advertisement
पाकिस्तान (Pakistan) की सीनेट ने गुरुवार, 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस & प्रोसीजर) बिल 2023 पारित किया. इस विधेयक को 28 मार्च को संघीय कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था और एक दिन बाद बुधवार को नेशनल असेंबली ने कानून और न्याय पर स्थायी समिति द्वारा कुछ संशोधनों के बाद इसे पारित कर दिया. यह बिल इसीलिए खास है क्योंकि इसका उद्देश्य पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (CJP) की स्वत: संज्ञान लेने वाली शक्तियों को कम करना है.
यहां समझते हैं कि इस बिल की मदद से कैसे पाकिस्तान में कोर्ट पर नकेल कसने की तैयारी है? वहां की संसद में कोर्ट पर क्या आरोप लगाए हैं.
विधेयक में पाकिस्तान के चीफ जस्टिस से स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों को छीनकर उनकी जगह वरिष्ठ जजों वाली तीन सदस्यीय समिति (जिसमें चीफ जस्टिस भी शामिल होंगे) को स्थानांतरित करने का प्रावधान है.
सीनेट में पेश किए गए विधेयक में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर हर अपील और मामले पर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस और दो टॉप सीनियर जजों की समिति द्वारा गठित की गई बेंच सुनवाई करेगी और फैसला देगी. इसमें यह भी कहा गया है कि समिति के फैसले बहुमत से लिए जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने के संबंध में, बिल में कहा गया है कि अनुच्छेद 184 (3) के उपयोग को लागू करने वाले किसी भी मामले को पहले समिति के समक्ष रखा जाएगा.
अनुच्छेद 184 (3) के क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा किसी भी फैसले के लिए अपील के संबंध में, बिल ने कहा कि बेंच द्वारा दिए गए आदेश के तीस दिन के अंदर के सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी बेंच के समक्ष अपील की जा सकेगी. दायर की गई अपील 14 दिनों के अंदर ही सुनवाई के लिए तय की जाएगी.
इसमें कहा गया है कि अपील का यह अधिकार उन पीड़ित व्यक्तियों के पास भी होगा, जिनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस और प्रोसीजर) बिल 2023 के शुरू होने से पहले अनुच्छेद 184 (3) के तहत एक आदेश दिया गया था. इसमें एक शर्त होगी कि अपील अधिनियम के शुरू होने के 30 दिनों के अंदर ही दायर की गई हो.
इसके अलावा बिल में कहा गया है कि
विधेयक में कहा गया है कि इसके प्रावधान किसी भी अन्य कानून, नियमों या विनियमों के लागू होने या सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सहित किसी भी कोर्ट के फैसलसे के बावजूद प्रभावी होंगे.
नेशनल एसेंबली ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट पर "न्यायिक सक्रियता" का आरोप लगाते हुए प्रस्ताव पारित किया और चुनाव आयोग से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप न करने की मांग की.
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि सदन का मानना है कि राजनीतिक मामलों में न्यायपालिका की अनावश्यक घुसपैठ राजनीतिक अस्थिरता की मुख्य वजह है.
पाकिस्तान सरकार और कोर्ट के बीच ये खींचतान पिछले साल अप्रैल में संसदीय विश्वास मत के जरिए पूर्व पीएम इमरान खान को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद शुरू हुई.
प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद इमरान खान ने फौरी तौर पर चुनाव करवाने की मांग करते हुए प्रोटेस्ट शुरू कर दिया. पाकिस्तान सरकार ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया.
पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक संसद के विघटन के 90 दिनों के अंदर ही चुनाव होना चाहिए. लेकिन विवाद तब शुरू हो गया, जब पाकिस्तान चुनाव आयोग (ECP) ने चुनाव का ऐलान नहीं किया.
इसके बाद पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बांदियाल ने 23 फरवरी को इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की.
मुद्दे पर सुनवाई करने के लिए गठित की गई.
नौ-जजों की बेंच से चार जजों के अलग होने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 1 मार्च को 3-2 के फैसले में चुनाव आयोग को अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करने और पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों के लिए चुनाव का ऐलान करने का आदेश दिया है.
3 मार्च को चुनाव आयोग ने पंजाब में चुनाव के लिए 30 अप्रैल की तारीख तय की.
चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते यह कहते हुए चुनाव की तारीख वापस ले ली कि सुरक्षा और वित्तीय वजहों की वजहों अप्रैल में वोटिंग कराना नामुमकिन है. इस दौरान आयोग ने चुनाव की तारीख 8 अक्टूबर तय की.
इसके बाद पीटीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कोर्ट में अब इस बात पर बहस हो रही है कि चुनाव आयोग का ये कदम कानूनी है या नहीं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined