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कोरोना वायरस महामारी ने अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के फ्रांस और इटली जैसे देशों के मजबूत समझे जाने वाले हेल्थकेयर सिस्टम की नींव हिला के रख दी. इस महामारी का कुछ वैश्विक नेताओं ने मजाक बनाया और अब दुनिया के सामने वो मजाक बन गए हैं. वहीं, दूसरी तरफ ऐसे नेता हैं जिन्होंने वो सब किया, जो ऐसी भयानक स्वास्थ्य आपदा में किया जाना चाहिए.
जैसिंडा आर्डर्न इन दूसरे नेताओं की केटेगरी में आती हैं. ये आर्डर्न के समझदारी और कड़े फैसलों का ही नतीजा है कि आज तक न्यूजीलैंड में कोरोना वायरस के कुल 1800 करीब केस आए हैं. एक्टिव केस देश में बमुश्किल 33 हैं और संक्रमण से करीब 25 मौतें हुई हैं. और जैसिंडा आर्डर्न को इसका 'इनाम' भी मिला है. वो न्यूजीलैंड का आम चुनाव जीत गई हैं, लेकिन उनकी जीत साधारण नहीं है.
न्यूजीलैंड जैसे छोटे से देश की प्रधानमंत्री की दुनियाभर में इतनी पॉपुलैरिटी बड़ी बात है. लेकिन उससे भी बड़ी बात इन चुनावों में हुई है और इसके नतीजे न्यूजीलैंड की राजनीति को लंबे समय तक प्रभावित करेंगे.
न्यूजीलैंड में चुनाव का MMP सिस्टम चलता है. MMP का मतलब होता है (मिक्स्ड मेंबर प्रपोर्शनल). 1996 में न्यूजीलैंड में चुनावी सुधार हुए थे और तभी इस सिस्टम को अपनाया गया था. उससे पहले तक देश में लेबर पार्टी और नेशनल पार्टी का बोलबाला रहता था. लेकिन इस सिस्टम के आने के बाद वोटर के लिए कई पार्टियां विकल्प के तौर पर उभरीं.
1996 में इस सिस्टम को अपनाने के बाद से किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. न्यूजीलैंड में गठबंधन की सरकार सामान्य बात है. लेकिन इस बार ये बदल गया है.
जैसिंडा आर्डर्न की लेबर पार्टी को 49.1% वोट मिले हैं, जो कि करीब 64 संसद सीटों में तब्दील होंगे. 1946 के बाद से ये लेबर पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. वहीं, नेशनल पार्टी को 26.8% वोट मिले हैं और करीब 35 सीटें मिलेंगी.
अप्रैल की शुरुआत में न्यूजीलैंड में कोरोना वायरस के 1,283 मामले थे. अब ये आंकड़ा 1800 से थोड़ा ज्यादा है. इन पांच महीनों में बाकी देशों में महामारी ने तबाही मचा दी है, लेकिन न्यूजीलैंड में संक्रमण आर्डर्न के फैसलों की वजह से काबू में रहा.
28 फरवरी को देश में COVID-19 का पहला केस रिपोर्ट हुआ था. इसके बाद 14 मार्च को पीएम आर्डर्न ने ऐलान कर दिया था कि देश में आने पर हर शख्स को 2 हफ्ते सेल्फ-आइसोलेशन में बिताने होंगे. जानकारों का कहना है कि उस समय देश में सिर्फ 6 मामले थे, लेकिन सीमा पर लगाई गई पाबंदियां काफी ज्यादा सख्त थीं. आर्डर्न ने देश के लोगों से कहा था, "हमें सख्त होना पड़ेगा और जल्दी होना पड़ेगा."
न्यूजीलैंड की सरकार ने लोगों से लॉकडाउन के संबंध में साफ बात की. सख्त पाबंदियां लगाने से पहले सरकार ने निवासियों को इमरजेंसी मेसेज भेजा, "ये मेसेज पूरे न्यूजीलैंड के लिए है. हम आप पर निर्भर हो रहे हैं. आज रात आप जहां हैं, अब से वहीं आपको रहना होगा. ये पाबंदियां हफ्तों रह सकती हैं."
आर्डर्न ने महामारी से लड़ाई में अपना नजरिया साफ रखा. जब सख्त फैसले लेने का समय था तो वो लिए और जब स्थिति ठीक हुई तो पाबंदियां हटाई गईं. आर्डर्न ने अपने तीन साल के कार्यकाल में आतंकी हमले से लेकर खतरनाक महामारी तक का सामना किया है और उनकी जवाबी कार्रवाई हमेशा निर्णायक और सहानुभूति भरी रही है.
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