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जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आगे ‘गिड़गिड़ाने’ लगे थे ट्रंप

अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बोल्टन की किताब ‘द रूम वेयर इट हैपेन्ड’ का एक अंश

जॉन बोल्टन
दुनिया
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अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बोल्टन की किताब ‘द रूम वेयर इट हैपेन्ड’ का एक अंश
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अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बोल्टन की किताब ‘द रूम वेयर इट हैपेन्ड’ का एक अंश
(फोटो: अरूप मिश्रा/क्विंट)

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अमेरिका के पूर्व एनएसए जॉन बोल्टन की किताब ‘द रूम वेयर इट हैपेन्ड’ ट्रंप के कई चेहरे दिखाती है. यहां किताब के अंश पूर्व अनुमति के साथ पेश किए जा रहे हैं जिसे साइमन और शेस्टर इंडिया ने प्रकाशित किया है.

डोनाल्ड ट्रंप लगातार चीन पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने 2018 के कांग्रेस चुनावों में रिपब्लिकन्स को हराने की रणनीति रची थी. अब 2020 में वह उन्हें (यानी ट्रंप को) हराने की जुगत में है.

इस अवधारणा के कई तर्क हैं. अगर आपने ध्यान दिया हो तो ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका के सैन्य खर्च में काफी बढ़ोतरी हुई है और चीन के साथ व्यापार के क्षेत्र में भी टकराव जारी है. सार्वजनिक मंच पर जब हम यह कहते हैं कि विदेशी सरकारें अमेरिकी चुनाव में दखल दे रही हैं, तो हमारा इशारा चीन और रूस की तरफ ही होता है.

चीन भी अपने आर्थिक लाभ के लिए ट्रंप की उत्तेजना का फायदा उठाने की कोशिश करता रहा. उसने अमेरिका को ऐसे ‘आर्थिक समझौतों’ की तरफ धकेला जिससे दोनों देशों के बीच आधारभूत समस्याएं नहीं सुलझती थीं. यही समस्याएं असल में आर्थिक और राजनीतिक विवाद का कारण हैं.

चूंकि बीजिंग को यह आसानी से मालूम चल गया था कि ट्रंप को चीन के संबंध सलाह देने वालों के बीच बहुत मतभेद हैं. मीडिया नियमित रूप से इस संबंध में खबरें दे रहा था.

हमने देखा कि अमेरिका के चुनावों में चीन की भूमिका अब तक सबसे व्यापक और असरदार है. 2016 में डेमोक्रेट्स और मीडिया जिस तरह बयानबाजी कर रहे थे, यह उससे कहीं अधिक गहरी है.

किसी का पक्ष लिए बिना, हम कह सकते हैं कि चीन रूस के मुकाबले अधिक संसाधनों का इस्तेमाल कर सकता है. यह बहुत गंभीर था, और इसके खिलाफ गंभीरता से कार्रवाई करने की जरूरत थी.

इसका एक जवाब तो यह था कि डीक्लासिफिकेशन की उचित तरह से समीक्षा की जाए, ध्यानपूर्वक और समझदारी से, खासकर खुफिया स्रोतों और तरीकों को खतरे में डाले बिना और अमेरिकी लोगों को यह समझाते हुए कि हम क्या करने जा रहे हैं. ट्रंप ने सितंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए चीन के प्रयासों का उल्लेख किया था लेकिन प्रेस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था.

ट्रंप ने ओसाका में जी20 की शिखर वार्ता से पहले 18 जून को शी जिनपिंग से फोन पर बातचीत की. यूं शिखर वार्ता में दोनों को मिलना ही था. बातचीत में ट्रंप ने कहा कि उन्हें शी की याद आ रही है और चीन के साथ व्यापार समझौता करने से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली है और यह भी इसका काफी राजनैतिक लाभ होने वाला है. दोनों ने इस बात पर सहमति जताई कि उनकी आर्थिक टीमों को लगातार मिलते रहना चाहिए.

जी20 में दोनों मिले और प्रारंभिक चरण में ही मीडिया के सामने ट्रंप ने ऐलान किया, ‘हम दोस्त बन गए हैं. मैं अपने परिवार के साथ बीजिंग की सैर कर चुका हूं और यह मेरी जिंदगी के सबसे यादगार सफर में से एक था.’

प्रेस के जाने के बाद शी ने कहा कि यह दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की कुछ राजनैतिक शख्सीयतें यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही थीं कि नया शीतयुद्ध शुरू हो चुका है- इस बार अमेरिका और चीन के बीच.

ट्रंप ने मदद की गुहार लगाई

राजनैतिक शख्सीयतों से शी का क्या मायने था- वह डेमोक्रेट्स की तरफ इशारा कर रहे थे या मेज की दूसरी तरफ बैठे हम जैसे लोगों की तरफ. यह मैं नहीं जानता. लेकिन ट्रंप ने तुरंत यह अंदाजा लगाया कि शी डेमोक्रेट्स को निशाना बना रहे थे. ट्रंप ने इस पर सहमति भी जताई कि डेमोक्रेट्स विद्वेष से भरे हैं.

