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अमेरिका में विश्व के सबसे बड़े मंदिर का उद्घाटन: जातिवाद और दुर्व्यवहार के दावे

न्यू जर्सी मंदिर के दलित मजदूरों का दावा है कि BAPS ने अमेरिका में इमिग्रेशन और श्रम कानूनों का उल्लंघन किया है.

प्रणय दत्ता रॉय
दुनिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>अमेरिका में विश्व के सबसे बड़े मंदिर का उद्घाटन: जातिवाद और दुर्व्यवहार के दावे</p></div>
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अमेरिका में विश्व के सबसे बड़े मंदिर का उद्घाटन: जातिवाद और दुर्व्यवहार के दावे

(फोटो - altered by quint)

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न्यूयॉर्क (New York) से 100 किमी दक्षिण में न्यू जर्सी के छोटे से रॉबिन्सन टाउनशिप में रविवार, 8 अक्टूबर को बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्थान (BAPS) अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन हुआ. ये मंदिर आधुनिक युग में विदेश में बना अब तक का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है.

हालांकि, 12 सालों में 12,500 से ज्यादा 'वॉलंटियर्स' द्वारा निर्मित यह भव्य मंदिर उस समय विवादों में घिर गया जब निर्माण से जुड़े 6 दलित "वॉलंटियर्स" ने एक क्लास-एक्शन मुकदमा (lawsuit) दायर किया. जिसमें बीएपीएस के खिलाफ कई दावे किए गए हैं. जैसे- भारत से दलित श्रमिकों की तस्करी, जाति संबंधित भेदभाव और शोषण. इसके साथ ही अमेरिकी श्रम और इमिग्रेशन कानूनों के कई कथित उल्लंघन के भी आरोप लगाए गए हैं.

द क्विंट प्राप्त बीएपीएस के खिलाफ दायर क्लास एक्शन मुकदमे से जुड़े दस्तावेजों में कहा गया है,

"प्रतिवादी (BAPS) जानते थे कि ये कर्मचारी बड़े पैमाने पर भेदभाव से पीड़ित हैं और भारत में उनके पास सीमित आर्थिक अवसर, सेवाओं तक पहुंच और सरकारी सुरक्षा है. प्रतिवादियों ने अनिवार्य रूप से भारत की जाति व्यवस्था को हथियार बनाया, इसका इस्तेमाल वादी और अन्य आर-1 श्रमिकों को काम करने के लिए मजबूर करने के लिए किया गया. वह भी न्यू जर्सी में बेहद खराब परिस्थितियों में घटिया वेतन के साथ."

हालांकि, बीएपीएस के नेताओं ने गलत व्यवहार के किसी भी आरोप से इनकार किया है. न्यू जर्सी के पूर्व वकील और बीएपीएस के कानूनी प्रतिनिधि पॉल जे फिशमैन ने जोर देकर कहा कि फेडरल गवर्नमेंट ने लगातार पत्थर के कारीगरों को आर-1 वीजा दिया है और इससे संबंधित एजेंसियों ने नियमित रूप से उन सभी निर्माण परियोजनाओं का निरीक्षण किया है, जिन पर उन कारीगरों ने स्वेच्छा से काम किया था."

183 एकड़, 4.7 मिलियन घंटे काम: मंदिर का निर्माण

अक्षरधाम की न्यू जर्सी ब्रांच 183 एकड़ में फैली हुई है और इसे प्राचीन भारतीय संस्कृति के तत्वों को शामिल करते हुए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया है. इस विशिष्ट हिंदू मंदिर में एक मुख्य मंदिर, 12 उप-मंदिर, नौ शिखर, और नौ पिरामिडनुमा शिखर शामिल हैं.

इसके निर्माण में लगभग दो मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर का इस्तेमाल किया गया, जो बुल्गारिया, तुर्की, ग्रीस, इटली, भारत, चीन और अन्य क्षेत्रों सहित दुनिया भर के विभिन्न स्थानों से मंगाया गया था. यह आधुनिक युग में भारत के बाहर निर्मित सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है, जो 126 एकड़ जमीन पर बना है.

मंदिर के निर्माण में 'वॉलंटियर्स' ने सामूहिक रूप से 4.7 मिलियन घंटे काम किया है.

ब्रह्म कुंड- एक पारंपरिक भारतीय बावड़ी है, जिसमें कथित तौर पर दुनिया भर के 300 से अधिक जल निकायों का पानी है. इसमें भारत और सभी 50 अमेरिकी राज्यों की नदियों का जल शामिल है.

यह मंदिर दिल्ली और गुजरात के बाद BAPS द्वारा स्थापित तीसरे अक्षरधाम या "परमात्मा के निवास" है. जो BAPS के मुख्यालय के साथ ही विश्व स्तर सबसे बड़ा हिंदू मंदिर परिसर भी है.

