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रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) को शुरू हुए अब एक महीने होने वाले हैं और शांति की उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ पश्चिमी शक्तियों के प्रतिबंधों और बयानबाजी का असर नाकाफी दिख रहा और कई शहरों में रूसी सेना का नागरिक इमारतों का निशाना बनाना जारी है.
बड़ा सवाल है कि आखिर जिस युद्ध ने एक महीने से कम समय में हजारों आम लोगों की जान ले ली हो, 1 करोड़ से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ दूसरे देशों में रिफ्यूजी बनने को मजबूर कर दिया हो, आखिर उसका अंत कैसे होगा?
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ ही दिनों बाद दोनों देशों के वार्ताकारों ने पहले बेलारूस-यूक्रेन बॉर्डर पर, फिर तुर्की में और बाद में यूक्रेन की राजधानी कीव में बातचीत की.
माना जा रहा है कि युद्ध में मरते रूसी सैनिकों की बढ़ती संख्या और पश्चिमी प्रतिबंधों कारण रूसी अर्थव्यवस्था पर बढ़ते दबाव के बीच पुतिन शांति समझौते को अपने इमेज के लिए सबसे अच्छा विकल्प समझ सकते हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पहले ही सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि उनका देश पश्चिमी नाटो सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं होगा, जो कि शुरू से ही क्रेमलिन की एक प्रमुख मांग है.
भले ही मौजूदा स्थिति में शांति समझौते पर सहमति की उम्मीद कम नजर आ रही, युद्ध की विभीषिका को टालने का यह अंतिम उपाय भी है.
यह साफ है कि रूस के पास यूक्रेन की अपेक्षा बेहतर हथियार, एयर फोर्स और ऑन-ग्राउंड सैनिक हैं. यही कारण है कि पश्चिमी रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि रूस की सेनाएं आगे बढ़ने में और यूक्रेन को जीत लेने में सक्षम हैं. हालांकि सामने आ रही रिपोर्टों के मुताबिक यूक्रेन में हमला करती रूसी सेना के सामने फ्यूल और रसद के सप्लाई की समस्याएं हैं.
ध्यान रहे कि मॉस्को खुले तौर पर सीरिया से भाड़े के सैनिकों की भर्ती कर रहा है, जबकि वह वैगनर ग्रुप का भी उपयोग कर रहा है जो रूसी की प्राइवेट सुरक्षा कंपनी है.
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि लेकिन भले ही रूस ने कीव या ओडेसा के दक्षिणी बंदरगाह जैसे रणनीतिक शहरों पर कब्जा कर लिया हो, फिर भी पुतिन को उन पर कब्जा बनाए रहने के लिए चुनौती का सामना करना पड़ेगा.
रूस में पुतिन की पकड़ को देखते हुए यह संभावना भी न के बराबर नजर आती है, लेकिन सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग (एलिट क्लास) में दरार के संकेत दिख रहे हैं. कुछ कुलीन वर्गों, सांसदों और यहां तक कि प्राइवेट ऑयल ग्रुप लुकोइल ने खुले तौर पर सीजफायर या लड़ाई को समाप्त करने की बात कही है.
इस बात की संभावना भी मजबूत है कि यूक्रेन के खिलाफ रूस का यह जंग अपना पैर देश के बाहर भी पसार ले. सोवियत संघ से अलग हुए तीन ऐसे देश हैं जो अब अमेरिका के नेतृत्व वाले NATO सैन्य गठबंधन के सदस्य हैं.
पुतिन ने NATO को यूक्रेन के सैन्य मदद के खिलाफ चेतावनी दे रखी है. अगर यह युद्ध किसी भी कारण से यूक्रेन से बाहर किसी और देश, खासकर NATO के सदस्य देश में जाता है तो परिणाम भयावह होंगे और एक साथ कई महाशक्ति युद्ध के बीच होगी.
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