यह हैरत करने वाली बात थी कि उन्होंने चर्चा का रुख अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों की ओर मोड़ दिया. फिर यह उल्लेख किया कि चीन में चुनाव अभियान को प्रभावित करने की आर्थिक क्षमता है, साथ ही शी से अनुरोध किया कि वह उनकी जीत को सुनिश्चित करें.  

ट्रंप ने किसानों के महत्व पर जोर दिया और कहा कि चीन की सोयाबीन-गेहूं की खरीद का चुनावी नतीजों पर बहुत असर होगा. मैं ट्रंप को शब्दशः उद्धृत कर सकता था लेकिन सरकार की प्रकाशन पूर्व समीक्षा ने ऐसा नहीं करने दिया.

ट्रंप ने फिर उसी मुद्दे पर बातचीत शुरू की जो मई में विफल हो गई थी. उन्होंने चीन से आग्रह किया कि वह अपना पहले का रुख अपना ले. उन्होंने फेंटानाइल की तस्करी और कनाडा के नागरिकों को बंदी बनाने (यहां अमेरिकी बंदियों पर कोई चर्चा नहीं की गई) पर चीन के रवैये पर सतही तौर से चर्चा की, हालांकि इस बारे में दोनों ब्यूनस आयर्स में बातचीत कर चुके थे, और यह अनुरोध भी किया कि दोनों पक्षों ने मई में वार्ता को जिस बिंदु पर छोड़ा था, वहीं से दोबारा उसे शुरू किया जाए. साथ ही अब तक का सबसे शानदार समझौता किया जाए.

लेकिन शी ने अचानक अपना रुख बदल दिया. उन्होंने कहा कि अगर हमारे बीच एक गैर बराबर सौदा होता है, तो उसका असर वही होगा जो वर्साय की संधि के ‘अपमान’ के रूप में हुआ था. इस संधि के बाद शैनडॉग प्रांत को जर्मनी से लेकर जापान को दे दिया गया था. शी ने कठोर मुद्रा में साफ कहा, अगर उनके देश को हमारे साथ व्यापार में ठीक उसी अपमान का सामना करना पड़ा तो चीन में देशभक्ति की लहर दौड़ने लगेगी और उसमें अमेरिका के प्रति गुस्सा स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेगा.

ऐसा लगा कि ट्रंप को इस बात कोई अंदाजा ही नहीं कि शी किस ओर इशारा कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि शी के साथ कोई गैर बराबर संधि नहीं की जा रही. आप इतिहास पर चर्चा शुरू करें, तो यह विषय ट्रंप के लिए बहुत आसान है. उन्होंने जवाब में यह भी कहा कि चीन पर अमेरिका का एक कर्ज बकाया है. क्योंकि अमेरिका ने ही जापान को दूसरे विश्वयुद्ध में मात दी थी. बदले में शी ने भी इतिहास के पन्ने पलटे और कहा कि चीन ने करीब उन्नीस साल लड़ाई लड़ी और सिर्फ अपने बूते पर ही जापान को खदेड़ा.

बेशक, यह एक बेतुकी बात थी. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान चीन के कम्युनिस्ट नेता जापान से बचते बचाते अपने देश के राष्ट्रवादियों को कमजोर करने में लगे रहे थे. युद्ध सिर्फ इसलिए खत्म हुआ था क्योंकि हमने एटॉमिक बमों का इस्तेमाल किया था. लेकिन शी इतिहास को कम्युनिस्टों की नजर से देख रहे थे लेकिन यह ट्रंप के पल्ले नहीं पड़ रहा था.

बातचीत के आखिर में ट्रंप ने प्रस्ताव रखा कि 350 बिलियन डॉलर के शेष व्यापार असंतुलन के लिए (ट्रंप के गणित के अनुसार) अमेरिका टैरिफ नहीं वसूलेगा. पर उन्होंने इसरार किया कि चीन अमेरिकी कृषि उत्पादों को अधिक से अधिक खरीदता रहे.

इसके बाद यह देखा जाएगा कि क्या दोनों देशों के बीच कोई समझौता संभव है.

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महान चीनी नेता

ट्रंप ने ल्यू हे से पूछा कि क्या हम उस मुद्दे पर बातचीत कर सकते हैं, जिसे लेकर चीन ने मई में अपना रुख बदला था. पर ल्यू ने चुप्पी साधे रखी. जाहिर था कि वह इस सवाल का जवाब देना नहीं चाहते थे. इस निस्तब्धता को तोड़ते हुए ट्रंप ने ल्यू के अटपटेपन पर कहा कि उन्होंने ल्यू को इतना शांत कभी नहीं देखा.

फिर वह शी की तरफ मुखातिब हुए और उनसे अपने सवाल का जवाब मांगा. क्योंकि इस बात का जवाब देने की हिम्मत सिर्फ उन्हीं के पास थी. शी ने सहमति जताई कि उन्हें व्यापार के मसले पर दोबारा बातचीत शुरू करनी चाहिए और नया टैरिफ न वसूलने की रियायत का स्वागत किया. उन्होंने यह भी मंजूर किया कि दोनों पक्षों को वरीयता से कृषि उत्पादों पर दोबारा चर्चा करनी चाहिए.