उत्तरी अमेरिका में अगले साल 50वीं वर्षगांठ मना रहा BAPS दुनिया भर में 1,200 से ज्यादा मंदिरों और 3,850 केंद्रों के नेटवर्क की देखरेख करता है.

दलित वर्कर्स का BAPS के खिलाफ क्लास एक्शन मुकदमा

11 मई 2021 को न्यू जर्सी जिला अदालत में छह दलित वॉलंटियर्स - मुकेश कुमार, केशव कुमार, देवी लाल, निरंजन, पप्पू और ब्रजेंद्र की ओर से बीएपीएस मंदिर के खिलाफ क्लास एक्शन मुकदमा दायर किया गया था. जिसे लगभग 200 से ज्यादा लोगों का समर्थन प्राप्त था. इस मुकदमे में फेडरल और राज्य श्रम कानूनों के साथ-साथ मानव तस्करी विरोधी कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है.

उस समय, मुकदमा केवल न्यू जर्सी के मंदिर पर केंद्रित था, जिसमें दावा किया गया था कि लोगों को झूठे बहाने के तहत देश में लाया गया और फिर हफ्ते के सातों दिन मात्र $1.20 प्रति घंटे के हिसाब से काम करवाया गया. हालांकि, मुकदमा दायर होने के बाद से संगठन इन दावों को खारिज करता आया है.

संशोधित मुकदमे में उन दावों को भी जोड़ा किया गया जिसमें देश भर के मंदिरों को शामिल किया गया जहां कुछ पुरुषों ने कहा कि उन्हें काम करने के लिए भेजा गया था. मुकदमे में दावा किया गया कि सैकड़ों श्रमिकों का संभावित रूप से शोषण किया गया.

द क्विंट द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक, मुकदमे में दावा किया गया है कि बीएपीएस ने मंदिर के निर्माण के लिए पत्थर के काम और निर्माण कार्यों में रुचि रखने वाले भारत के श्रमिकों की भर्ती करने की जिम्मेदारी ली थी और अक्सर उनसे जुड़े एजेंटों के माध्यम से श्रमिकों की भर्ती की जाती थी.

अपनी आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, BAPS खुद को एक सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था के रूप में बताता है जो "विश्वास, एकता और निस्वार्थ सेवा के हिंदू सिद्धांतों को बढ़ावा देकर व्यक्तिगत विकास के माध्यम से समाज को बढ़ाने" के लिए समर्पित है.

सार्वजनिक रिकॉर्ड के मुताबिक, न्यू जर्सी मंदिर एक मल्टी-मिलियन डॉलर ऑपरेशन है, और इसका निर्माण 2010 में शुरू हुआ था. मंदिर 2014 में आगंतुकों के लिए खोला गया था, लेकिन अभी भी निर्माणाधीन है क्योंकि BAPS का दावा है कि यह देश का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है.

'इमीग्रेशन, लेबर लॉ' के 'उल्लंघन' का आरोप

मुकदमे में दावा किया गया कि 'वॉलंटियर्स' को शारीरिक श्रम के लिए भर्ती किया जा रहा था, लेकिन उन्हें आर-1 धार्मिक वीजा पर अमेरिका लाया गया था. बता दें कि आर-1 धार्मिक वीजा गैर-आप्रवासी, अस्थायी कार्य वीजा है जो कि अमेरिका में धार्मिक व्यवसायों के लिए जारी किया जाता है.

इसमें कहा गया है कि बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था ने न केवल श्रमिकों को मंदिर निर्माण के लिए अमेरिका लाने की मंजूरी ली, बल्कि श्रमिकों को मिले वीजा पर भी संगठन का नाम है.

इसके अलावा, बीएपीएस कर्मियों ने कथित तौर पर अमेरिकी अधिकारियों को बताया कि मजदूर "वॉलंटियर्स" थे और वीजा इंटरव्यू से पहले उन्हें यह दावा करने के लिए ट्रेन किया गया था कि वो बिना किसी पैसे के "वॉलंटियर्स के रूप में" करने के लिए यात्रा कर रहे थे.

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सिर्फ इतना ही नहीं है...

इतना ही नहीं, मुकदमे में यह भी आरोप लगाया गया है कि BAPS ने मंदिर निर्माण के दौरान मजदूरों के पासपोर्ट और वीजा को "छुपाया, जब्त किया और अपने पास रखा", ताकि मजदूरों के मूवमेंट को रोका जा सके. यहां तक कि जब उन्हें भारत लौटने की अनुमति थी, तब भी कुछ मजदूरों के लिए यह जरूरी था कि वह वित्तीय गारंटी दें कि अन्य कर्मचारी काम करने के लिए भारत से न्यू जर्सी लौटेंगे."

