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UEA, बहरीन, सूडान की इजरायल से ‘दोस्ती’! क्यों और कैसे ये चमत्कार?

किसे, क्या हासिल हुआ?

नमन मिश्रा
दुनिया
Published:
किसे, क्या हासिल हुआ?
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किसे, क्या हासिल हुआ?
(फोटो: Wikimedia Commons)

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18वीं सदी में दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे हेनरी जॉन टेंपल ने कहा था, "देशों के स्थायी दुश्मन या स्थायी दोस्त नहीं होते, सिर्फ स्थायी हित होते हैं." ये बात आज 100 प्रतिशत कहीं लागू होती है, तो वो जगह मिडिल ईस्ट है.

पिछले कुछ महीनों में तीन अरब देशों ने इजरायल के साथ संबंध सुधार लिए हैं, सामान्य कर लिए हैं. तीनों समझौते अमेरिका की मध्यस्थता से हुए हैं.

लेकिन इस समझौते के पीछे UAE, बहरीन और सूडान की प्रेरणा क्या रही? जिस इजरायल को अरब देश रह-रहकर फलीस्तीन के लिए कोसते थे, अब वो उससे रिश्ते सामान्य क्यों कर रहे हैं? इन सब सवालों के जवाब से पहले जानते हैं कि ये समझौते असल में क्या हैं.

क्या बदल जाएगा?

UAE: संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल के बीच रिश्ते सामान्य करने के समझौते का ऐलान 13 अगस्त 2020 को हुआ था. मिस्र और जॉर्डन के बाद UAE इजरायल के साथ रिश्ते सुधारने वाला चौथा अरब देश और पहला गल्फ देश बन गया है. इस समझौते पर आधिकारिक रूप से हस्ताक्षर 15 सितंबर को व्हाइट हाउस में किए गए. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस दौरान 'साक्षी' के तौर पर मौजूद रहे.

इस समझौते का आधिकारिक नाम ‘अब्राहम समझौता’ है. इसके मुताबिक, UAE और इजरायल एक-दूसरे की संप्रभुता को मान्यता देंगे, राजदूत भेजेंगे और वीजा समझौते समेत कई मुद्दों पर द्विपक्षीय समझौते करेंगे. मतलब कि दोनों देश पूरे राजनयिक संबंध स्थापित कर रहे हैं.

बहरीन: डोनाल्ड ट्रंप ने बहरीन और इजरायल के बीच शांति समझौते का ऐलान 11 सितंबर को किया था और 15 सितंबर को व्हाइट हाउस में आधिकारिक रूप से इस पर हस्ताक्षर किए गए. ये भी 'अब्राहम समझौता' ही है. बहरीन चौथा अरब देश बन गया है, जिसने इजरायल को मान्यता दे दी है.

दोनों देशों ने राजनयिक संबंध स्थापित करने पर हामी भरी है. ये रिश्ते सामान्य करने का पहला कदम है. ट्रंप ने कहा कि दोनों देश राजदूत भेजेंगे और एक-दूसरे की राजधानी में दूतावास खोलेंगे. इसके अलावा इजरायल और बहरीन टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य और खेती समेत कई क्षेत्रों में एक-दूसरे को सहयोग करेंगे.

सूडान: इजरायल के साथ सूडान के रिश्ते सामान्य होने का ऐलान 23 अक्टूबर को हुआ. असल में ये ऐलान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया था. लेकिन UAE और बहरीन की तरह सूडान, इजरायल के साथ राजनयिक रिश्ते स्थापित नहीं कर रहा है. ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि बातचीत के दौरान राजनयिक संबंध मुद्दा भी नहीं था.

इजरायल, सूडान और अमेरिका के साझा बयान के मुताबिक, दोनों देश आर्थिक और व्यापारिक रिश्ते शुरू करेंगे और शुरुआती ध्यान खेती पर होगा.”
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किसे, क्या हासिल हुआ?

UAE

इजरायल के साथ रिश्ते सुधारने का UAE पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. पहले भी दोनों देशों के बीच रिश्ते अच्छे नहीं, तो खराब भी नहीं रहे हैं. UAE और इजरायल सालों से व्यापर करते आए हैं. 'अब्राहम समझौता' इस अनौपचारिक रिश्ते को सिर्फ औपचारिक बना देगा.