ट्रंप खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. उन्होंने चहकते हुए कहा, ‘आप तीन सौ सालों में सबसे महान चीनी नेता हैं.’ फिर कुछ क्षणों के बाद उन्होंने अपने वक्तव्य में संशोधन किया- ‘चीनी इतिहास के एक महान नेता.’ फिर उतर कोरिया पर अगंभीर किस्म की बातचीत हुई, चूंकि उसी शाम ट्रंप सियोल गए थे, और व्यापार संबंधी चर्चा पर विराम लग गया.  

अब शी ने ल्यू भाई-बहन पर बात छेड़ दी. उन्होंने दोहराया कि 1 दिसंबर को ब्यूनस आयर्स में इस पर बात हुई थी. उन्होंने ल्यू भाई बहन को चीनी नागरिक बताया (जबकि असल में उनके पास अमेरिका और चीन की दोहरी नागरिकता है). और बहुत से कह दिया कि ल्यू भाई बहन चीन नहीं छोड़ सकते क्योंकि उन्हें अपने पिता के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जांच अधिकारियों की मदद करनी है. अगर वे इसमें सहयोग नहीं करेंगे तो चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाएंगे.

फिर शी के एक दूसरा मुद्दा छेड़ दिया. उन्होंने कहा कि 1 दिसंबर की ही रात को हुआवे की सीएफओ मेंग वांग्जो को गिरफ्तार किया गया था. शी ने यह कहकर बात खत्म की कि दोनों पक्ष संपर्क में रह सकते हैं. इसके बाद उन्होंने यह शिकायत भी दर्ज की कि अमेरिका चीन के विद्यार्थियों को वीजा जारी करने में भी टालमटोल करता है.

ट्रंप की ट्विटरप्लोमेसी

ओसाका के बाद चीन के साथ व्यापार वार्ता हुई, लेकिन उसकी गति बहुत धीमी थी. 30 जुलाई को ट्रंप ने मनूचन और लाइटहाइजर की सलाह को दरकिनार करते हुए ट्वीट किया:

अनुमति के साथ शेयर की गई इमेज  (सोर्स: जॉन बोल्टन की किताब ‘द रूम वेयर इट हैपेन्ड’)

बातचीत जारी रहने के बावजूद चीन की तरफ से कोई वास्तविक पहल का संकेत नहीं मिला. मनूचिन और लाइटहाइजर ने एक बार फिर बीजिंग का दौरा किया, और 1 अगस्त को ओवल में ट्रंप को इसकी जानकारी दी.

ट्रंप के पास कहने को कुछ नहीं था. उन्होंने जवाब दिया, ‘तुम लोगों को वहां जाने की कोई जरूरत नहीं थी. इससे लगता है कि हमारा पक्ष कमजोर है.’ वह एक दिन पहले ज्यादा टैरिफ के बारे में सोच रहे थे और मुझसे मुस्कुराकर कह चुके थे कि ‘तुम सोच नहीं सकते कि मैं तुम जैसा ही सोचता हूं.’ ट्रंप को अब पहले से भी ज्यादा इस बात का भरोसा हो चुका था कि चीन 2020 के चुनावी नतीजों का इंतजार कर रहा है और चाहता है कि ‘मौजूदा राष्ट्रपति हार जाएं.’

ट्रंप ने आखिर में कहा, ‘मैं टैरिफ लगाना चाहता हूं. वे लोग तुम्हें मूर्ख बना रहे हैं.’ फिर हम इस बात पर विचार करने लगे कि क्या भावी 350 बिलियन डॉलर के चीनी निर्यात पर टैरिफ लगाया जाए. ट्रंप ने मनूचिन से कहा, ‘तुम बहुत बोलते हो. डरो नहीं, स्टीव.’

लाइटहाइजर थोड़ा डरे हुए थे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि चीन से व्यापार युद्ध का असर अमेरिका-यूरोप के संबंधों पर पड़ेगा. लेकिन उनकी चिंता ने आग में घी डालने का काम किया. ट्रंप भड़क गए और बोले, ‘ईयू तो चीन से भी बदतर है, बस उसका भौगोलिक क्षेत्र छोटा है’. फिर उन्होंने ट्विटर के जरिए बीजिंग पर अगले चरण के टैरिफ लगाने की घोषणा की:

अनुमति के साथ शेयर की गई इमेज  (सोर्स: जॉन बोल्टन की किताब ‘द रूम वेयर इट हैपेन्ड’)

यह एक बड़ा फैसला था. ट्रंप की आर्थिक टीम के लिए यह चिंता की बात थी 10 सितंबर को जब मैंने इस्तीफा दिया था, तब भी ऐसी ही स्थिति थी. दिसंबर में जो समझौता हुआ, वह इसके बाद की वार्ताओं का निष्कर्ष था जोकि असल में इसके एकदम विपरीत था.

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