ऐसे ही एक परिदृश्य में, एक कर्मचारी पर कथित तौर पर 35,000 रुपये (वर्तमान में $420) का जुर्माना लगाया गया था, जब उसने जिस कर्मचारी की गारंटी दी थी वह न्यू जर्सी नहीं लौटा. मामले में प्रतिवादी, उनके सीईओ कनु पटेल सहित बीएपीएस कर्मियों ने इन आरोपों से इनकार किया था.

कथित तौर पर सालों तक मजदूरों को सप्ताह के सातों दिन, 12-12 घंटे "मंदिर में काम करने" के लिए मजबूर किया गया. जहां उनका काम पत्थर काटने, पत्थर बिछाने, कचरा हटाने, सड़क का काम करने, केमिकल में पत्थर डालने इत्यादि तक ही सीमित था. इनमें ऐसा कोई भी काम शामिल नहीं था जिसके लिए वो अमेरिका आए थे, जैसे- सजावटी पत्थर की पेंटिंग और नक्काशी का काम.

मुकदमे में कहा गया है कि उन्हें विशेष रूप से यह नहीं बताया गया था कि न्यू जर्सी में काम के लिए उन्हें कितना पैसा मिलेगा. हालांकि, उनसे वादा किया गया था कि पहले से काम कर रहे मजदूरों को जितना पैसा मिल रहा है उतना पैसा उन्हें भी मिलेगा. एजेंटों ने ये रकम बढ़ा-चढ़ाकर बताई थी.

जो वादा किया गया था उसके उलट मजदूरों को प्रति हफ्ता 87 घंटे के काम के लिए मात्र $450 प्रति महीने का भुगतान किया जाता था. ओवर टाइम का पैसा भी नहीं दिया जाता था. वहीं कथित तौर पर BAPS अवैध कटौतियां भी करता था.

मुकदमे के मुताबिक, श्रमिकों की प्रति घंटा सैलरी $1.20 थी - जो राज्य और संघीय न्यूनतम वेतन सीमा से लगभग 1,200 प्रतिशत कम है और 1963 के संघीय वेतन सीमा से भी कम है.

इस कुल वेतन में से न्यू जर्सी में श्रमिकों को लगभग $50 का भुगतान नकद में करना था. बाकी का भुगतान महीने में एक बार भारत में उनके बैंक खातों में किया जाता था. मुकदमे में दावा किया गया कि ऐसा कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था कि श्रमिकों के पास "जबरन श्रम से बचने के लिए वित्तीय साधन नहीं हो", "अगर वो भागने की कोशिश करते हैं तो उन्हें भारत में भी प्रतिष्ठा पर आंच आएगी," इसके साथ ही "अगर वादी और अन्य आर-1 मजदूर भागने की कोशिश करते हैं तो परिवारों को आर्थिक नुकसान होगा..."

मुकदमे के मुताबिक, मजदूरों से वादा किया गया था कि उन्हें प्रति दिन 4-7 घंटे काम करना होगा. इसके साथ ही कहा गया था कि महीने में उन्हें 20-25 दिन काम करना होगा और उन्हें छुट्टियां भी मिलेंगी.

'बारिश और बर्फ में काम करने के लिए मजबूर किया गया'

मजदूरों ने यह भी दावा किया है कि उन्हें बारिश और बर्फबारी के दौरान भी काम करना पड़ता था. महीने में बस एक दिन की छुट्टी मिलती थी, जिसकी कोई गारंटी नहीं थी. मजदूरों ने यह भी दावा किया है कि "काम से ब्रेक" लेने पर उनकी सैलरी काटी जाती थी. इसके साथ ही कथित तौर पर उनसे यह भी कहा गया था कि बाहरी लोगों से बात करने और मंदिर परिसर से बाहर जाने पर भी उन्हें कटौती का सामना करना पड़ेगा.

मुकदमे में कहा गया है कि "मंदिर में जबरन मजदूरी" की वजह से एक मजूदर मोहम लाल की जान चली गई. मुकदमे में आगे दावा किया गया कि बीएपीएस मंदिरों में काम करने वाले कम से कम तीन अन्य कर्मचारियों की अमेरिका छोड़ने के तुरंत बाद भारत में मौत हो गई है.

मजूदरों ने यह भी आरोप लगाया कि वो लगातार BAPS एजेंटों की निगरानी में रहते थे. उन्हें मजबूरन एक बाड़ वाले परिसर में लोगों से भरे ट्रेलरों में रहना पड़ता था. इसके साथ ही मजदूरों ने दावा किया है कि उन्हें मौखिक रूप से जाति-आधिरत दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता था. उन्होंने एक घटना का हवाला देते हुए कहा कि स्वामी प्रसन्नंद नाम के सुपरवाइजर ने मजूदरों को "कीड़ा" कहा था.