इजरायल ने 1979 में मिस्र और 1994 में जॉर्डन के साथ शांति समझौता किया था. लेकिन फिर भी इन दोनों देशों के साथ ही इजरायल के व्यापारिक संबंध कोई बहुत अच्छे नहीं हैं. दोनों ही देश इजरायल के साथ युद्ध लड़ चुके हैं. लेकिन UAE की बात अलग है. वो आर्थिक सफलता का उदाहरण है और उसने इजरायल के साथ कभी युद्ध नहीं लड़ा है.

इजरायल के साथ रिश्ते सुधारने से UAE को आधुनिक अमेरिकी हथियारों तक पहुंच मिल सकती है. इसका उदाहरण अरब दुनिया मिस्र के रूप में देख चुकी है. दूसरी सबसे बड़ी बात कि अमेरिकी प्रशासन में अपनी छवि सुधारने के लिए इजरायल से रिश्ते सामान्य करना सबसे बुनियादी कदम है. यमन में गृह युद्ध में UAE की भागीदारी ने अमेरिका में उसकी साख पर बट्टा लगा दिया है. इसे ठीक करने के लिए अब्राहम समझौता एक अच्छी शुरुआत साबित हो सकता है.

बहरीन

UAE की ही तरह बहरीन ने इजरायल से दूरी नहीं बनाई. 2017 में बहरीन के शासक हमाद बिन इसा अल खलीफा ने इजरायल के अरब लीग बॉयकॉट से इनकार कर दिया था. उसके बाद से ही बहरीन और इजरायल के रिश्तों में अनौपचारिक रूप से सुधार आया है. हालांकि, दोनों के बीच में कोई खासा व्यापारिक संबंध नहीं है.

इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करके बहरीन भी अमेरिकी रक्षा उपकरणों तक पहुंच हासिल करना चाहता है. उसकी नजर अमेरिकी एयर डिफेंस सिस्टम पर है. साथ ही UAE की तरह बहरीन का मिडिल ईस्ट में एक दुशमन मौजूद है- ईरान. सुन्नी अरब देशों ने ईरान को कई सालों के दरमियान एक मामूली शिया देश से क्षेत्र की बड़ी ताकत के रूप में उभरते हुए देखा है. ऐसे में इजरायल और अमेरिका के साथ नजदीकी ईरान का प्रभाव कम करने में फायदेमंद साबित हो सकती है.

2011 के अरब स्प्रिंग के दौरान जब बहरीन में हमाद बिन इसा अल खलीफा के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए थे, तो इसका आरोप ईरान पर लगा था. अरब स्प्रिंग के दौरान कई देशों में तख्तापलट हुआ था, लेकिन सऊदी अरब की मदद से खलीफा बहरीन में अपनी सत्ता बचा ले गए.

सूडान

UAE और बहरीन की तरह सूडान, इजरायल के साथ रिश्ते राजनयिक स्तर तक नहीं ले गया है. सूडान ने सिर्फ रिश्ते सामान्य करने का समझौता किया है. लेकिन सूडान का ऐसा करना भी प्रतीकात्मक तौर पर बहुत अहम है. क्योंकि 1967 में सूडान की राजधानी खार्तूम में अरब लीग समिट हुआ था, जिसमें आठ अरब देशों ने इजरायल के साथ 'कोई शांति, समझौता और बातचीत' नहीं करने का फैसला किया था.

सूडान के लिए इजरायल के साथ समझौता करना अपनी अर्थव्यवस्था बचाने के लिए अहम था. सूडान को अमेरिका ने 1993 में आतंकियों की कथित मदद के लिए अपनी 'आतंकवाद के प्रायोजक' लिस्ट में शामिल किया था. इसकी वजह से सूडान आर्थिक रूप से कमजोर हो गया था. वो वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों से मदद नहीं ले सकता था. हालांकि, इजरायल के साथ समझौते के बाद अमेरिका ने उसे इस लिस्ट से हटा दिया है.

इजरायल

इजरायल ने बहुत छोटी से कीमत पर बहुत कुछ कमा लिया है. तीन अरब देशों के साथ समझौते में इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की जीत ही जीत है. नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के कई मुकदमे चल रहे हैं और कोरोना वायरस महामारी को संभालने को लेकर उनकी आलोचना हो रही है. ऐसे में तीन अरब देशों के साथ संबंध सुधार लेना नेतन्याहू के लिए बड़ी जीत लगती है.

हालांकि, इसके लिए उन्हें अपने वेस्ट बैंक को कब्जे में लेने की योजना को स्थगित करना पड़ा है. फलीस्तीन दो हिस्सों में बंटा हुआ है- गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक. नेतन्याहू वेस्ट बैंक में इजरायली कॉलोनियां बनाकर इस पर कब्जे की योजना बना रहे थे. लेकिन इन समझौतों में एक शर्त यही है कि इजरायल अपनी इस योजना पर काम नहीं करेगा.  

