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रूस (Russia) और यूक्रेन के बीच पिछले 51 दिनों से जारी जंग के बीच अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने चेतावनी दी है कि युद्ध के लंबा खिंचने से हताश रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन पर परमाणु बम गिरा सकते हैं. सीआईए डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने यह डराने वाली टिप्पणी की है. जब सीआईए जैसी बड़ी एजेंसी यह कह रही है तो स्पष्ट है कि यूक्रेन की जंग में परमाणु बम के इस्तेमाल का खतरा बढ़ता जा रहा है. इससे पहले डेढ़ महीने पहले रूस ने अपने परमाणु दस्ते को हाई अलर्ट पर रहने का निर्देश देकर पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया था. रूस का यह रुख पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. पिछले कई दिनों के भीतर उसने एक के बाद एक खतरे की लकीरें खींची. दुनिया सोचती रही कि वह सिर्फ लकीर खींचकर डरा रहे हैं और उससे आगे नहीं जाएंगे, जबकि पुतिन ने यह सभी डेंजर लाइन पार कीं. पुतिन के खतरनाक इरादे सोचकर ही दुनिया सिहर उठती है.
पुतिन (Putin) के इस परमाणु अलर्ट के आदेश के संदर्भ में हमें इस देश के परमाणु सिस्टम को समझना होगा. यह जानना होगा कि इस देश में न्यूक्लियर हथियारों को लेकर क्या प्रोटोकॉल बनाया गया है? किसके आदेश पर इन विनाशकारी हथियारों को छोड़ा जा सकता है. कहां-कहां इनका कंट्रोल सिस्टम रखा जाता है?
रूस के इस न्यूक्लियर प्रोटोकॉल का उल्लेख साल 2020 में तैयार एक अति महत्वपूर्ण रशियन दस्तावेज में किया गया है. इस दस्तावेज का शीर्षक है 'परमाणु हमले के लिए रशियन यूनियन की स्टेट पॉलिसी और मूल सिद्धांत'. इसमें दी गई जानकारी के अनुसार दुनिया के हर एक देश की तरह रूस में भी इसके राष्ट्रपति को परमाणु बम छोड़े जाने के आदेश वाली चाबी दी गई है.
जिस ब्रीफकेस से लॉन्चिंग कोड जारी होता है और जो रूस के राष्ट्रपति को सौंपा जाता है उसे 'चेगेट' कहा जाता है. आजकल इसी 'चेगेट' पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. रूस के राष्ट्रपति के पास यह हरदम मौजूद रहता है. यात्रा पर, दौरों पर, मीटिंग्स में, मंचों पर और यहां तक कि उनके शयन कक्ष में उनके बेड से अत्यंत नजदीक ही इस न्यूक्लियर ब्रीफकेस को रखा जाता है. रूस पर यदि कोई देश हमला करता है तो ऐसी स्थिति को भांपने और राष्ट्रपति को अलार्म देखकर अलर्ट करने का काम भी यह ब्रीफकेस करता है.
देश के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के पास भी ऐसा ही सूटकेस होने से अलर्ट उन्हें भी मिलता है, लेकिन वे परमाणु लॉन्चिंग कोड को जारी नहीं कर सकते, क्योंकि रूस में राष्ट्रपति ही सुप्रीम कमांडर है तो ऐसे में परमाणु हमले पर डिसीजन रशियन प्रेसिडेंट के ही हाथ में होता है. इस स्मार्ट ब्रीफकेस की खासियत है कि इसमें सीधे सेटेलाइट फोन भी मौजूद है, जिससे रूस के राष्ट्रपति किसी इमरजेंसी कंडीशन में फंसे होने पर इस ब्रीफकेस के जरिए ही सीधे अपने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और डिफेंस मिनिस्टर से संपर्क कर सकते हैं. उन्हें किसी मोबाइल फोन पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है.
रीडर्स के मन में यह भी सवाल उठ रहा होगा कि यदि कोई देश हमला करके सीधे रशियन प्रेसिडेंट को मार दे या उन्हें बंधक बना ले, तो ऐसी स्थिति में फाइनल अटैक आर्डर का लॉन्चिंग कोड कौन जारी करेगा. तो रूस में न्यूक्लियर प्रोटोकॉल बनाने वालों ने ऐसी स्थिति भांपते हुए इसका बैकअप सिस्टम भी बनाया है. जिसे 'पेरिमेट्र' के नाम से जाना जाता है. इसका भी उल्लेख इन दस्तावेजों में किया गया है.
रूस में परमाणु हथियारों का इतिहास काफी पुराना है. लगभग 80 साल पहले से रूस परमाणु शक्ति बना हुआ है. अभी उसके पास 6257 परमाणु हथियार होने का अनुमान लगाया जाता है. इसके आंकड़े फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट नामक संस्था ने जारी किए थे. इन सारे हथियारों में कोई सीधे परमाणु बम की गिनती शामिल नहीं होती, बल्कि यह परमाणु हमले की क्षमता से लैस न्यूक्लियर स्ट्रैटेजिक हथियारों की संख्या है. इनमें परमाणु न्यूक्लियर बम से लैस बैलेस्टिक मिसाइलें और परमाणु वाहक रॉकेट मिसाइलें शामिल होती हैं. न्यूक्लियर वेपंस की गणना उनके सैन्य ठिकानों , युद्ध पोतों व सबमरीन में तैनाती के आधार पर की जाती है.
साल 2020 में रूस की परमाणु नीति में 4 मुख्य कारण शामिल किए गए, जिनके होने पर रूस की ओर से परमाणु हमले को हरी झंडी दी जा सकती है. यह चार कारण ये हैं.
रूस या उसके सहयोगी क्षेत्र में यदि बैलेस्टिक मिसाइल से हमला हुआ हो.
दुश्मन देश रूस पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करें.
रूस के न्यूक्लियर ठिकानों पर ही किसी मुल्क द्वारा हमला कर दिया जाए.
ऐसा घातक हमला जिससे पूरे देश का अस्तित्व ही खतरे में आ जाए.
इनमें से अभी कोई भी कारण नहीं घटा है, फिर भी दुनिया भर के कॉम्बेट विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि परमाणु अलर्ट जारी करने का अर्थ यह है कि रूस ने अपने परमाणु दस्ते को हमला करने से सिर्फ एक कदम की दूरी पर तैनात तो कर ही दिया है.
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