Home News World जेरुसलम में तनाव: ईसाई-मुस्लिम-यहूदी क्यों इसपर सदियों से लड़ रहे?
जेरुसलम में तनाव: ईसाई-मुस्लिम-यहूदी क्यों इसपर सदियों से लड़ रहे?
जेरुसलम ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों के लिए बराबर का महत्त्व रखता है
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(फोटो: Wikimedia Commons)
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जेरुसलम एक बार फिर तनाव का केंद्र बन गया है. पिछले कई हफ्तों से ये शहर इजरायली सुरक्षा बलों और फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों के टकराव का गवाह बन रहा है. जेरुसलम दुनिया के सबसे अनियंत्रित विवादों में से एक इजरायल-फिलिस्तीन विवाद का भी केंद्र है. ये शहर तीनों अब्राहमिक धर्म- यहूदी, ईसाई और इस्लाम के लिए महत्वपूर्ण है.
पुरातत्व सबूतों के मुताबिक जेरुसलम जीसस के जन्म लेने के 4000 साल पहले से बसा हुआ था. इजरायल और फिलिस्तीन दोनों जेरुसलम को अपनी राजधानी होने का दावा करते हैं और कुछ हद तक यही उनके बीच विवाद की जड़ भी है.
जेरुसलम का पुराना शहर चार क्वार्टर में बंटा हुआ है. ये क्वार्टर ईसाइयों, यहूदियों, मुसलमानों और आर्मेनियाई लोगों के हैं. क्योंकि आर्मेनियाई लोग भी ईसाई ही हैं, तो सबसे ज्यादा हिस्सा ईसाई धर्म से प्रभावित है.
जेरुसलम का इतिहास
जेरुसलम दीवार से घिरा हुआ शहर है. क्योंकि इतिहास में इस पर कई बार कब्जा किया गया है, इसलिए इसकी किलेबंदी की गई थी. 1000 BC में डेविड ने जेरुसलम पर हमला किया और इस पर कब्जा कर दीवारें बनाईं.
शहर में यहूदियों का पहला मंदिर किंग सोलोमन के समय में बनाया गया था. 586 BC में शहर बेबीलोनियन राजाओं के कब्जे में चला गया. उन्होंने मंदिर तुड़वा दिया था, लेकिन फिर खुद ही इसका निर्माण कराया.
रोमन काल में जेरुसलम के नजदीकी शहर बेथलेहम में जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था. हालांकि, जीसस को मौत की सजा जेरुसलम की दीवारों के ठीक बाहर स्थित एक जगह गोलगोथा पर दी गई थी.
313 AD तक आते-आते जेरुसलम के मंदिर को एक रोमन बादशाह ने यहूदियों को सजा देने के लिए तोड़ दिया था तो एक राजा ने पूरे शहर को दोबारा बनवाया. 135 AD में शहर का दोबारा निर्माण करवाने वाले रोमन बादशाह हेड्रियन ने जेरुसलम समेत आसपास के इलाकों का नाम फिलिस्तीन रखा.
फिर 313 AD में रोम में ईसाई धर्म का प्रभाव बढ़ने के बाद जेरुसलम ईसाइयों के लिए पवित्र स्थान बन गया.
638 AD में नया धर्म इस्लाम ने अपना प्रभाव बढ़ाया और खलीफा उमर इब्न-अल खत्ताब की सेना की अध्यक्षता कर रहे अबु-उबैदाह ने शहर पर कब्जा किया.
1099 AD में ईसाई धर्मयोद्धाओं ने जेरुसलम पर कब्जा किया और शहर की जनसंख्या का बड़े स्तर पर कत्लेआम किया.
1187 AD में सलाह अल-दीन के नेतृत्व में मुस्लिम फौजों ने फिर जेरुसलम पर कब्जा कर लिया.
ममलूक और ऑटोमन शासन के दौरान जेरुसलम का फिर से निर्माण कराया गया. ऑटोमन शासन के दौरान फिलिस्तीन में यहूदियों की मौजूदगी बहुत ज्यादा नहीं थी. लेकिन 1900 तक यहूदी जेरुसलम का सबसे बड़ा समुदाय बन गया.
