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सऊदी अरब, मिस्र, यूनाइटेड अरब अमीरात, बहरीन, यमन और लीबिया जैसे गल्फ देशों ने कतर के साथ अपने रिश्ते खत्म कर लिए हैं. इन देशों का आरोप है कि कतर इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे संगठनों का समर्थन करता है.
ऐसे में यह समझना जरूरी है कि गल्फ देशों द्वारा कतर से रिश्ता तोड़ने का भारत पर क्या असर पड़ेगा और इससे कतर में रहने वाले भारतीय कितने प्रभावित होंगे. कतर में करीब 6,50,000 भारतीय रहते हैं, जो कि कतर की कुल आबादी के एक-तिहाई के करीब है.
तो आइए जानते हैं कि कतर और सऊदी के रिश्तों में आए खटास से भारत पर क्या असर पड़ सकता है?
विदेश मंत्रालय के मुताबिक:
केरल के अलावा महाराष्ट्र, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से भी कतर जाने वालों की कमी नहीं है. ऐसे में कतर में रहने वाले भारतीयों की जिंदगी पर कतर और दूसरे गल्फ देशों लड़ाई का असर पड़ सकता है. कतर रोजमर्रा के सामानों के लिए सऊदी अरब पर निर्भर है. और तो और तनाव बढ़ने पर लोगों की नौकरियां पर भी असर पड़ सकता है.
इसके अलावा पेट्रोनेट हर तीसरे दिन कतर से एक एलएनजी कार्गो प्राप्त करता है, जिसमें से हर कार्गो में 150,000 क्यूबिक मीटर गैस होती है. अगर कीमत की बात की जाए, तो एक एलएनजी कार्गो की कीमत लगभग 150 करोड़ रुपये होती है.
ऐसे में कतर और बाकी गल्फ देशों के बीच की इस लड़ाई में भारत के व्यापार पर भी असर पड़ सकता है.
भारत और कतर के व्यापारिक संबंध काफी अच्छे हैं.
वहीं साल 2014 के मार्च में भारतीय कंस्ट्रक्शन कंपनी लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) को कतर में सड़क निर्माण के लिए 2.1 बिलियन कतरी रियाल का प्रोजेक्ट मिला था. साथ ही एलएंडटी को कतर रेलवे ने दोहा मेट्रो नेटवर्क के लिए रेल लाइन के डिजाइन और निर्माण के लिए 740 मिलियन डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट मिला है.
गल्फ देश कच्चे तेल के बड़े उत्पादक हैं और भारत इनसे बड़े पैमाने पर तेल खरीदता है.
भारत सबसे ज्यादा तेल सऊदी अरब से लेता है, जबकि कतर से भारत सबसे ज्यादा नेचुरल गैस लेता है. ऐसे में यहां तनाव फैलने पर कच्चे तेल की कीमतों पर असर होगा, जिसका बोझ भारत की आम जनता और अर्थव्यवस्था को भी उठाना पड़ सकता है.
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