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Lula da Silva हारे थे पहला चुनाव, अब तीसरी बार बने ब्राजील के राष्ट्रपति

लूला डा सिल्वा ने 50.8 प्रतिशत वोट हासिल किए. जबकि बोल्सोनारो ने 49.2 प्रतिशत वोट हासिल किए.

प्रणय दत्ता रॉय
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>लूला डा सिल्वा ने बोल्सोनारो को हराया: ब्राजील के नए राष्ट्रपति कौन हैं?</p></div>
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लूला डा सिल्वा ने बोल्सोनारो को हराया: ब्राजील के नए राष्ट्रपति कौन हैं?

(फोटो- altered by quint)  

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सीनियर वामपंथी और ब्राजील (Brazil) के पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा (Lula da Silva’s victory) ने 30 अक्टूबर को दक्षिणपंथी नेता जायर बोल्सोनारो को हराया. लूला डा सिल्वा की जीत ब्राजील की सबसे ज्यादा दक्षिणपंथी विचारधारा की सरकारों में से एक के अंत का प्रतीक है.

उन्होंने 50.8 प्रतिशत वोट हासिल किए. जबकि बोल्सोनारो ने 49.2 प्रतिशत वोट हासिल किए. जिसमें 99.1 प्रतिशत वोटिंग मशीनों की गिनती हुई, जिसे सुप्रीम इलेक्टोरल कोर्ट ने कहा कि कांटेस्ट के नतीजों को "गणितीय रूप से साबित" करने के लिए काफी था.

लूला ने "शांति और एकता" का आह्वान करते हुए कहा कि ब्राजील अब एक अंतरराष्ट्रीय पारिया नहीं है और उन्होंने "जीवित अमेज़ॅन" की आवश्यकता पर जोर डाला.

उन्होंने अपने भाषण के दौरान समर्थकों और प्रतिद्वंद्वियों से भी संपर्क किया और "शांति, लोकतंत्र और अवसर का ब्राजील" की जरूरत पर जोर दिया.

मतगणना के पहले राउंड के दौरान जायर बोल्सोनारो आगे चल रहे थे. जैसे ही लूला ने मोर्चा संभाला, साओ पाउलो का सिटी सेंटर कारों की आवाज से गूंज उठा. कुछ रियो डी जनेरियो पड़ोस में लोग चिल्लाए, "यह बदल गया!"

कौन हैं लूला डा सिल्वा?

लूला ने अपना पहला चुनाव 1989 में लड़ा और हार गए इस साल ब्राजील ने अपने सत्तावादी अतीत को त्याग दिया और आधिकारिक तौर पर लोकतंत्र बन गया. वह 1990 के दशक में दो और चुनाव भी हार गए, लेकिन आखिरकार 2003 में राष्ट्रपति बने और सात साल तक इस पद पर रहे.

उन्हें अपनी कल्याणकारी समाजवाद नीतियों और उच्च शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का श्रेय दिया जाता है.

2 अक्टूबर को पहले वोट के दौरान लूला डी सिल्वा के सामने बहुमत हासिल करने में फेल रहने के बाद ब्राजील में राष्ट्रपति पद की दौड़ दूसरे दौर में चली गई.

99.5 प्रतिशत से ज्यादा वोटों की गिनती के बाद, वामपंथी नेता डा सिल्वा ने 48.3 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बोल्सोनारो ने चुनावी पूर्वानुमानों से बेहतर प्रदर्शन किया और 43.3 प्रतिशत वोट हासिल किया.

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पहले दौर में राष्ट्रपति पद की दौड़ जीतने के लिए, डा सिल्वा या बोल्सोनारो को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करने थे. जैसा कि यह दोनों इसे हासिल करने में सक्षम नहीं थे, तो उन्हें अंतिम रन-ऑफ वोट के लिए चार हफ्ते के स्प्रिंट के लिए जूझना पड़ा, जो रविवार, 30 अक्टूबर को हुआ था.

प्री-इलेक्शन पोल्स ने दा सिल्वा को पहले दौर के दौरान ही राष्ट्रपति कार्यालय से काफी दूरी पर रख दिया था, जिससे उनके वोटों के आधे से ज्यादा होने की भविष्यवाणी की गई थी.

लूला अपने अनुभव पर भरोसा कर रहे थे, और बोल्सोनारो शासन की कमियों पर प्रकाश डाल रहे थे. विशेष रूप से बोल्सोनारो के COVID महामारी से निपटने, जिसने देश में लगभग 7 लाख लोगों की जान ले ली, आर्थिक मंदी, और नीतियों ने बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय गिरावट को जन्म दिया.

वह 1970 के दशक में एक यूनियन के नेता के रूप में एक प्रमुख चेहरा बन गए, ऐसे समय में जब ब्राजील वामपंथियों की ओर रूख कर रहा था, जिसमें मजदूर ज्यादा मजदूरी और बेहतर काम करने के मानकों की मांग कर रहे थे. लूला ने इस अवधि के दौरान हड़ताल आयोजित करने में भी मदद की, जिसे देश में तत्कालीन सैन्य शासकों द्वारा अवैध माना जाता था.

1980 में लूला, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों सहित कई यूनियन नेताओं ने सैन्य प्रतिष्ठान को चुनौती देने के लिए वर्कर्स पार्टी का गठन किया.

जोरदार विरोधों के बीच, ब्राजील ने अपने सत्तावादी अतीत को त्याग दिया और आधिकारिक तौर पर 1989 में एक लोकतंत्र बन गया, जिस वर्ष इसका पहला आम चुनाव हुआ था लूला चुनाव लड़े और हार गए थे.

वह 1990 के दशक में दो और चुनाव भी हार गए, लेकिन आखिरकार 2003 में राष्ट्रपति बने और सात साल तक इस पद पर रहे.

अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कल्याणकारी समाजवाद और उच्च शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया, इस प्रकार बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से बाहर निकाला.

उनकी नीतियां भी ब्राजील के लिए विकासशील देशों के बीच बड़े पैमाने पर कर्जदार होने और 2008 में पहली बार लेनदार बनने के लिए जिम्मेदार थीं.

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