पहले विश्व युद्ध के दौरान 1917 में ब्रिटिश सेना ने जेरुसलम पर कब्जा किया. इसी साल ब्रिटिश विदेश मंत्री आर्थर बेल्फोर ने फिलिस्तीन में यहूदियों के एक देश की मांग को समर्थन दिया.
युद्ध के बाद जेरुसलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनाया गया लेकिन उसे ब्रिटिश शासनादेश के तहत रखा गया. शासनादेश के खत्म होने के समय अरब और यहूदियों ने शहर का कब्जा चाहा, लेकिन ईसाइयों ने शहर को तीनों धर्मों के लिए खुला रखने की मांग की.
संयुक्त राष्ट्र में इसी सलाह को बल मिला और फिलिस्तीन का बंटवारा कर दिया गया. इसे अरब देश, यहूदी देश और अंतरराष्ट्रीय प्रशासन वाला शहर बनाया गया.
14 मई 1948 को ये बंटवारा लागू होना था, लेकिन उससे पहले ही जेरुसलम में यहूदियों और अरब लोगों में युद्ध छिड़ गया.
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इजरायल-फिलिस्तीन विवाद
1948 में शुरू हुआ युद्ध जब अगले साल सीजफायर से रुका, तब तक अधिकतर इलाका इजरायल के नियंत्रण में जा चुका था. जॉर्डन ने आज के वेस्ट बैंक और मिस्र ने गाजा पर कब्जा कर लिया था.
जेरुसलम पश्चिम में इजरायली सेना और पूर्व में जॉर्डन की सेना में बंट चुका था. क्योंकि कोई शांति समझौता नहीं हुआ था, इसलिए कई सालों तक युद्ध और लड़ाई चलती रही.
फिर 1967 में ‘छह दिन के युद्ध’ में इजरायल ने पूर्वी जेरुसलम, वेस्ट बैंक, ज्यादातर गोलान हाइट्स, गाजा और साईनाई पेनिनसुला पर कब्जा कर लिया. 1948 में युद्ध शुरू होने के बाद ज्यादातर अरब या कहा जाए फिलिस्तीनी शरणार्थी गाजा और वेस्ट बैंक में रह रहे थे.
इसकी वजह से अब वो फिलिस्तीनी इजरायल के नियंत्रण वाले वेस्ट बैंक और गाजा में आ गए थे. हालांकि, इजरायल गाजा से पीछे हट चुका है लेकिन वेस्ट बैंक अभी भी उसके नियंत्रण में है.
क्यों महत्वपूर्ण है जेरुसलम?
जेरुसलम ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों के लिए बराबर का महत्त्व रखता है. तीनों धर्मों के सबसे महत्वपूर्ण पवित्र स्थानों में से एक जेरुसलम में स्थित हैं.
ईसाइयों के लिए ये Holy Sepulchre चर्च है. ऐसा माना जाता है कि ये वही जगह है, जहां जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं पर वो दोबारा जिंदा हुए थे. माना जाता है कि चर्च में जीसस का खाली ताबूत भी है.
Holy Sepulchre चर्च
मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थान अल-अक्सा मस्जिद जेरुसलम में है. अरब भाषा में इस शहर को अल-क़ुद्स कहा जाता है. मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर मोहम्मद मेराज के दौरान मक्का की मस्जिद से अल-अक्सा मस्जिद लाए गए थे. इस मस्जिद के परिसर में डोम ऑफ रॉक है, जिसके लिए कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद यहां से जन्नत गए थे.
अल-अक्सा मस्जिद
यहूदियों के लिए पश्चिमी दीवार जेरुसलम में स्थित पवित्र स्थान है. पहले के समय में जो यहूदी जेरुसलम नहीं जा सकते थे, वो उसकी दिशा में प्रार्थना करते थे. अभी भी दुनिया के सभी synagogue जेरुसलम की दिशा में ही बने हुए हैं.