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कतर और गल्फ देशों का झगड़ा: भारत पर क्या होगा इसका असर

कतर में करीब 6,50,000 भारतीय रहते हैं, जो कि कतर की कुल आबादी का एक-तिहाई है.

शादाब मोइज़ी
दुनिया
Published:
(फोटोः AP)
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सऊदी अरब, मिस्र, यूनाइटेड अरब अमीरात, बहरीन, यमन और लीबिया जैसे गल्फ देशों ने कतर के साथ अपने रिश्‍ते खत्म कर लिए हैं. इन देशों का आरोप है कि कतर इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे संगठनों का समर्थन करता है.

ऐसे में यह समझना जरूरी है कि गल्फ देशों द्वारा कतर से रिश्ता तोड़ने का भारत पर क्या असर पड़ेगा और इससे कतर में रहने वाले भारतीय कितने प्रभावित होंगे. कतर में करीब 6,50,000 भारतीय रहते हैं, जो कि कतर की कुल आबादी के एक-तिहाई के करीब है.

भारत कतर से सबसे ज्यादा नेचुरल गैस भी लेता है. भारत के एनर्जी सुरक्षा के लिहाज से भी यह पूरा इलाका बहुत ही महत्वपूर्ण है.

तो आइए जानते हैं कि कतर और सऊदी के रिश्तों में आए खटास से भारत पर क्या असर पड़ सकता है?

6,50,000 भारतीयों को जॉब खोने डर

विदेश मंत्रालय के मुताबिक:

करीब 8,50,0000 भारतीय गल्फ देशों में रहते हैं. इनमें सिर्फ यूनाइटेड अरब अमीरात में 25-26 लाख और सऊदी अरब में 29-30 लाख भारतीय काम करते हैं. करीब 6.50 लाख से ज्यादा भारतीय कतर में काम करते हैं. इनमें सबसे ज्यादा 3 लाख लोग भारत के केरल राज्य से जाते हैं.
पीएम मोदी अपने कतर दौरे पर भारतीयों से मिलते हुए (फोटो: PTI)

केरल के अलावा महाराष्ट्र, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से भी कतर जाने वालों की कमी नहीं है. ऐसे में कतर में रहने वाले भारतीयों की जिंदगी पर कतर और दूसरे गल्फ देशों लड़ाई का असर पड़ सकता है. कतर रोजमर्रा के सामानों के लिए सऊदी अरब पर निर्भर है. और तो और तनाव बढ़ने पर लोगों की नौकरियां पर भी असर पड़ सकता है.

भारत सबसे ज्यादा नेचुरल गैस कतर से ही लेता है

कतर में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गैस रिजर्व है. साथ ही भारत सबसे ज्यादा नेचुरल गैस कतर से ही लेता है. पेट्रोनेट एलएनजी भारत का सबसे बड़ा लिक्विफैड नेचुरल गैस इम्पोर्टर है, जो कतर से सालाना 8.5 मिलियन टन लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) का आयात करता है.

इसके अलावा पेट्रोनेट हर तीसरे दिन कतर से एक एलएनजी कार्गो प्राप्त करता है, जिसमें से हर कार्गो में 150,000 क्यूबिक मीटर गैस होती है. अगर कीमत की बात की जाए, तो एक एलएनजी कार्गो की कीमत लगभग 150 करोड़ रुपये होती है.

ऐसे में कतर और बाकी गल्फ देशों के बीच की इस लड़ाई में भारत के व्यापार पर भी असर पड़ सकता है.

कंस्ट्रक्शन फील्ड में भी पड़ सकता है असर

भारत और कतर के व्यापारिक संबंध काफी अच्छे हैं.

कतर और भारत के बीच 9 अरब डॉलर का व्यापार है और इसी वजह से कतर भारत का 19वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदारी वाला देश है. साल 2014-15 में भारत ने कतर में 1.05 अरब डॉलर का सामान एक्सपोर्ट किया था. कुल बाइलेटरल व्यापार 15.67 अरब डॉलर तक पहुंच गया था.
रयान स्टेडियम, कतर (फोटो: twitter)

वहीं साल 2014 के मार्च में भारतीय कंस्ट्रक्शन कंपनी लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) को कतर में सड़क निर्माण के लिए 2.1 बिलियन कतरी रियाल का प्रोजेक्ट मिला था. साथ ही एलएंडटी को कतर रेलवे ने दोहा मेट्रो नेटवर्क के लिए रेल लाइन के डिजाइन और निर्माण के लिए 740 मिलियन डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट मिला है.

एलएनटी के अलावा कई प्रतिष्ठित भारतीय कंपनियां, खासकर निर्माण और बुनियादी ढांचे में और आईटी फील्ड में काम कर रही हैं. पुंज लॉयड, शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप, वोल्टास लिमिटेड, सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड, विप्रो, महिंद्रा टेक, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, जैसी कंपनियां कतर में हैं.

कच्चे तेल के महंगा होने का डर

गल्फ देश कच्चे तेल के बड़े उत्पादक हैं और भारत इनसे बड़े पैमाने पर तेल खरीदता है.

भारत सबसे ज्यादा तेल सऊदी अरब से लेता है, जबकि कतर से भारत सबसे ज्यादा नेचुरल गैस लेता है. ऐसे में यहां तनाव फैलने पर कच्चे तेल की कीमतों पर असर होगा, जिसका बोझ भारत की आम जनता और अर्थव्यवस्था को भी उठाना पड़ सकता है.

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