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नर्गेस मोहम्मदी को शांति का नोबल: ईरान, अफगानिस्तान और दुनिया भर की महिलाओं के लिए आशा

नर्गेस मोहम्मदी को शांति का नोबेल उस समय मिला है जब ईरान में महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न चरम पर है.

दीपा पेरेंट
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>नर्गेस मोहम्मदी की जीत: ईरान, अफगानिस्तान और दुनिया भर में महिलाओं के लिए आशा</p></div>
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नर्गेस मोहम्मदी की जीत: ईरान, अफगानिस्तान और दुनिया भर में महिलाओं के लिए आशा

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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औरत, जिंदगी, आजादी

ईरानी शासन के खिलाफ पिछले साल के विद्रोह का लोकप्रिय नारा शुक्रवार, 6 अक्टूबर को दुनिया भर में गूंज उठा. इसकी वजह थी कि नॉर्वेजियन नोबेल समिति के अध्यक्ष बेरिट रीस-एंडरसन ने जेल में बंद ईरानी अधिकार कार्यकर्ता (Iranian rights activist) नर्गेस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) को नोबेल शांति पुरस्कार 2023 का विजेता घोषित किया.

नर्गेस मोहम्मदी को आंदोलन की "निर्विवाद नेता" कहते हुए रीस-एंडर्सन ने कहा,

"ये पुरस्कार सबसे पहले ईरान में अपनी निर्विवाद नेता- नर्गेस मोहम्मदी के साथ पूरे आंदोलन के महत्वपूर्ण काम को मान्यता देता है."

नर्गेस मोहम्मदी को शांति का नोबेल उस समय मिला है जब ईरान में महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न चरम पर है. ईरान ने हाल ही में 22 वर्षीय कुर्दिश महिला- महसा अमिनी की पहली बरसी मनाई, जिसकी हिरासत में मौत के बाद ईरान में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे.

रिपोर्ट्स के अनुसार, कथित तौर पर हिजाब ठीक से नहीं पहनने के कारण अमिनी को ईरान की कुख्यात 'मोरैलिटी पुलिस' ने हिरासत में पीट-पीटकर मार डाला गया था.

अमिनी की मौत के दौरान जो कुछ हुआ, वैसा ही हाल ही में एक 16 वर्षीय ईरानी लड़की- अर्मिता गेरावंद के साथ तेहरान मेट्रो में हुआ. रिपोर्ट्स के अनुसार, हिजाब पुलिस के साथ मुठभेड़ के बाद उसे कथित तौर पर पीटा गया था जिससे वो कोमा में चली गई थी.

ईरानी राज्य मीडिया के अनुसार, गेरवांद अभी भी कोमा में है. राजधानी में स्थित फज्र अस्पताल के आसपास सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.

ईरानी अधिकारियों की धमकी नर्गेस के सपनों को धूमिल नहीं कर सकती

मोहम्मदी फिलहाल ईरान के खिलाफ "प्रोपेगेंडा फैलाने" के आरोप में तेहरान की कुख्यात एविन जेल में 10 साल की जेल की सजा काट रही हैं. उन्हें दशकों तक गिरफ्तारी और कानूनी प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ा है.

ईरान में सक्रियता से मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के कारण ही मोहम्मदी को 13 बार गिरफ्तार किया गया, उन्हें पांच बार दोषी ठहराया गया, 30 साल से ज्यादा के लिए जेल की सजा हुई और 154 कोड़े मारे गए.

16 सितंबर 2022 को अमिनी की मौत के बाद, महिलाओं के नेतृत्व में लोकप्रिय विरोध प्रदर्शन हुए ईरानी लोगों ने शासन के खिलाफ मार्च किया. अपनी जेल की सजा के बावजूद, मोहम्मदी ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन करना जारी रखा है.

इस साल की शुरुआत में न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक "अनधिकृत टेलीफोन इंटरव्यू" में मोहम्मदी ने कहा, “मैं हर दिन खिड़की के सामने बैठती हूं, हरियाली को निहारते हुए एक स्वतंत्र ईरान का सपना देखती हूं." उन्होंने आगे कहा,

"जितनी ज्यादा वे मुझे सजा देते हैं, जितना वे मुझसे दूर ले जाना चाहते हैं, उतनी ही ज्यादा मैं लड़ने के लिए दृढ़ होती जाती हूं, तब तक जब तक कि हम लोकतंत्र और स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते और इससे कम कुछ नहीं."

द टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोहम्मदी ने एक साल से ज्यादा समय तक अपने 16 वर्षीय जुड़वा बच्चों से बात नहीं की थी और आठ साल से ज्यादा समय तक बच्चों को अपनी बाहों में नहीं लिया था. उनकी सक्रियता के कारण उनका "करियर, परिवार और आजादी" खत्म हो गई.

"महिला, जीवन, स्वतंत्रता" आंदोलन के समर्थन में जेल से भेजी गई मोहम्मदी की उपेक्षापूर्ण प्रतिक्रियाओं के चलते अधिकारियों ने उनके टेलीफोन और मुलाकात के अधिकार रद्द कर दिए. लेकिन डराने के तरीकों और धमकियों से मोहम्मदी का उत्पीड़ितों, विशेषकर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने का दृढ़ संकल्प कम नहीं हुआ है- न केवल ईरान में, बल्कि अफगानिस्तान में भी.

चूंकि अफगान महिलाएं तालिबान के शासन में उत्पीड़न का सामना कर रही हैं, मोहम्मदी के नोबेल शांति पुरस्कार ने उनके लिए भी आशा जगा दी है.

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'महिलाओं की लड़ाई की कोई सीमा नहीं होती'

अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ता होदा खामोश को तालिबान की धमकियों के चलते 2022 में अपना देश छोड़ना पड़ा था. उन्होंने द क्विंट से कहा,

“मैं नर्गेस मोहम्मदी को बधाई देती हूं और इस्लामी गणतंत्र ईरान की जेल से उनकी रिहाई की आशा करती हूं. वो सिर्फ एक देश की आवाज नहीं हैं, बल्कि उन हजारों उत्पीड़ित महिलाओं की आवाज हैं जो अत्याचारों के खिलाफ खड़ी हुईं. और मेरा मानना ​​है कि महिलाएं पूरी जागरूकता के साथ लड़ती हैं और लड़ाई की कोई सीमा नहीं होती.”

खामोश ने कहा, "वो (मोहम्मदी) सिर्फ ईरान की आवाज नहीं हैं, अफगानिस्तान की आवाज हैं और यहां तक ​​कि आज दुनिया भर में उत्पीड़ित महिलाओं की आवाज भी हैं."

द क्विंट से बात करने वाले प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं ने कहा कि मोहम्मदी की नोबेल शांति पुरस्कार जीत ने ईरानी महिलाओं के खिलाफ चल रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.

नए कड़े और अनिवार्य हिजाब कानून के पारित होने से लेकर हिजाब उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कथित हिंसा तक, ईरानी महिलाओं को इस्लामिक सुरक्षा बलों के हाथों क्रूर उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.

दिसंबर 2022 में एविन जेल से बीबीसी से मोहम्मदी ने दर्द बयां करते हुए कहा कि हिरासत में ली गई महिला प्रदर्शनकारियों का यौन और शारीरिक शोषण किया जा रहा था.

मानवाधिकार संगठनों ने बताया कि पिछले साल सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान 500 से ज्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए हैं, जिनमें 70 बच्चे भी शामिल हैं.

मरने वालों में 62 साल की मीनू मजीदी भी शामिल थीं. मजीदी की बेटियां रोया और महसा पिराई ने ईरान में महिलाओं पर चल रहे उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना जारी रखा है.

मोहम्मदी को नोबेल पुरस्कार मिलने पर बेहद खुश महसा ने द क्विंट को बताया,

“प्रतिरोध की शिक्षक नर्गेस मोहम्मदी को बधाई. महिलाओं को बधाई. आजादी चाहने वाले ईरानियों को बधाई. औरत, जिंदगी, आजादी."

रीस-एंडरसन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सहित वैश्विक नेताओं ने ईरानी अधिकारियों से मोहम्मदी को 10 दिसंबर को ओस्लो सिटी हॉल में व्यक्तिगत रूप से नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने के लिए समय पर रिहा करने का आग्रह किया है.

कार्यकर्ताओं को डर है कि मोहम्मदी की रिहाई की संभावना बहुत कम है, क्योंकि इस्लामिक रिपब्लिक ने एक बयान जारी कर उन्हें दिए गए सम्मान की निंदा की है और इसे "एक राजनीतिक कदम" बताया है.

लेकिन उनकी लड़ाई जारी है- और उनके जैसी महिलाओं की लड़ाई भी जारी है.

(लेखिका पेरिस स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन की पूर्व छात्रा हैं और अंतरराष्ट्रीय संघर्ष और युद्ध के बारे में लिखती हैं.)

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