जिस दिन मुकदमा दायर किया गया, उसी दिन एफबीआई एजेंटों ने "अदालत द्वारा अधिकृत कानून प्रवर्तन गतिविधि" के लिए साइट का दौरा किया. इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल (ICWI) ने मई 2023 के एक बयान में कहा कि एफबीआई के नेतृत्व वाली छापेमारी में रॉबिन्सविले में स्वामीनारायण मंदिर के परिसर से लगभग 200 श्रमिकों को बचाया गया, जिनमें से अधिकांश दलित, बहुजन और आदिवासी थे.

मुकदमे में दावा किया गया कि BAPS ने "जबरन मजदूरी, जबरन मजदूरी के लिए तस्करी, दस्तावेज जब्त करना, साजिश और विदेशी लेबर कॉन्ट्रैक्ट में धोखाधड़ी" जैसे कामों को अंजाम दिया है. ये दावे Trafficking Victims Protection Act (TVPA) और Racketeer Influenced and Corrupt Organizations Act (RICO) के तहत किए गए हैं.

इसके साथ ही "बेहद कम सैलरी" के दावे- फेयर लेबर स्टैंडर्ड्स एक्ट (FLSA), न्यू जर्सी वेतन और समय कानून और न्यू जर्सी आम कानून के तहत किए गए हैं. इतना ही नहीं, "वंश और जातीय विशेषताओं के आधार पर नस्लीय भेदभाव" के दावे भी किए गए हैं.

हालांकि, BAPS ने सभी दावों और किसी भी प्रकार के गलत काम से इनकार किया है. चाहे वो वेतन का मुद्दा हो या फिर इमीग्रेशन कानून के उल्लंघन का मामला.

'मुद्दों की गहनता से की जा रही समीक्षा"

मुकदमे में प्रतिवादी, बीएपीएस के सीईओ कनु पटेल ने द न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, "मैं सम्मानपूर्वक वेतन से जुड़े इन दावों से सहमत नहीं हूं."

संगठन के प्रवक्ता मैथ्यू फ्रेंकल ने एपी को बताया कि बीएपीएस को दावों के बारे में पहली बार मंगलवार सुबह ही अवगत कराया गया था, जब मुकदमा दायर किया गया था.

उन्होंने कहा, "हम इस मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं और उठाए गए मुद्दों की गहनता से समीक्षा कर रहे हैं."

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, बीएपीएस के प्रवक्ता लेनिन जोशी ने आरोपों का विरोध करते हुए कहा कि ये लोग भारत से आए हाथ से तराशे गए पत्थरों को जोड़ने का काम कर रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि "इन पत्थरों को अलग तरह से फिट करना था और इसके लिए हमें विशेष कारीगरों की आवश्यकता थी."

उन्होंने कहा, "हम इन घटनाओं से हिल गए हैं. मुझे भरोसा है कि सभी जानकारी और तथ्य सामने आने के बाद हम इस पर अपना पक्ष रख सकेंगे और दिखाएंगे की इन आरोपों में कोई दम नहीं है."

11 जुलाई 2023 को एक प्रेस रिलीज में, कथित तौर पर भारतीय मजदूर संघ और पत्थर गढ़ाई संघ के 12 श्रमिकों की ओर से कहा गया कि उन्होंने "किसी भी दावे को आगे बढ़ाने के खिलाफ फैसला किया है" और अनुरोध किया कि "मुकदमे में उनकी भागीदारी" को समाप्त कर दिया जाए.

कथित तौर पर वकील आदित्य एसबी सोनी द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए श्रमिकों ने दावा किया कि उन्हें "भव्य हिंदू मंदिर के निर्माण को रोकने के लिए एक गहरी साजिश का हिस्सा बनने के लिए धमकी दी गई थी."

हालांकि, कुछ दिनों बाद न्यू जर्सी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दाखिल किए गए एक याचिका में नौ अन्य वादियों के वकील ने कहा कि "यह घटनाक्रम उन नौ अन्य वादियों का प्रतिनिधित्व जारी रखने की हमारी क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा जिनका प्रतिनिधित्व करने का श्री सोनी दावा नहीं करते हैं, क्योंकि वे कर्मचारी वर्ग के प्रतिनिधि बने रहेंगे और इस मामले पर मुकदमा चलाने के लिए तैयार रहेंगे."

इसके अलावा, उन्होंने "एसबी सोनी के पत्र का क्या मतलब है, इसको लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है और क्या प्रतिवादी या उनके एजेंट टीवीपीए और निष्पक्ष श्रम मानक अधिनियम के तहत गैरकानूनी प्रतिशोध में शामिल हो सकते हैं."

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