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फाइजर, एस्ट्राजेनेका की एक डोज से डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ मामूली सुरक्षा: स्टडी

Delta Variant ज्यादा संक्रामक माना जा रहा है

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<div class="paragraphs"><p>Delta Variant ज्यादा संक्रामक माना जा रहा है</p></div>
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Delta Variant ज्यादा संक्रामक माना जा रहा है

(फोटो: iStock)

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एक नई स्टडी में कोरोनावायरस (Coronavirus) में हो रहे लगातार म्यूटेशन से खतरे की तस्वीर उभर कर आई है. इस स्टडी के मुताबिक, फाइजर (Pfizer Vaccine) या एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (AstraZeneca Vaccine) की एक डोज मिलने के बाद इम्यून सिस्टम डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) के खिलाफ 'मुश्किल से' एंटीबॉडीज बना पाता है. ये स्थिति उन लोगों में देखी गई जो पहले कभी कोविड से संक्रमित नहीं हुए थे.

जर्नल नेचर में पब्लिश हुई ये स्टडी दुनियाभर में फैल रहे डेल्टा वेरिएंट के खतरे से आगाह करती है. रिसर्चर्स ने पाया कि डेल्टा वेरिएंट में ऐसी म्यूटेशन है जिससे वो वैक्सीन या पिछले संक्रमण से बनी एंटीबॉडीज को चकमा दे सकता है.

हालांकि, स्टडी का कहना है कि फाइजर या एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले लोगों में डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ अच्छी सुरक्षा देखी गई.

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नई स्टडी एक बार फिर फाइजर या एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दोनों डोज लेने के महत्व पर जोर देती है. डेल्टा वेरिएंट ज्यादा संक्रामक माना जा रहा है. भारत समेत कई देशों में ये तेजी से फैल रहा है.

ऐसा माना जा रहा है कि अप्रैल-मई में भारत में आई कोरोनावायरस की दूसरी वेव डेल्टा वेरिएंट की वजह से ही थी. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने इस वेरिएंट को 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' घोषित किया है.

भारत के लिए ये स्टडी चिंता का विषय होनी चाहिए क्योंकि देश की 5 फीसदी से भी कम आबादी का पूरा वैक्सीनेशन हुआ है. ऐसे में अगर स्टडी के नतीजे सच माने जाएं और डेल्टा वेरिएंट के फैलने को ध्यान में रखा जाए, तो स्थिति बहुत गंभीर नजर आएगी.

हालांकि, हाल के हफ्तों में भारत अपने वैक्सीनेशन प्रोग्राम में तेजी लाया है लेकिन फिर भी एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2021 के अंत तक तीसरी वेव आ सकती है और कम आबादी का पूरा वैक्सीनेशन चिंता का सबब है.

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