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इजरायल में संसदीय चुनाव के अंतिम परिणाम आने के बाद भी गतिरोध खत्म नहीं हो पाया है, सरकार बनाने के लिए न तो प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और न ही उनके विरोधियों को बहुमत मिल पाया है. चुनावों की देखरेख करने वाली केंद्रीय चुनाव समिति ने कहा कि नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी और उसके सहयोगियों ने 120 सीटों वाली संसद में 52 सीटें जीतीं, जबकि विरोधी पार्टियों ने 57 सीटों पर कब्जा किया. ये पहली बार नहीं है जब किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. असल में यही इजरायल की चुनावी राजनीति का इतिहास रहा है.
इजरायल की चुनावी व्यवस्था ही इस तरह की है कि किसी एक पार्टी का बहुमत लेकर सरकार बना लेना लगभग नामुमकिन है. ऐतिहासिक रूप से आजतक कोई भी राजनीतिक पार्टी संसद (नेसेट) की 120 में से 61 सीटें (बहुमत) जीत नहीं पाई है.
इजरायल में हर चार साल में संसदीय चुनाव होते हैं. हालांकि, उससे पहले भी चुनाव हो सकते हैं. ये स्थिति संसद भंग होने पर आती है. इजरायल की संसद को नेसेट कहा जाता है. इसमें कुल 120 सीटें हैं. देश में चुनाव की व्यवस्था 'प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन' की है. इसका मतलब होता है कि जिस पार्टी को जितने वोट मिलेंगे, उसी के हिसाब से सीटें भी मिलेंगी.
इजरायल में लोग पार्टी के लिए वोट करते हैं, उम्मीदवारों के लिए नहीं. किसी भी पार्टी को नेसेट में सीट पाने के लिए कुल नेशनल वोट का कम से कम 3.25% चाहिए ही होता है. इसलिए वोटर टर्नआउट का महत्व बढ़ जाता है.
क्योंकि संसद में सीटें पार्टी को मिले वोट के हिसाब से मिलती हैं, इसलिए इजरायल में राजनीतिक पार्टियां अधिकतर गठबंधन में चुनाव लड़ती हैं. इसका फायदा ये होता है कि किसी पार्टी का वो सरप्लस वोट, जो एक अतिरिक्त सीट के लिए नाकाफी है, वो गठबंधन में मौजूद बाकी पार्टियों को आवंटित कर दिया जाता है.
चुनाव के बाद सीटों का आवंटन होता है. जिसके बाद राष्ट्रपति संसद के एक ऐसे सदस्य को चुनता है, जो स्थिर सरकार बना सकता है. ज्यादातर ये उस पार्टी का नेता होता है, जिसे सबसे ज्यादा सीटें मिली हों.
इजरायल में चार साल में ये दूसरी बार चुनाव हुए थे. इस चुनाव में 2009 के बाद से सबसे कम वोटर टर्नआउट (67.4%) हुआ था. इजरायल की नई सरकार में अहम रोल United Arab List या Raam पार्टी निभा सकती है. ये पार्टी इजरायल में अरब मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है.
इस पार्टी को 5 सीटें मिल सकती हैं. इसके अलावा नेतन्याहू को यामीन पार्टी का भी समर्थन चाहिए होगा, जिसे सात सीटें मिल सकती हैं. अगर दोनों पार्टियां गठबंधन में शामिल होती हैं तो नेतन्याहू के पास सरकार बनाने के लिए 61 सीट हो जाएंगी.
फिर भी राह आसान नहीं होगी क्योंकि नेतन्याहू अगर Raam के साथ गठबंधन करते हैं तो उनके गठबंधन की धुर-दक्षिणपंथी पार्टियां समर्थन वापस ले सकती हैं. बाकी देशों में भी गठबंधन की सरकारें सामान्य बात है लेकिन इजरायल की राजनीति इसे सामान्य के साथ-साथ जटिल भी बना देती है.
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