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रमजान का पाक महीना चल रहा है. दुआओं में जो हाथ उठ रहे हैं उन्हें आसमान से सिर्फ बरसती हुई मिसाइलें दिखाई दे रही हैं. ये मंजर इन दिनों फिलिस्तीन और इजरायल के बीच का है. जहां दोनों देश एक दूसरे को मिटा देने की कसमें खा रहे हैं. 2014 की गर्मियों के बाद हमास और इजरायल के बीच ये सबसे बड़ी लड़ाई बनती जा रही है. जब दुनिया कोरोना जैसी महामारी से लड़ रही है तो ये दोनों आपस में क्यों भिड़ गए हैं? इसे समझने के लिए इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की जड़ों को समझना जरूरी है और ये भी जानना जरूरी है कि हाल फिलहाल वहां क्या हो रहा था.
सोमवार को हमास ने 300 से अधिक राकेट इजरायल पर दागे थे, जिसमें कुछ इजरायली नागरिकों की मौत हो गई थी. इसके बाद इजरायल ने फिलिस्तीन में हमास के 150 से अधिक ठिकानों को टारगेट किया था. इसके बाद इजरायली एयरफोर्स ने मंगलवार को हवाई हमले में गाजा पट्टी में 13 मंजिला बिल्डिंग पर हमला किया था. इजरायल ने दो बहुमंजिला इमारतों को निशाना बनाया जिनके बारे में उसका मानना था कि उसका इस्तेमाल हमास के चरमपंथी करते थे और उसने कम से कम तीन चरमपंथियों को मार गिराया.
हालांकि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बताया कि उस बिल्डिंग पर मिसाइलें बरसाने के पहले चेतावनी दी गई थी ताकि लोगों को बचने का मौका मिल सके. इसमें हमास का कार्यालय, एक जिम और कुछ स्टार्टअप बिजनेस के ऑफिस थे. इसी तरह बुधवार तड़के इजरायली एयरक्राफ्ट ड्रोन ने हवाई फायर दाग कर एक 9 मंजिला इमारत को भी ध्वस्त कर दिया. यह इमारत रिहायशी बिल्डिंग थी जिसमें मेडिकल कम्पनी और दांत का एक दवाखाना भी था. इस इमारत से 200 मीटर की दूरी पर एसोसिएटेड प्रेस ब्यूरो का ऑफिस है जहां तक इमारत में किए गए धमाके का धुंआ और धूल पहुंची थी.
इजरायल और हमास के बीच मंगलवार-बुधवार की दरम्यानी रात फिर एक बार जोरदार झड़प हुई. लेकिन इस बार की ये झड़प अब तक की झड़पों में सबसे ज्यादा घातक बताई जा रही है. न्यूज एजेंसियों के मुताबिक दो दिनों में 29 फिलिस्तीनियों और इजरायल की तरफ तीन लोगों के मारे जाने की खबर है, इसमें एक भारतीय महिला भी है. गाजा में 10 बच्चे भी मारे गए हैं. 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं. इजरायल और हमास के बीच यह लड़ाई 2014 की गर्मियों में 50 दिन तक चले युद्ध के बाद सबसे बड़ी है.
इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने बीते रविवार को पूर्वी जेरुसलम से फिलिस्तीनियों के सात परिवारों को निकालने के आदेश दिए थे. जिसके बाद हिंसा का दौर शुरू हुआ. शेख जर्रा नाम की जगह से 70 फिलिस्तीनियों को आगामी हफ्तों में निकाल कर उनकी जगह यहूदियों को लाने की तैयारी की जा रही थी. दरअसल कोर्ट ने उन घरों को खाली करने के लिए कहा था जो 1948 में इजरायल के गठन से पहले यहूदी रिलिजन एसोसिएशन के अधीन आते थे. अदालत के इस आदेश के बाद फिलिस्तीनियों में नाराजगी थी. इसको लेकर इजरायल में कई जगह प्रोटेस्ट हुए.
आलोचकों का कहना है कि जेरुसलम और उसके आसपास इजरायली पुलिस की हेकड़ी के कारण अशांति फैली है. झड़प की शुरुआत बीते सप्ताह अल-अक्सा मस्जिद से हुई. इस मस्जिद को इस्लाम में तीसरी सबसे पाक जगह बताया गया है. यहां पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. फिलिस्तीनियों की ओर से भी इजरायली पुलिस पर पथराव हुआ. ये लगातार चार दिनों तक ये चलता रहा. लेकिन मस्जिद में हैंड ग्रेनेड फैंके जाने से हालात और बेकाबू हो गए.