स्थगित करना और रद्द करने में अंतर होता है. इजरायल योजना पर अभी अमल नहीं करेगा, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि उसने इसका त्याग कर दिया है. हालांकि, UAE के लिए भी इजरायल का ये कदम मददगार साबित हो सकता है. UAE दावा कर सकता है कि उसने वेस्ट बैंक पर कब्जा नहीं होने दिया है.

मिडिल ईस्ट में इस बदलाव की वजह क्या है?

अरब देशों और इजरायल के बीच रंजिश, अदावत और दूरी का सबसे बड़ा मुद्दा था- फलीस्तीन. लेकिन अब वो कोई मुद्दा नहीं रहा है. जानकारों का मानना है कि अरब देश फलीस्तीन का मसला लगभग छोड़ ही चुके हैं.

इसकी शुरुआत सालों पहले शुरू हो चुकी थी. जब 1990 में इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर हमला किया था, तो फलीस्तीन के उस समय सबसे बड़े नेता यासिर अराफात ने सद्दाम का समर्थन किया था. इस कदम से तेल-बहुल अरब देशों ने फलीस्तीन के साथ दूरी बढ़ा दी थी.

इससे पहले 1979 में खोमैनी के आने के बाद से ईरान ने फलीस्तीन में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था. ईरान फलीस्तीनी संगठन हमास को समर्थन देता है. इसे अरब देश ईरान का आंदोलन दूसरे देशों तक निर्यात करने के तौर पर देखते हैं. ईरान से फलीस्तीनी नेताओं की करीबी ने अरब देशों को इस मुद्दे से दूर कर दिया है.

इजरायल के साथ अरब देशों के संबंध सुधारने के मुद्दे को समझते हुए ईरान को ध्यान में रखना चाहिए. ईरान शिया बहुल देश है और बाकी लगभग सभी अरब देश सुन्नी बहुल हैं. सऊदी सुन्नी अरब देशों का अघोषित नेता है. अरब देशों ने देखा है कि कैसे अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने मिडिल ईस्ट में वर्चस्व हासिल किया है. इस समय ईरान की मिलिशिया लेबनान से लेकर इराक और सीरिया तक में मौजूद है. ईरान हर मुस्लिम मुद्दे का चैंपियन बनने की कोशिश करता है. ऐस में अरब देशों का क्षेत्र के सबसे आधुनिक देश से हाथ मिलाना उनके लिए फायदे का सौदा है.  

मिडिल ईस्ट में इजरायल सबसे आधुनिक तकनीक वाला देश है. साथ ही अमेरिका का समर्थन हासिल करने का आसान रास्ता इजरायल से होकर गुजरता है. ऐसे में अरब देश समझ चुके हैं कि इजरायल का बॉयकॉट करने का कोई मतलब नहीं रह गया है. क्षेत्र में बड़ी ताकत बनना है तो तकनीक और अच्छे संबंध चाहिए होंगे.

इसके अलावा तेल का खेल अब लगभग खत्म हो चुका है. बाकी रही सही कसर कोरोना वायरस महामारी ने पूरी कर दी है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि महामारी से पहले की तेल डिमांड पर लौटने में 2022 तक का समय लग सकता है. अब खेल है व्यापार का और व्यापार के लिए रिश्ते अच्छे होना सबसे जरूरी है.

ये व्यापार की प्राथमिकता ही है कि जो सऊदी अरब मुसलमानों का नेता बनता है, उसके पास जब पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा कश्मीर का रोना लेकर जाते हैं, तो क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान मिलने तक से मना कर देते हैं. भारत तेल का तीसरा सबसे बड़ा इंपोर्टर है और सऊदी भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बिगाड़ने की नहीं सोच सकता है.  

जब भारत में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लाया गया, तो पाकिस्तान और तुर्की ने इसे मुस्लिमों के खिलाफ बताया लेकिन सऊदी अरब या और किसी अरब देश ने कुछ नहीं कहा था.

अगर कुछ समय बाद सऊदी अरब भी इजरायल के साथ रिश्ते सुधार लेता है, तो ये कोई हैरानी की बात नहीं होगी. तीन अरब देश अगर इजरायल के साथ संबंध ठीक कर रहे हैं तो लाजिमी है कि इसमें सऊदी अरब की मंजूरी है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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