि इजरायल अपनी रक्षा के लिए 'जो आवश्यक है' करता रहेगा.
उन्होंने आगे कहा, “इजरायल राज्य के निरंतर अस्तित्व को खतरे में डालने वाले फैसलों को नहीं सुना जाना चाहिए. और हमें पूरी जीत तक दुश्मन को हराना जारी रखना चाहिए.”
हमास ने इंटरनेशनल कोर्ट का स्वागत किया है.
हमास के एक वरिष्ठ अधिकारी सामी अबू जुहरी ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया: "अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला एक महत्वपूर्ण विकास है जो कब्जे (इजरायल) को अलग करने और गाजा में उसके अपराधों को उजागर करने में योगदान देता है."
दक्षिण अफ्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट से गाजा में इजरायल के विनाशकारी सैन्य अभियान को आपातकालीन रूप से निलंबित करने का आदेश देने के लिए कहा था.
दक्षिण अफ्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट में मामला दायर किया था, जिसमें इजरायल पर नरसंहार करने का आरोप लगाया गया था. दक्षिण अफ्रीका की राजधानी प्रिटोरिया ने अदालत में केस दायर किया था.
इंटरनेशनल कोर्ट (ICJ) - को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) न माने, दोनों चीजें अलग-अलग हैं. इंटरनेशनल कोर्ट युद्ध अपराधों के लिए लोगों पर मुकदमा चलाता है, ये संयुक्त राष्ट्र (UN) की शीर्ष अदालत है. 1945 में इस कोर्ट की स्थापना हुई थी. यह नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित है. इसका काम देशों के बीच चल रहे विवादों पर नियम बनाना और उन्हें सलाह देने का काम है.
हालांकि इजरायल मामले की सुनवाई के लिए दोनों पक्ष से एक-एक अतिरिक्त जज भी थे. यानी कुल 17 जजों ने इस मामले की सुनवाई की है.
इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले को अंतिम फैसला ही माना जाता है. इसके फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती.
वैसे इसका जवाब 'हां' में हैं लेकिन कई किंतु-परंतु के साथ.
अब मूल जवाब पर आते हैं. इंटरनेशनल कोर्ट का निर्णय अंतिम माना जाता है और तकनीकी रूप से मामले के पक्षकारों पर बाध्यकारी भी होता है. लेकिन इंटरनेशनल कोर्ट के पास अपने आदेशों का अनुपालन को सुनिश्चित करवाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और यह पक्षकार देशों की इच्छा पर निर्भर करता है कि उसे मानना है या नहीं.
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