इन हमलों के बाद इजरायल में कई जगह अरब लोगों के प्रदर्शन शुरू हो गए. लोद में हजारों प्रदर्शनकारी एक शवयात्रा में शामिल हुए. मृतक की हत्या का आरोप एक यहूदी पर है. गुस्साई भीड़ ने विरोध प्रदर्शन किया जिसमें 30 से ज्यादा वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया. इसके जवाब में यहूदियों की ओर से प्रदर्शन किया गया जिसमें अरब लोगों की कारों को निशाना बनाया गया. नॉर्थ पोर्ट के शहर एकर में एक यहूदी के रेस्त्रां और होटल को आग के हवाले कर दिया.
नेतन्याहू ने कहा कि वे लोद शहर में आपातकाल लगा चुके हैं. दरअसल लोद शहर अरब और यहूदियों की मिलीजुली आबादीवाला शहर है. इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शुरू हुए ताजा हमलों के बाद यहां भी झड़पें देखी गईं जिसके बाद इस शहर में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इमरजेंसी लगाने की घोषणा की गई है. टाइम्स ऑफ इजरायल लोकल मीडिया के हवाले लिखता है कि वहां कई दुकानें जला दी गईं जबकि आगजनी की दर्जनों घटनाएं हुईं हैं. सन 1966 के बाद लोद शहर में इस तरीके से पूरी तरह इमरजेंसी लगाई गई है.
इस संघर्ष के पीछे इजरायल में राजनीतिक उठापटक को भी माना जा रहा है. दरअसल मार्च में हुए संसदीय चुनाव बेनतीजा रहे. इसके बाद से नेतन्याहू इजरायल के अंतरिम प्रधानमंत्री बने रहे. बीते हफ्ते की डेडलाइन खत्म होने तक नेतन्याहू गठबंधन सरकार बनाने में सफल नहीं हुए. उनके लिए सरकार बनाने की एक सूरत ये है कि वो अरब लोगों के समर्थनवाली पार्टी United Arab List के लीडर मनसूर अब्बास से समर्थन ले लें. इसका विरोध भी हो रहा था क्योंकि उसे यहूदी विरोधी माना जाता. अब युद्ध जैसी स्थिति में इजरायल में सियासी समीकरण बदल सकते हैं.
पहले विश्वयुद्ध के दौरान वर्तमान का इजरायल तुर्की का हिस्सा था. ओटमन साम्राज्य कहा जाता था. प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की ने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ खड़े देशों का साथ दिया था. इस वजह से तुर्की और बरतानिया हुकूमत आमने सामने आ गए. ब्रिटिश शासन उस समय हावी पर था और युद्ध उसने जीत लिया और ओटमन साम्राज्य का अंत हुआ. इस समय जियोनिज्म की भावना यहूदियों में चरम पर थी जो एक आजाद यहूदी राज्य बनाना चाहते थे.
यूएन ने 29 नवंबर, 1947 को फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांट दिया. पहला हिस्सा बना अरब राज्य और दूसरा बना इजरायल और जेरुसलम को अंतरराष्ट्रीय सरकार के अधीन रखा. लेकिन अरब देशों ने यूएन के इस फैसले को मानने से मना कर दिया. इस घटना के एक साल बाद इजरायल ने खुद को आजाद देश ऐलान कर दिया. अमेरिका ने भी इसे मान्यता दी लेकिन अरब देशों के साथ इजरायल की कभी न बनी और कई युद्ध हुए. अमेरिका का साथ होने के कारण इजरायल ने हर लड़ाई में अरब देशों को कड़ा मुकाबला दिया.
फिलिस्तीन के प्रदर्शनकारी और इजरायली पुलिस के बीच आए दिन जेरुसलम और उसके आसपास के इलाके में झड़प होती रहती है.
इसी तरह ईसाइयों के लिए भी जेरुसलम सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. यहां 'द चर्च ऑफ द होली सेपल्कर' है. मान्यता है कि जीसस को इसी जगह पर सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं वे फिर से जीवित भी हुए थे. यहूदियों की ये भी मानता है कि यहां की वेस्टर्न वॉल उनके पवित्र मंदिर का अवशेष है.
इजरायल ने 1967 की लड़ाई में जेरुसलम के पूर्वी हिस्से पर कब्जा जमा लिया था. जिसके बाद इजरायल इसे अपनी राजधानी मानता चला आ रहा है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता अब तक नहीं मिल पाई है. न ही यहां किसी भी देश का दूतावास ही है. यही वजह है कि तेल अवीव को पॉलिटिकल राजधानी माना जाता है.
इसी तरह पूर्वी जेरुसलम को भी इजरायल आजाद करे ताकि वहां फिलिस्तीनी अपनी राजधानी स्थापित कर सकें. लेकिन इजरायल फिलिस्तीन की मांगों को सिरे से नकारते हुए जेरुसलम को राजधानी और देश का अटूट हिस्सा कहता आ रहा है.
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